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हिमाचल प्रदेश चुनाव - 1977 से हर बार सत्ता परिवर्तन 

पिछले 70 सालो के इतिहास में कांग्रेस ने 50 साल और जनसंघ वाली जनता पार्टी और भाजपा ने 20 साल तक सत्ता का सुख भोगा है

 
प्रदेश की राजनीती में राजपूतो का वर्चस्व रहा है

हिमाचल प्रदेश का नाम सुनते ही ज़हन में बर्फीली पहाड़ियां और खूबसूरत वादियां आती है।  पर्यटकों और सेब के लिए मशहूर इस पहाड़ी राज्य में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। 17 अक्टूबर को निर्वाचन आयोग के चुनावो की घोषणा शुरू होते ही इस ठंडे राज्य में चुनावी गर्मी आ गई है। नेता लोगो ने कपड़ो की तरह पार्टी बदलने की परम्परा का विधिवत उद्घाटन भी कर लिया है।  

1952 से लेकर 1977 तक प्रदेश में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस पिछले पांच साल से सत्ता से बाहर रहकर 1977 के बाद लगातार सत्ता परिवर्तन की आस में सत्ता में लौटने को बेताब है तो पार्टी में टिकट के लिए मारामारी भी चरम पर है।  वहीँ सत्ता में बैठी भाजपा भी एंटी इंकम्बैंसी, आपसी सर फुटौवल और टिकट के लिए मारामारी की समस्या से अछूती नहीं है। 

ओपिनियन पोल की माने तो भाजपा फायदे में रहेगी हालाँकि कांग्रेस भी वीरभद्र सिंह उर्फ़ 'राजा साहब' के निधन के बाद उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह के नेतृत्व में बहुत पीछे नहीं है।  ऐसे में मुकाबला कांटे का माना जा रहा है। हिमाचल में 50 साल से भी अधिक समय तक कांग्रेस को अकेले अपने दम पर चलाने वाले पूर्व CM वीरभद्र सिंह बेशक इस विधानसभा चुनाव में नहीं हैं मगर कांग्रेस को 'राजा साहब' के नाम का सहारा है।

कांग्रेस हाईकमान भी जानता है कि पहाड़ों में करिश्माई नेतृत्व क्षमता वाले 'राजा साहब' के निधन के बाद हिमाचल में यह पहले विधानसभा चुनाव है और उनकी गैरमौजूदगी से पैदा हुए स्थान को भरना बहुत कठिन है। इसी वजह से हाईकमान ने उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह को न केवल हिमाचल कांग्रेस का प्रधान बनाया बल्कि टिकट वितरण में भी काफी हद तक उन्ही की चली है।  

इस चुनावो में राजा साहब की पत्नी और मंडी लोकसभा की सांसद प्रतिभा सिंह ही मुख्यमंत्री का चेहरा बनी हुई है। हालाँकि रामलाल ठाकुर, सुखविंदर सिंह सुक्खू, आशा कुमारी, मुकेश अग्निहोत्री और कॉल सिंह ठाकुर रेस में बने हुए है। 

इधर, भाजपा में प्रदेश के प्रमुख नेता प्रेम कुमार 'धूमल' और उनके परिवार अनुराग ठाकुर समेत कोई विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रहा है।  1984 के बाद पहली धूमल चुनाव नहीं लड़ रहे है फिर भी उनकी चर्चा चुनावी चौपाल में चल रही है। चुनाव नहीं लड़ने के बावजूद भी अनुराग ठाकुर भाजपा के संभावित सीएम फेस की रेस में मौजूद है। वर्तमान सीएम जयराम ठाकुर के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को दुबारा सत्ता में लाने की ही नहीं बल्कि अंदरूनी घमासान से निपटना भी चुनौती का विषय है।

पिछले 70 सालो के इतिहास में कांग्रेस ने 50 साल और जनसंघ वाली जनता पार्टी और भाजपा ने 20 साल तक सत्ता का सुख भोगा है। राजपूत जाति के नेताओ ने ही प्रदेश की बागडोर अब तक सम्हाली है।  हिमाचल प्रदेश के पहले सीएम कांगेस के यशवंत सिंह परमार 25 सालो तक राज्य के सीएम रहे है। 1952 से 1963 तक हिमाचल प्रदेश 'C' श्रेणी का राज्य था तब भी और 1963 से 1971 तक केंद्र शासित प्रदेश (विधानसभा के साथ) भी। हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा 1971 में प्राप्त हुआ तब भी पहले सीएम यशवंत सिंह परमार ही थे। 1977 में अल्प समय के ठाकुर रामलाल (92 दिवस)  तथा 1980 से 1983 तक कांग्रेस की तरफ से सीएम रहे है। 

1977 में जनता पार्टी की लहर में पहली बार राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ शांता कुमार पहले गैर कांग्रेसी सीएम बने।  1980 से 1983 तक पुनः सत्ता की बागडोर ठाकुर रामलाल ने संभाली। 1983 से कांग्रेस में वीरभद्र सिंह का उदय हुआ जो की 1983 से लेकर 2017 तक चार बार सीएम बने। 1983 में वीरभद्र सिंह पहली बार सीएम बने। उसके बाद 1993 से 1998, 2003 से 2007 तथा 2012 से 2017 तक वह सीएम रहे। वहीँ कांग्रेस के कद्दावर नेता और वर्तमान G-23 गुट के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा का भी प्रदेश की राजनीती में दखल रहा है।    

1977 के बाद राज्य में चुनाव दर चुनाव सत्ता परिवर्तन होता रहा है। भाजपा के शांता कुमार दो बार 1977 से 1980, 1990 से 1992) , प्रेम कुमार धूमल दो बार (1998 से 2003 तथा 2007 से 2012) मुख्यमंत्री रह चुके है। वहीँ 2017 से लेकर अब तक जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री है।  पर्यटन को छोड़ कर राज्य में दोनो पार्टी ने विकास के नाम पर वादों के अलावा कुछ ख़ास नहीं किया है। 

ख़ास बात यह है की 1977 के बाद दोनों में से कोई भी पार्टी लगातार दो बार सत्ता में नहीं लौटी। अब क्या जयराम ठाकुर यह परिपाटी बदल पाएंगे ? हिमाचल के इतिहास को देखते हुए तो कहा जा सकता है कि नहीं।  लेकिन राजनीती में कुछ भी स्थायी नहीं रहता।           

हिमाचल प्रदेश में जातिगत समीकरण

प्रदेश की राजनीती में राजपूतो का वर्चस्व रहा है। अब तक के सारे सीएम यशवंत सिंह परमार से लेकर जयराम ठाकुर तक  (ब्राह्मण शांता कुमार को छोड़कर) के सीएम इसी जाति से बने है।  अब यदि जातिगत समीकरणों की बात करे तो साल 2011 की जनगणना के मुताबिक हिमाचल में 50 फीसदी से ज्यादा आबादी सवर्ण मतदाताओं की है।  50.72 फीसदी इस आबादी में सबसे ज्यादा 32.72 फीसदी राजपूत और 18 फीसदी ब्राह्मण हैं। इसके अलावा अनुसूचित जाति की आबादी 25.22% और अनुसूचित जनजाति की आबादी 5.71% है। प्रदेश में ओबीसी 13.52 फीसदी और अल्पसंख्यक 4.83 फीसदी हैं। 

हिमाचल प्रदेश का चुनावी कैलेंडर 

हिमाचल प्रदेश में आगामी 12 नवंबर में एक ही चरण में पूरे राज्य की 68 सीटों पर मतदान है।  जिसके लिए नामांकन की आखिरी तारीख 25 अक्टूबर है।  27 अक्टूबर को स्क्रूटिनी के बाद नाम वापस लेने की आखिरी तारीख 29 अक्टूबर है।  वहीँ मतगणना 12 दिसंबर को है।  चुनाव और मतगणना के बीच के फासले में सम्भवतया गुजरात में चुनाव हो सकते है। 

68 में से 35 सीटों के जादुई आंकड़े पर कौनसी पार्टी पहुँचती है।  एंटी इंकम्बेंसी और सत्ता परिवर्तन की परम्परा जारी रहती है तो पिछले चुनाव में 21 सीटों पर जीतने वाली कांग्रेस का भाग्य खुल सकता है संघर्ष से जूझ रही कांग्रेस को छोटा प्रदेश ही सही कुछ तो राहत मिलेगी।  या फिर एंटी इंकम्बेंसी और अंतरकलह से जूझ रहे जयराम ठाकुर इतिहास बदलने में कामयाब रहेंगे इसका पता 12 दिसंबर को ही चलेगा। पिछले चुनावो में भाजपा को 44 सीट मिली थी।