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दशहरे का त्योहार: एक कदम मन के रावण के दहन की ओर......

दशहरे पर पंकज कुमार मालपानी का विशेष आलेख

 
नोट : इस आलेख में समस्त विचार लेखक के अपने स्वयं के है

दशहरा का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है। हम हर साल दशहरा मनाते हैं, हर साल रावण का पुतला दहन करते हैं लेकिन सोचने वाली बात यह है कि हम हर साल रावण का पुतला क्यों जलाते है? जब किसी परिवार में मौत हो जाती है तब हम उसका पुतला हर साल नहीं जलाते है। इससे यह सिद्ध होता है कि रावण के जो विकार और बुरे संस्कार है उसेे खत्म करने के लिए हम रावण का पुतला जलाते है।

ऐसा माना जाता है कि रावण को कई प्रकार की सिद्धियां प्राप्त थी। वह बहुत ज्ञानी था। रावण को चारों वेदों और संस्कृत का भी ज्ञान था। उसने शिव तांडव, युद्धीश तंत्र और प्रकुठा कामधेनु जैसी कृतियों की रचना की, लेकिन इतना ज्ञानी और शक्रिशाली होने के बावजूद भी उसका पतन हुआ। जिसका एक मात्र कारण है उसका अहंकार।

अहंकार किसी भी मनुष्य के पतन का सबसे बड़ा कारण है। किसी को अपने पद का, किसी को अपने ज्ञान का तो किसी को अपने अच्छे रूप का अहंकार है। मनुष्य ये मानता है कि मैं इस घर का मालिक हूं, मैं इस कंपनी का प्रबंध निदेशक हूं, मैं इतनी धन संपत्ति का मालिक हूं, मेरे पास इतना ज्ञान है, मैं इस कॉलेज का प्रिंसिपल हूं, मैं सबसे तेज धावक हूं, मैं दुनिया में सर्वश्रेष्ठ हूं, मैं दुनिया में नंबर एक पर हूं, हर बात में हर स्थिति में सिर्फ मैं, मैं, मैं........। बस यही अहम् की भावना ही अहंकार को जन्म देती हैं और अहंकार के साथ साथ काम, क्रोध, लोभ और मोह जैसे भाई और बहन भी हो तो निश्चित रूप से ये सभी विकार मनुष्य के पतन का कारण बनते हैं।

मनुष्य का अस्तित्व इस प्रथ्वी पर नगण्य समान है। इस समय पूरी प्रथ्वी पर कुल जनसंख्या 850 करोड़ है। अगर सिर्फ एक मनुष्य के अस्तित्व की गणना करे तो एक में 850 करोड़ का भाग लगाना होगा तो जो परिणाम आएगा वह नगण्य मात्र आएगा। मनुष्य यह मानता है कि वह इस प्रथ्वी पर अनंत काल के लिए आया है, जबकि सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि हर मनुष्य इस संसार में एक निश्चित अवधि के लिए मात्र मेहमान बनकर आया है। यहां सभी मनुष्य अपनी अपनी एक विशेष भूमिका निभा रहे हैं। सभी मनुष्यो में दया, सच्चाई, प्रेम, पवित्रता, सुख और शांति की भावना होनी चाहिए लेकिन इस कलयुग मे मनुष्य का मन चारों और से काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, छल आदि रावण के संस्कारों से घिरा हुआ है।

अगर रावण के इन बुरे संस्कारों पर विजय प्राप्त करना है, तो हमे अच्छे संस्कारों को ज्यादा से ज्यादा उपयोग मे लाना होगा। हम सभी मनुष्यो मे दया, प्रेम , पवित्रता, सुख और शांति की भावना होनी चाहिए।

एक साधारण इंसान की यह मानसिकता होती है कि अगर सामने वाला मनुष्य पहले प्रेम, सम्मान और मदद दे तभी वह प्रत्युत्तर मे दूसरो को प्रेम, सम्मान और मदद करेगा। इस तरीके से तो कभी भी दूसरे मनुष्यो मे प्रेम , सम्मान और सच्चाई की भावना पैदा नहीं हो सकती है।

मेरे विचार के अनुसार अगर हर मनुष्य यह सोच ले कि वह स्वयं दूसरो से प्रेम और सच्चाई के साथ व्यवहार करेगा और इसकी शुरुआत स्वयं से करेगा। तो निश्चित रूप दूसरो मे भी प्रेम,सच्चाई और सम्मान की भावना जाग्रत होगी, इससे वातावरण भी प्रेम, पवित्र और सच्चाई युक्त हो जाएगा। जिससे भविष्य मे आने वाली परिस्थितियां भी इसी वातावरण में पलेगी और धीरे धीरे चारों और प्रेम, पवित्रता और सच्चाई का वातावरण हो जाएगा। 

जिस तरह तराजू के दोनों पलड़ो मे जिस तरफ का वजन ज्यादा होता है उस और का पलड़ा नीचे की और झुक जाता है उसी प्रकार जिस समय इस वातावरण में प्रेम, पवित्रता , सच्चाई , सुख और शांति का कुल भार लोगो मे फैली हुई काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष के कुल भार से ज्यादा हो जाएगी। उसी समय अपने आप ही वातावरण में अच्छाई की अधिकता हो जाएगी और धीरे धीरे अच्छाई की तुलना में बुराई की मात्रा कम होती जाएगी । उस वक्त सही मायने में हम कह सकते है हमने बुराई पर अच्छाई की विजय प्राप्त कर ली है। उस वक्त हमे किसी रावण को ना तो मारने की जरूरत पड़ेगी और ना ही किसी रावण का पुतला जलाने की आवश्यकता होगी क्योंकि उस समय हम सभी राम समान बन जाएंगे। सभी मनुष्यो का सबसे प्रमुख और अंतिम लक्ष्य भी यही है।

“दोस्तों, बूमरेंग एक ऐसी वस्तु है जिसे आकाश मे फेंका जाय तो वह फेकने वाले के पास ही वापस आती है। आपकी जिंदगी भी एक बूमरेंग के समान है, इसलिए अगर आप दूसरो से अच्छाई की आशा करते हो, तो वातावरण में अच्छाई फेकने की पहल भी आप स्वयं को ही करनी पड़ेगी। अब देखने वाली बात ये है कि नंबर वन की दौड़ की इस प्रतियोगिता में अच्छाई फेंकने मे पहल कौन करता है और नंबर वन कौन आता है“।

नोट : इस आलेख में समस्त विचार लेखक के अपने स्वयं के है  

Article By-पंकज कुमार मालपानी

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