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उदयपुर के देहलीगेट पर दुकानों के सीज़ की कार्यवाही पर वक्फ के मेम्बर जयपुर ट्राइब्यूनल पहुंचे

 

उदयपुर के देहलीगेट चौराहे पर स्थित "तकिया सौदागरान्" के इर्द गिर्द बनी 41 दुकानों पर 17 फरवरी सुबह हुए उदयपुर नगर निगम के अतिक्रमण दस्ते की कार्यवही पर उदयपुर के पूर्व वक्फ बोर्ड अध्यक्ष हाजी ईब्राहिम खान, सेक्रेट्री ज़हीरूद्वीन सक्का, कोषाध्यक्ष एवं पूर्व पार्षद नज़र मोहम्मद, सदस्य गयासुद्वीन ने बयान जारी किए हैं।

उनके द्वारा दिए गए बयान के मुताबिक देहलीगेट पर स्थित ज़मीन जिसे तकिया सौदागरान् कहा जाता है, पिछले 100 साल से मुस्लिम समाज की मिलकियत रही है। मेवाड़ राज्य की उच्चतम न्यायालय महेन्द्रा राज्य सभा द्वारा सन् 1908 से इसे वक्फ संपत्ति घोषित की हुई है, भारत सरकार के गठन के बाद सन् 1954 में वक्फ एक्ट के अनुसार यह सरपरस्ती सन् 1966 में गजट नॉटीफाईड़ में दर्ज हुई है।

इस वक्फ सरपरस्ती को मोहम्मद शाह फकीर ने कुछ लोगो से साठ गाठ कर खुर्द-बुर्द की थी, जिसके विरूद्ध सन् 2006 में वक्फ बोर्ड ने अपने हक़ के लिए सुप्रीम कोर्ट मे अपना वाद पेश किया था, जिसका फैसला दिनांक 22.11.2010 को हुआ। फैसले के मुताबिक यह वक्फ संपति है, जिसे खुर्द-बुर्द किया जाना अवैध माना गया।  कलान्तर मे, देवस्थान द्वारा वक्फ निगरानी वालो को अनुदान दिया जाता था, किंतु बाद मे अनुदान दिया जाना बंद कर दिया था, जिसके बाद निगरानी कराने वाले फकीर द्वारा अपनी रोज़ी-रोटी के लिए कच्चा निर्माण करवाकर कुछ व्यपारीयो को किराये पर दे दिया था। इस मुद्दे पर बात करते हुए वक़्फ़ बोर्ड उदयपुर ज़िला के चेयरमैन मुहम्मद सलीम शेख़ ने उदयपुर टाइम्स को बताया की देहलीगेट चौराहे पर मौजूद जमीन वक़्फ़ बोर्ड की है। इसको लेकर जयपुर की ट्रिब्यूनल कोर्ट में दवा लगाया गए हैं। शनिवार को नगर निगम द्वारा दुकानों को सीज करने की कार्यवाही वह कह कर की है की यहाँ बनी दुकानों में "वेवसायिक गतिविधियां" नहीं की जा सकती। बयान के मुताबिक वक्फ बोर्ड द्वारा जायदाद से कोई अनुचित लाभ नहीं उठाया जा रहा था। मोहम्मद सलीम ने यह भी बताया कि जमीन को वक़्फ़ बोर्ड का होना घोषित करने के फैसले के बाद, इसपर बनी दुकानों को बोर्ड द्वारा किराए पर दिया गया था, इस से आने वाले किराए में से 7.5 % बोर्ड के खाते में जाता है, जिसमे से कुछ पर्सेंट रेवेनुए के रूप में सेंट्रल गवर्नमेंट तक भी भी जाता है।  

बयान में कहा गया की इस फैसले के चलते, नगर निगम द्वारा वैध किरायेदारों के विरूद्ध कार्यवाही करना व्यपारी समाज के लिए रोष है, एवं समाज की संपति पर कब्ज़े की बदनियती है। जिस निर्माण को नगर निगम अवैध बता रहा है, वह नगर निगम के एक्ट सन् 2009 से भी पहले बनी हुई है। नगर निगम द्वारा 50-60 साल पुराने व्यपारीयो को डराना-धमकाना उचित नही है, एवं नगर निगम की यह कार्यवाही सुप्रिम कोर्ट के आदेश दिनांक 22.04.10 की अवेहलना है। उनका कहना है की इस कार्यवाही पर बोर्ड द्वारा कन्टेम्प्ट ऑफ कोर्ट का वाद प्रस्तुत किया जायेगा जिसके हर्जे-खर्चे की जिम्मेदारी नगर निगम के स्वंय की रहेगी। यह संयुक्त रूप से बयान जारी करते हुए मुस्लिम मुसाफिर खाने के पूर्व सदर हाजी ईब्राहिम खान,दिल्ली गेट कमिटी पूर्व सेक्रेट्री जहीरूद्वीन सक्का कोषाध्यक्ष पूर्व पार्षद नजर मोहम्मद सदस्य गयासुद्वीन आदि ने बयान जारी किये है।

शेख़ ने कहा की इस मामले को लेकर पूर्व में भी निगम को ये अवगत करवा दिया गया था की यह जमीम वक्फ बोर्ड की है। पूर्व भी एक वाद ट्रिब्यूनल कोर्ट में पेश किया गया था की इस जमीन पर बनी दुकानों में से कुछ दुकानों पर कब्ज़ा किया हुआ है, जिसका कब्जा खली करवाने के लिए ट्रिब्यूनल में अर्जी लगाई गई थी। साथ ही शनिवार को की गई कार्यवाही को लेकर कमेटी सदस्य जयपुर के लिए रवाना हो गए हैं और इस मामले की सुनवाई सोमवार को होनी है और इस दौरान उन्हें स्टे मिलने की पूरी उम्मीद है।