एसीबी को मिला 1 करोड़ का रिवॉल्विंग फंड
70% परिवादी को कर चुके भुगतान
भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो जयपुर के महानिरीक्षक सवाई सिंह गोदारा मंगलवार को उदयपुर दौरे पर रहे। उन्होंने उदयपुर के एसीबी के सभी अधिकारीयों के साथ एक संभाग स्तरीय समीक्षा बैठक ली और और पिछले दिनों की गई कार्यवाहियों के बारे में जानकारी जुताई।
रिवॉल्विंग फंड के बारे में बताते हुए गोदारा ने कहा की राजस्थान पहला राज्य था जिसने इस फंड की शुरुआत हुई थी। उन्होंने कहा की सरकार से इसके लिए प्रथम किश्त 1 करोड़ रुपए प्राप्त हुई थी जिसमें से करीब 70 लाख रुपए परिवादियों को दिए जा चुके हैं।यह राशि खत्म होने के बाद सरकार से फिर मांग की जाएगी। उन्होंने कहा की इस फंड से परिवादियों को काफी फायदा और राहत मिली है।
अब ऐसे में सवाल ये आता है की आखिर यह रिवॉल्विंग फंड है क्या?
पहला तो यह की कई लोग ऐसे होते हैं जो लोक अधिकारी (सकरकारी ऑफिसर) द्वारा रिश्वत मांगने पर उन्हें ट्रेप करवाना चाहते हैं लेकिन रिश्वत राशि देने में सक्षम नहीं होते हैं। दूसरा यह की अगर वह राशि कही से उधार लेकर एसीबी द्वारा ट्रेप करवा भी देता था तो कानूनी प्रक्रिया के तहत रिश्वत राशि जब्त होती है। यह राशि जब तक कोर्ट से फैसला नहीं हो जाने तक जब्त ही रहती है। ऐसे में परेशानी यह आ रही थी की ट्रेप करवाने के बाद परिवादियों को आर्थिक रूप से परेशान होना पड़ता था।
आप सिर्फ रिश्वत मांगते ऑडियो वीडियो बनाओ, कारवाई करेंगे
उदयपुर एसीबी कार्यालय पर मीडिया से बात करते हुए महानिरीक्षक गोदारा ने बताया कि एसीबी की कार्रवाईया बढ़ रही है और इसमें जन सहयोग की और लोगों की भागीदारी बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा की अगर किसी से कोई रिश्वत मांग रहा है तो वह उसका ऑडियो या वीडियो और बनाकर एसीबी को भेज दे। विभाग इसकी जाँच करवाएगा और इसके बाद लगता है कि वह सही है, तो रिश्वत मांगने वाले के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
उन्होंने यह भी बताया कि सरकार ने यह भी पहल की थी की परिवादियों के जायज काम एसीबी खुद करवाएगी। ऐसे में अब वह हो रहा है.किसी भी परिवादी का ट्रैप कार्रवाई के बाद में एसीबी खुद आगे रहकर काम करवाती है, जो आरोपी लोक अधिकारी ने अटका रखा था।
उन्होंने कहा की एसीबी का ध्यान क़्वालिटी पर है, यानि की भले ही केस काम आए लेकिन किसी निर्दोष के खिलाफ कार्यवाही नहीं हो। इसी के लिए 1064 हेल्पलाइन शुरू की गई है, जिसपर हमें लगातार किकायतें मिलती रहती है। इसके अतिरिक्त ट्रैप केसेस के अलावा एम् ओ केसेस की अगर बात की जाए तो वर्ष 2018 में के संशोधन के बाद इसमें गति थोड़ी धीमीं हो गई है। 17 ए की परमिशन विभाग को पहले लेनी पड़ती है और फिर ही कार्यवाही की जा सकती है। तो वही डिस प्रपोशनेट एसेट के केसेस में जितनी कार्यवाही अपेक्षित है उतनी नहीं हो पाती, इनको बढ़ाने के लिए एन्टवेलीजेंस यूनिट भी काम कर रही है साथ ही उनको ये टास्क दिया गया है की अलग अलग इलाको में सरकारी ऑफिसर की की एक लिस्ट तैयार करें, उनके कमाई का, उनके खर्चों का आंकलन करें और अगर उनके बे शुमार दौलत के बारे में जानकारी प्राप्त हो तो उनपर निगरानी रखें,ऐसे भ्रष्ट लोगों को टारगेट करके उनके खिलाफ कार्यवाही करें।
इसके अलावा प्रॉसिक्यूशन सेंक्शन मिलने में भी गति आई है जिसकी वजह से भ्रष्ट अधिकारीयों के खिलाफ चालान पेश करने में भी गति आई है।