भारतीय संसद ने ब्रिटिश युग से से चलते आ रहे भारतीय दंड संहिता 1860, दंड प्रक्रिया संहिता 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 को क्रमशः भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 से बदल दिया है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) में धाराओं की संख्या 511 से घटाकर भारतीय न्याय संहिता (BNS) में 358 कर दी गई है। 20 नए अपराध जोड़े गए। कई अपराधों के लिए अनिवार्य न्यूनतम सजा का प्रावधान किया गया है। 6 छोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा का प्रावधान किया गया है। कई अपराधों में जुर्माना बढ़ाया गया है तो कई अपराधों में सजा की अवधि बढ़ाई गई है। धारा 69 के तहत झूठे वादे पर यौन संबंध बनाने पर सख्त सजा का प्रावधान, धारा 70(2) के तहत सामूहिक बलात्कार की सज़ा में मृत्यदंड का प्रावधान किया गया है।
सीआरपीसी में धाराओं की संख्या 484 से बढ़ाकर BNSS में 531 की गई है। 177 धाराओं को प्रतिस्थापित किया गया है। जहाँ 9 नई धाराएं जोड़ी गई है वहीँ 14 धाराएं निरस्त की गई है। जिसके तहत धारा 173 में जीरो FIR और e-FIR का प्रावधान किया गया है। धारा 176(1) ख के तहत कानून ऑडियो वीडियो के माध्यम से पीड़ित को बयान रिकॉर्डिंग का अधिकार दिया गया है।
आईईए धाराओं की संख्या 167 से बढ़ाकर BSA में 170 की गई है। जहाँ 24 धाराएं बदली गई है वहीँ 2 नई धाराएं जोड़ी गई है जबकि 6 धाराएं निरस्त की गई है। धारा 61 में डिजिटल रिकॉर्ड की स्वीकार्यता में समानता दी गई है वहीँ धारा 62 और धारा 63 में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की स्वीकार्यता दी गई है।
महिलाओं एवं बच्चो के खिलाफ अपराध
नए आपराधिक कानूनों में महिलाओं और बच्चो के खिलाफ अपराध से निपटने के लिए 37 धाराएं शामिल है। महिलाओं और बच्चो के खिलाफ अपराधों को पीड़ित और अपराधी दोनों के संदर्भ में BNS की धारा 2 के तहत लिंग तटस्थ (Gender neutral) बनाया गया है। 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार के लिए BNS की धारा 70 के तहत आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। झूठे वादे या छद्म पहचान के आधार पर यौन शोषण अब आपराधिक कृत्य माना जाएगा। चिकित्स्कों को बलात्कार से पीड़ित महिला की मेडिकल रिपोर्ट BNS की धारा 51(3) के तहत अब सात दिनों के भीतर जांच अधिकारी को भेजने का आदेश दिया गया है।
आपराधिक न्याय प्रणाली के सभी चरणों का BNSS की धारा 173 के तहत व्यापक डिजिटलीकरण किया गया जिनमे e-record, Zero FIR. e-FIR, समन, नोटिस, दस्तावेज़ प्रस्तुत करना और ट्रायल शामिल है।
पीड़ितों के इलेक्ट्रॉनिक बयान के लिए e-बयान तथा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से गवाहों, अभियुक्तों, विशेषज्ञों और पीड़ितों की उपस्थिति के लिए BNSS की धारा 530 के तहत e-Appearance की शुरुआत की गई।
'दस्तावेज़ों' की परिभाषा में सर्वर लॉग, स्थान संबंधी साक्ष्य और डिजिटल वॉइस सन्देश शामिल होंगे। BSA की धारा 2(1)(D) के तहत अब साक्ष्य का कानून अब इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को अदालतों में भौतिक साक्ष्य के बराबर मानता है।
कानून के तहत द्वितीयक साक्ष्य का दायरा व्यापक हो गया है जिसमे BSA की धारा 58 के तहत मौखिक स्वीकारोक्ति, लिखित स्वीकारोक्ति और दस्तावेज़ों की जांच करने वाले कुशल व्यक्ति का साक्ष्य शामिल है।
तलाशी और ज़ब्ती की वीडियोग्राफी के लिए प्रक्रियाएं शुरू की गई जिसमे BNSS की धारा 105 के तहत वस्तुओं की सूची और गवाहों के हस्ताक्षर तैयार करना शामिल है।
BNSS की धारा 360 के तहत मुकदमा वापस लेने से पूर्व सुने जाने का अधिकार प्रदान किया गया। BNSS की धारा 193(3) (2) के तहत पीड़ित को FIR की एक कॉपी प्राप्त करने तथा उसे 90 दिनों के भीतर जांच की प्रगति के बारे में सूचित किये जाने का अधिकार है।
गवाहों को धमकियों और भय से बचाने के लिए BNSS की धारा 398 के तहत गवाह संरक्षण योजना की शुरुआत की गई।
BNSS की धारा 183 (6) (A) के तहत बलात्कार पीड़िता का बयान केवल महिला न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया जाएगा। महिला न्यायिक मजिस्ट्रेट की अनुपस्थिति में किसी महिला की उपस्थिति में पुरुष न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया जाएगा।
छीनाझपटी (BNS 304) अब एक संज्ञेय, गैर ज़मानती और गैर क्षमनीय अपराध है। आतंकवादी कृत्य BNS की धारा 113 में ऐसे कृत्य शामिल है जो भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करते या किसी समूह में आतंक फैलाते है।
BNS की धारा 152 में राजद्रोह के अपराध को समाप्त कर भारत की एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों को दण्डित करने के लिए 'देशद्रोह' शब्द का प्रयोग का प्रयोग किया गया है।
BNS की धारा 103 (2) में मॉब लिंचिंग के अपराध में अधिकतम सज़ा मृत्युदंड है। BNS की धारा 111 में संगठित अपराध को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है।
BNSS धारा 105 के तहत तलाशी और ज़ब्ती के दौरान वीडियोग्राफी अनिवार्य है। BNSS धारा 35(7) के तहत कोई भी गिरफ़्तारी, ऐसे अपराधों के मामलो में जो तीन वर्ष से कम कारावास से दंडनीय है और ऐसा व्यक्ति जो गंभीर बीमारी से पीड़ित है या 60 वर्ष से अधिक की आयु का है, ऐसे अधिकारी जी पुलिस उप अधीक्षक से नीचे की पंक्ति का न हो, की पूर्व अनुमति के बिना गिरफ्तारी नहीं की जाएगी।
गिरफ्तारी, तलाशी, ज़ब्ती और जांच में पुलिस की जवाबदेही बढ़ाने के लिए 20 से अधिक धाराएं शमी की गई है। BNSS की धारा 174(1) (2) के तहत असंज्ञेय मामलो में, ऐसे सभी मामलो को दैनिक डायरी रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को पाक्षिक रूप से भेजी जाएगी।
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