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16 नवम्बर | राष्ट्रीय प्रेस दिवस - लोकतंत्र का अहम्, स्वतंत्र एवं ज़िम्मेदार स्तम्भ

प्रेस पत्रकारिता समाज के लिए एक आईना है

 

सन् 2021 की विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 180 देशों में 142 स्थान पर है...

आज 16 नवम्बर यानी राष्ट्रीय प्रेस दिवस - चलिए पहले तो इस राष्ट्रीय प्रेस दिवस के बार में जान लेते है की क्यों मनाया जाता है और कब स्थापना हुई थी।

दरअसल 1956 में प्रथम प्रेस आयोग ने भारत में प्रेस यानी पत्रकारिता के मूल उद्देश्य को निभाने हेतु भारतीय प्रेस परिषद की स्थापना की सिफारिश की। प्रथम प्रेस आयोग ने निष्कर्ष निकाला था कि पत्रकारिता में पेशेवर नैतिकता को बनाए रखने का सबसे अच्छा तरीका वैधानिक अधिकार के साथ एक निकाय को अस्तित्व में लाना होगा, मुख्य रूप से उद्योग से जुड़े लोगों का, जिनका कर्तव्य होगा मध्यस्थता। इसके लिए, 4 जुलाई 1966 में भारतीय प्रेस परिषद की स्थापना की गई, जिसने 16 नवम्बर 1966 से विधिपूर्वक काम शुरू किया था।  इसलिए 16 नवम्बर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस मनाया जाता है।

प्रेस, पत्रकारिता और मिडिया - इनका पहला काम होता है जनता तक सही शुद्ध पूर्ण सटीक जानकारी पहुंचाना।  एक पत्रकार की कलम उसका हथियार होता है,  जिसके ज़रिये अपने विचारों, अपनी खोज, सूचनाएं, आदि वह जनता तक पहुंचाता है।  लोगो को  सच्चाई से अवगत करवाना या यूँ कह लीजिये की प्रेस पत्रकारिता समाज के लिए एक आईना है।  पत्रकारिता, जो लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहलाती हैं, खबर और जानकरी से लोगो को जोड़े रखता है।

लेकिन वर्तमान में भारत में पत्रकारिता की क्या स्थिति है?

क्या पत्रकार अपना काम पूर्ण रूप से कर रहा है? मैं आलोचना करने योग्य तो नहीं लेकिन लोगो के विचारो और प्रेस शब्द को लेकर उनके मन में क्या छवि है इसके आधार पर इतना जरूर कहूँगी की आज कल की पत्रकारिता या प्रेस अपने व्यक्तित्व के अनुसार शायद कार्य नहीं कर रही।  आज की स्थिति को देखते हुए यही लगता है की पत्रकार - पत्रकारिता कम कर रहे है चाटुकारिता ज़्यादा कर रहे है।  इनका काम सच्चाई से रूबरू करवाना है। लेकिन आज कल घटना को उस तरह प्रस्तुत किया जाता है की मानो कोई सीरियल या डेली सोप की स्क्रिप्ट लिख रहे हो। सीधी साधी भोली जनता का अपने निहित स्वार्थ के चलते एक प्रकार से ब्रेन वाश किया जाता है ।  प्रत्येक चेंनल ने दिमाग में अलग छवि बना रखी है, जैसे मान लीजिये कोई धर्म से जुडी खबरों को देखना पसंद करता है, तो आज के समय में ज्यादातर लोग उन चैनलों का समर्थन करते हैं जो धार्मिक पूर्वाग्रह के मामले में अपनी धारणाओं और दृष्टिकोणों को समर्थन, औचित्य और आवाज देते हैं।

यकीन माने यह काम नहीं प्रेस का। कहने का अर्थ है की लोगो को इन चीज़ो में इतना उलझा के रखा हुआ है की बाकी जो बुनियादी मुद्दे है, उनकी तरफ जनता जनार्दन का ध्यान ही नहीं जाता। पढ़े लिखे लोगो को दिखाते हैं, बेतुकी बातें करते हुए। आज के समय में यह छवि बनी हुई है की किसी व्यक्ति से पूछा जाए की प्रेस सुन कर आपके ज़ेहन में क्या ख्याल आते है, तो सीधा जवाब यही है की "बिकाऊ मीडिया" जबकि एक टाइम पर प्रेस अपना काम इतने सही तरीके से करता था की विश्वसनीय सूत्र जो है वो मीडिया होती थी।

सुचना का प्रसारण आज से नहीं बल्कि पुराने शासन काल में भी सुचना का आदान प्रदान का काम होता था, परन्तु जैसे जैसे तकनीकी ने अपना पैर इस क्षेत्र में पसारे है वैसे वैसे इस क्षेत्र में मानो प्रतिस्पर्धा बढ़ गयी है। पत्रकारिता को लोगो ने खेल समझ लिया है, बस होड़ मची हुई है। यही प्रतिस्पर्धा लगी रहती है की हमारे चेंनल को टीआरपी मिले, हमारा चेंनल सुर्खियाँ बटोरे, लोगो का ध्यान सिर्फ हम पर बना रहे। जबकि वाहवाही बटोरना प्रेस का हिस्सा नहीं है इसका काम सच को सामने लाना है, लेकिन आज कई पत्रकार वास्तविक मुद्दों को छुपा कर बेतुके मुद्दों को हवा दे रहे है। जनता का ध्यान भटका कर उनके साथ धोखा कर रहे है। पत्रकारिता की वर्तमान में छवि जो है वो सिर्फ राजनैतिक षड्यंत्र या खेल का मोहरा ही समझ लीजिये।

खैर अंत में सिर्फ इतना कहना है, की पत्रकारिता लोकतंत्र का अभिन्न अंग है, इसके ज़रिये देश दुनिया की जनता के समस्याओं के विषयो पर विचारो की अभियक्त होती है। प्रेस दिवस पर सभी सच्चे और जांबाज प्रत्रकारों को शुभकामनाएँ। मुझे उम्मीद है कि एक पत्रकार होने के नाते मैं और मेरे साथी पेशेवर पत्रकार अपना कर्तव्य पूरी ईमानदारी से निभाए। हम समाज को सही और सच्ची खबरों से रूबरू करवाते रहे।