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पायलट का अनशन कहीं नई उड़ान की तैयारी तो नहीं  

अनशन के दौरान पायलट ने न तो कांग्रेस के झंडे का सहारा लिया न ही मंच पर किसी बड़े कांग्रेसी नेता और न हीं गाँधी परिवार के किसी सदस्य की तस्वीर लगाईं

 

मंगलवार 11 अप्रैल को जयपुर में सचिन पायलट ने अपनी ही सरकार के मुखिया के खिलाफ वसुंधरा राजे पर कार्यवाही न करने का आरोप लगाकर 5 घंटे तक अनशन कर न सिर्फ जयपुर बल्कि दिल्ली तक कांग्रेस की नींद हराम कर दी। पायलट का अनशन कहीं नई उड़ान की तैयारी तो नहीं। क्यूंकि पिछले माह 17 मार्च 2023 को कांग्रेस के आधिकारिक इंस्टाग्राम अकाउंट से एक वीडियो शेयर किया गया था, जिसमें कहा गया था 'नई चुनौतियों के लिए तैयार, 2023-28 राजस्थान में गहलोत फिर से'। 

वीडियो जारी होने के बाद तय माना जा रहा है कि सीएम अशोक गहलोत कांग्रेस आलाकमान को संतुष्ट करने में सफल रहे हैं कि अगले विधानसभा का चुनाव उनके चेहरे पर ही लड़ा जाएगा। कल भी पायलट के अनशन के बीच गहलोत ने सोशल मीडिया पर विज़न 2030 जारी किया जिसमे राजस्थान को नंबर 1 राज्य बनाने का रोडमैप बताया। 

दरअसल कल मंगलवार को जयपुर के शहीद स्मारक पर पायलट ने अपनी सरकार पर पिछली भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान बहुचर्चित 45 हज़ार करोड़ के खनन घोटाले की जांच नहीं कराने को लेकर अनशन किया था। एक तरह से उन्होंने गहलोत सरकार पर वसुंधरा राजे के कार्यकाल में हुए घोटाले की जांच न करने के पीछे गहलोत और वसुंधरा की मिलीभगत होने का आरोप लगाया है। 

इस अनशन और प्रदर्शन के दौरान पायलट ने न तो कांग्रेस के झंडे का सहारा लिया न ही मंच पर किसी बड़े कांग्रेसी नेता और न हीं गाँधी परिवार के किसी सदस्य की तस्वीर लगाईं। मंच पर बड़ी तस्वीर महात्मा गाँधी की थी। वहीँ ओबीसी वर्ग को साधने के लिए मंच पर महात्मा ज्योति बा फुले की तस्वीर थी। हलांकि कल महात्मा ज्योति बा फुले की पुण्यतिथि भी थी। 

पायलट के इस अनशन पर कांग्रेस का कोई बयान नहीं आया है। कल दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पवन खेड़ा ने पायलट के इस कदम पर कोई रिएक्शन नहीं दिया। वहीँ राजस्थान के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने सिर्फ इतनी ही प्रतिक्रिया दी है की 'जो करना है करेंगे, अभी जानकारी नहीं ली है की पायलट ने क्या बोला है।" हालाँकि अनशन से पूर्व कांग्रेस आलाकमान ने आपत्ति ज़रूर जताई थी। 

2023 के  अप्रैल के मौसम की तरह पल पल बदलते सियासी घटनाक्रम में अब सचिन के अनशन को राजस्थान में तीसरे मोर्चे की संभावना को बल मिल रहा है। आरएलपी के हनुमान बेनीवाल कई बार पायलट को आवाज बुलंद करने की बात कह चुके हैं। वहीँ राजस्थान में सम्भावना तलाशती और दो दिन पूर्व ही राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त करने वाली आम आदमी पार्टी की नज़र भाजपा कांग्रेस से नाराज़ या रूठे हुए नेता की तरफ है। वहीँ हनुमान बेनीवाल भी आम आदमी पार्टी से कई बार नज़दीकी जाता चुके है। 

ऐसे में यदि चुनाव से पहले तीसरा मोर्चा खड़ा होता है तो पायलट उस मोर्चे का नेतृत्व कर सकते हैं जिनमे आरएलपी, आम आदमी पार्टी, दक्षिणी राजस्थान की बीटीपी और यूपी से लगते कुछ क्षेत्रो में प्रभावी बीएसपी के शामिल होने की सम्भावना हो। हालाँकि 1993 के बाद राजस्थान में तीसरे मोर्चे या भाजपा कांग्रेस के अलावा कोई पार्टी दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई है। लेकिन राजनीती में न तो कुछ स्थाई होता है और न कुछ असंभव होता है। 

पायलट अगर राजस्थान में अपना अलग खेमा बनाते हैं तो कांग्रेस का ही नहीं बल्कि बीजेपी को भी नुकसान पहुंचाएंगे। युवाओ में खासे लोकप्रिय सचिन पायलट राजस्थान की 15-17 गुर्जर बाहुल्य सीट समेत कम से कम 40 से 45 सीटों को सीधे प्रभावित कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त लगभग 18 से 22 सीटें ऐसी हैं जहां गुर्जर दूसरे या तीसरे स्थान पर आते हैं। वहीँ मध्य और पूर्वी राजस्थान की कई ऐसी सीटों पर पायलट की अच्छी पकड़ है जहां मुस्लिम और गुर्जर समुदाय काफी प्रभावी हैं। 

जाट नेता हनुमान बेनीवाल की आरएलपी ने पिछले चुनावो में 3 सीट हासिल की थी। उसके बाद लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन कर नागौर सीट जीती थी। किसान आंदोलन के बाद भाजपा से किनारा कर चुकी आरएलपी ने उपचुनाव में खींवसर सीट अपने नाम की। इसके अलावा बाकी सीटों पर हुए चुनाव में भी जबरदस्त वोट हासिल करते हुए दोनों पार्टियों को नुकसान पहुंचाया। सरदारशहर में हुए पिछले उपचुनाव में 46 हजार वोट लेकर आई थी। जबकि जीत का अंतर 17 हजार के करीब था। इसी तरह वल्लभनगर में तो आरएलपी ने 45 हजार से ज्यादा वोट हासिल कर दूसरे स्थान पर रही थी। इसी तरह सुजानगढ़ में 32 हजार और सहाड़ा में 12 हजार वोट आरएलपी ने हासिल किए हैं।   

इसी प्रकार पिछले चुनाव में भारतीय ट्राइबल पार्टी ने पिछले चुनावो में दक्षिणी राजस्थान में दो सीट हासिल की थी। धरियावद उपचुनाव में बीटीपी के बागी थावरचंद ने दूसरे स्थान पर रहकर दोनों ही पार्टी की नींद उड़ा दी थी। आदिवासियों में बढ़ते प्रभाव के चलते बीटीपी की नज़र उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ की कम से कम 16 सीट पर प्रभावी रह सकती है।  

पिछले चुनावो में 6 सीट जीतने वाली बसपा के हाथ में अब कुछ नहीं है।  उसकी पार्टी की टिकट पर जीते सभी 6 विधायक राजस्थान के जादूगर अशोक गहलोत से जादू से प्रभावित होकर कांग्रेस में शामिल हो चुके है।  अब बीएसपी चुनाव लड़ती है उन्हें तीसरे मोर्चे में शामिल होने के अलावा कोई विकल्प नहीं दिख रहा है।  

असद्दुद्दीन ओवैसी की नज़र भी राजस्थान की मुस्लिम बाहुल्य सीट पर है और उन्होंने चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर दिया है। लेकिन ओवैसी की यहाँ कोई जनाधार नहीं है।  न ही प्रदेश की मुस्लिमो में ओवैसी का कोई प्रभाव है। इसलिए तीसरा मोर्चा बनता भी है तो ओवैसी को उस मोर्चे में शायद ही कोई भाव मिले।