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मिज़ोरम: 27 सालो में एक भी महिला चुनाव नहीं जीत पाई, क्या इस बार समाप्त होगा सूखा ?

2014 के उपचुनाव में वनलालावमपुई चावंगथु ने ह्रांगतुर्जो सीट से जीत कर मंत्री बनी

 

देश में नवंबर 2023 में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के साथ मिजोरम के भी चुनाव होने वाले है। जहाँ राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की चुनावी चर्चा सारे देश में हो रही है वहीँ मिज़ोरम के चुनावो की चर्चा बहुत कम हो रही है। 40 सीटों वाली विधानसभा के इस राज्य का एक दिलचस्प आंकड़ा यह है की पिछले 27 सालो में मिज़ोरम में कोई भी महिला चुनाव नहीं जीत पाई है। हालाँकि 2014 के उपचुनाव में एकमात्र महिला वनलालावमपुई चावंगथु (Vanlalawmpuii Chawngthu) ने ह्रांगतुर्जो (Hrangturzo) सीट से जीत कर मंत्री बन पाई। 

2018 के मिज़ोराम विधानसभा चुनाव में कुल 40 सीटों में से मिज़ो नेशनल फ्रंट ने 26 सीटे जीतकर सरकार बनाई थी। जबकि ज़ोराम पीपल्स मूवमेंट ने 8 सीट जीती थी वहीँ 5 सीट पर कांग्रेस और 1 सीट भाजपा जीती थी। 2018 में मिज़ो नेशनल फ्रंट के ज़ोरमथंगा मुख्यमंत्री बने थे। मिज़ोरम में 7 नवंबर 2023 को मिज़ोरम में मतदान होने है।

2018 के मिज़ोरम चुनाव में 18 महिलाओ ने चुनाव लड़ा था लेकिन एक भी महिला चुनाव जीतकर विधायक नहीं बन पाई थी। इसके पीछे मिज़ोरम राज्य में पितृसत्तामक समाज है। हालाँकि मिज़ोरम में प्रति 1000 पुरुषो के अनुपात में 975 महिला है। मिज़ोरम में पिछले 36 सालो में मंत्रिमंडल में केवल दो महिलाएं थी। 

मिज़ोरम के राज्य मंत्रिमंडल में पहली बार 1987 में लालहिमपुई हमार शामिल हुई थी। इसके बाद 2014 उपचुनाव में ह्रांगतुर्जो सीट से कांग्रेस की टिकट से उपचुनाव जीत कर वनलालावमपुई चावंगथु मंत्री बनी थी। उन्हें कांग्रेस सरकार में रेशम उत्पादन, मत्स्य पालन और सहकारी विभाग में मंत्री बनाया गया था। 

केंद्र शासित मिज़ोरम में पहला चुनाव 1972 में हुआ था। उस समय 4 महिलाओ ने चुनाव लड़ा था लेकिन चारो की ज़मानत ज़ब्त हो गई थी। 1978 के दूसरे चुनाव में मिज़ोरम नेशनल फ्रंट की टिकट पर सेरछिप विधानसभा सीट से एल थानमावी ने चुनाव जीता था। एल थानमावी मिज़ोरम की न सिर्फ पहली महिला विधायक बनी बल्कि पहली महिला मंत्री भी बनी। 

1984 के चुनाव में तो किसी महिला ने चुनाव ही नहीं लड़ा। 1986 में मिज़ोरम को केंद्र शासित प्रदेश से पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद 1987 में पहला चुनाव हुआ उनमे भी किसी महिला प्रत्याशी का खाता नहीं खुला। 1989 में 4 महिलाओ ने चुनाव लड़ा लेकिन जीत नहीं पाई वहीँ 1993 में 3 महिलाओ ने  चुनाव लड़ा लेकिन जीत हासिल नहीं हुई। 

1998 में 10 महिलाओ ने चुनाव लड़ा लेकिन कोई चुनाव नहीं जीत पाई। इसी प्रकार 2003 में 7 महिलाओ ने चुनाव लड़ा लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। 2008 में 8 महिलाओ ने चुनाव लड़ा लेकिन जीत तब भी हासिल नहीं हुई। 

2013 में 6 महिलाओ ने चुनाव लड़ा जिनमे से जीत तो दूर 4 महिलाओ की ज़मानत तक ज़ब्त हो गई। 2018 में सबसे अधिक 18 महिलाओ ने चुनाव लड़ा लेकिन कोई महिला चुनाव जीत कर विधानसभा नहीं पहुँच पाई यहाँ तक कि 2014 में उपचुनाव जीतने वाली वनलालावमपुई चावंगथु भी ह्रांगतुर्जो (Hrangturzo) सीट से चुनाव हार गई। 

उम्मीद है 2023 में कोई न कोई महिला चुनाव जीतकर हार के इस सूखे को समाप्त करेंगी। आपको बता दे ईसाई बहुल इस राज्य में साक्षरता प्रतिशत 91% है इसके बाजजूद भी महिलाओ की नगण्य भागीदारी चिंता का विषय है। महिलाओ के लिए आरक्षण ही इस राज्य में महिला नेता और राजनीती में महिलाओ की भागीदारी सुनिश्चित कर सकती है।