स्थानीय मुद्दों को फोकस कर कर्नाटक की जीत का रास्ता तय किया कांग्रेस ने
जबकि भाजपा का फोकस परंपरागत रूप से राष्ट्रीय मुद्दों और धर्म पर आधारित रहा
कर्नाटक की जंग आखिरकार कांग्रेस ने जीत ली है। कांग्रेस को सभी वर्ग, सम्प्रदाय का समर्थन मिला। भाजपा के कोर वोट बैंक लिंगायत भी भाजपा से कुछ हद तक छिटक गया। एग्जिट पोल के नतीजों में जहाँ त्रिशंकु विधानसभा का अंदेशा जताया जा रहा था वहीँ कांग्रेस ने अकेले अपने दम पर बहुमत से 22 सीट अधिक यानी कुल 135 सीट हासिल की।
कांग्रेस की जीत का बड़ा श्रेय पार्टी द्वारा कर्नाटक के स्थानीय मुद्दों को पकड़ के चलने को जाता है। देश के अन्य हिस्सों की तरह महंगाई से त्रस्त कर्नाटक की जनता को जहाँ कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में 5 गारंटी योजना पेश की वहीँ पिछली भाजपा सरकार पर करप्शन के आरोपों को कांग्रेस ने अंत तक नहीं छोड़ा। कांग्रेस ने बोम्मई सरकार को 40% कमीशन की सरकार बताते हुए paycm जैसे कैंपेन चलाये। वहीँ भाजपा के पास इन मुद्दों की काट के जवाब वही परंपरागत मुद्दे थे जिनमे राष्ट्रवाद, हिजाब, टीपू सुल्तान, बजरंग दल पर बैन इत्यादि जिनका जनता पर कोई असर नहीं पड़ा, वहीँ कांग्रेस की जीत में जेडीएस के कमज़ोर पड़ने से जेडीएस का वोट कांग्रेस में शिफ्ट होना भी एक पहलु हो सकता है।
क्या है कांग्रेस की 5 गारंटी कर्नाटक में
कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में गृह ज्योति, गृह लक्ष्मी, अन्न भाग्य, युवा निधि, शक्ति योजना नामक पांच गारंटी योजना को लागू करने का वादा किया था वह पांच गारंटी योजना इस प्रकार है।
- गृह ज्योति योजना के तहत घरो में 200 यूनिट फ्री बिजली देने का वादा।
- गृह लक्ष्मी योजना के तहत सभी परिवार की महिला प्रमुखों को दो हज़ार रूपये मासिक देने का वादा।
- अन्न भाग्य योजना के तहत सभी बीपीएल परिवारों को प्रति माह 10 किलो अनाज देने का वादा।
- युवानिधि योजना के तहत बेरोज़गार स्नातकों को 3000 तथा बेरोज़गार डिप्लोमा धारको को 1500 प्रतिमाह देने का वादा।
- शक्ति योजना के तहत सभी महिलाओ को कर्नाटक की सरकारी बसों में KSRTC और BMTC की बसों में मुफ्त यात्रा का वादा।
इस प्रकार कांग्रेस ने महिलाओ और बेरोज़गारो के साथ महंगाई की मार झेल रहे मध्यम वर्ग को भी साधा। कांग्रेस ने अपना कैंपेन स्थानीय मुद्दों को स्थानीय नेताओ डी के शिवकुमार और सिद्धारमैया जैसे नेताओ के भरोसे ही चलाया। हालाँकि सोनिया समेत राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी ने भी जनसभाए और रोड शो किये लेकिन मुद्दे स्थानीय ही रहे। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के गृह राज्य होने का फायदा भी कांग्रेस को थोड़ा बहुत मिला।
इसके उलट भाजपा का कैंपेन मोदी शाह के आसपास ही रहा। कर्नाटक के कद्दावर लिंगायत नेता येदिरुप्पा को किनारे करना और उन्हें सीएम पद से विदा करना भी भाजपा को भारी पड़ा। वहीँ कांग्रेस ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी राज्य की भाजपा सरकार को जमकर घेरा जिसकी काट भाजपा नहीं खोज पाई। कांग्रेस के एसडीपीआई (इस्लामिक संगठन) और बजरंग दल पर ज़रूरत पड़ने पर बैन लगाने के मुद्दे पर भाजपा ने बजरंग दल को बजरंग बलि से जोड़ने की कोशिश की लेकिन भाजपा को सफलता नहीं मिली।
कर्नाटक की जीत का आगे क्या असर रहेगा
इसी वर्ष राजस्थान, मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में चुनाव प्रस्तावित है। जहाँ दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है जबकि मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार है। यहाँ भी कांग्रेस की रणनीति स्थानीय मुद्दों और स्थानीय नेताओ पर ही फोकस रहेगी। जबकि भाजपा अब तक सभी राज्यों में चुनाव पीएम मोदी को ही केंद्र में रखकर रणनीति बनाती है। अब शायद इस नीति में बदलाव देखने को मिले। हिमाचल और उत्तराखंड में भी कांग्रेस न स्थानीय मुद्दों पर ही चुनाव लड़ा था जिनमे हिमाचल में सफलता मिली थी हालाँकि उत्तराखंड में पीएम मोदी के नाम पर भाजपा ने सफलता हासिल की थी।
राजस्थान में क्या होगा असर
राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार की योजना महंगाई राहत कैंप भी कर्नाटक के 5 गारंटी वाली योजना की तरह 200 यूनिट फ्री बिजली, बीपीएल को 500 रूपये में सिलेंडर, मुख्यमंत्री चिरंजीवी योजना कारहर साबित हो रही है। यहाँ पर गहलोत पायलट के बीच अनबन और लड़ाई कांग्रेस की गले की फांस बनी हुई है। जिसका निपटारा क्या और कैसे होता है यह देखना अभी बाकी है।
जिस तरह भाजपा ने कर्नाटक में येदिरुप्पा को किनारे किया और जो नतीजा सामने आया उसके मद्देनज़र राजस्थान में वसुंधरा राजे की पूछ परख बढ़ना तय है। राजस्थान में वसुंधरा अब भी भाजपा का बड़ा चेहरा है। जिनको नज़रअंदाज़ करने का रिस्क अब भाजपा शायद न ले।