चिता को आग नहीं, मरीज़ को दवा नहीं
जहाँ एक तरफ देश में लोग कोरोना जानलेवा महमारी से लड़ रहे है जहाँ देश की जनता इस पीडितों की मदद के लिए जद्दो-जहद कर रही है जहां हॉस्पिटल सरकार आमजन से लेकर सभी मदद के लिए आगे आ रहे है। कोरोना कि दूसरी लहर में इतने कोरोना संक्रमण पीड़ितों की संख्या इतनी बढ़ हुई है की मानो ऐसा लगता है की मृत्यु काल का साया मंडरा रहा हो। देश में इस कोरोना की भयावह स्थिति है की श्मशान में चिता को अग्नि और मय्यत को कफ़न नसीब नहीं हो रहा है। लेकिन ऐसे खौफनाक काल में भी इंसानियत की चिता जल गयी और इंसानियत की रूह कब्र में दफ़न हो गयी है।
कुछ लोग स्वार्थ और लालच के चलते इतने अंधे हो चुके है की उन्हें इतना एहसास नहीं है की वो किसी की ज़िन्दगी से खेल रहे अब आप कहोगे की ये में क्या कह रही ? हाँ और नहीं तो क्या ... कोरोना संक्रमण के दौरान कोरोना मरीज़ो को लगने वाले रेमडीसीवीर इंजेक्शन की कालाबाज़ारी हो रही है। एक तरफ कोरोना पीड़ित मरीज़ इस खौफनाक जानलेवा बीमारी के जीवन मृत्यु की डोर पर झूल रहे वही दूसरी और इंसानियत के दुश्मन इस कालाबाजारी करते हुए बाज़ नहीं रहे है।
अभी हमारे उदयपुर शहर में ही पिछले दो दिनों से रेमेडीसीवीर की कालाबाज़ारी का मसला अख़बार में छाया हुआ है। पुलिस मुख्य अभियुक्त जिनमे एक डॉक्टर और बाकी नर्सिंगकर्मी और दलाल शामिल है, पांच सात लोगो को गिरफ्तार भी कर चुकी है। पुलिस की इस त्वरित कार्यवाही से उम्मीद है की ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो। लेकिन इस घटनाओ से के बात तो साफ़ है की वह डॉक्टर और नर्सिंगकर्मी जिन्हे हम धरती का भगवान कहते है वह भी अब पैसो के पुजारी बन चुके है। रेमेडीसीवीर ही नहीं प्राणवायु ऑक्सीजन तक के सौदे यह कर लेते है।
राजस्थान राज्य में कोरोना के बढ़ते मामलो में अचानक से Remdesivir और tocilizumab की मांग बढ़ गयी है। पहले चिकित्सा एंव स्वास्थ्य विभाग Remdesivir दवाई से संबंधित नोटिस जारी किया था। विभाग ने दिनांक 13-4-2021 को Remdesivir, tocilizumab इन्जेक्शन की कालाबाजारी को रोकने के लिए एक नोटिस जारी किया था। जिसके तहत कहा गया था की निजी क्षेत्र के जिन चिकित्सालयों को मरीजों के उपचार हेतु रेमडीसिवर इन्जेक्शन की आवश्यकता है उन्हें अपनी मांग जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी एवं औषधि नियंत्रण अधिकारी को उपलब्ध करानी होगी। उक्त मांग को सम्बंधित जिले के दवा स्टॉकिस्ट द्वारा संबंधित सीएण्डएफ को भेजी जाएगी। जहां से उपलब्धतानुसार अधिकतम दो दिवस के उपयोग हेतु इन्जेक्शन का स्टॉक जारी किया जाएगा। इसके साथ ही बताया गया था कि Remdesivir, tocilizumab इन्जेक्शन का किसी भी प्रकार से ऑवर द काउन्टर बेचान नहीं किया जाएगा।
कुछ दिनों बाद फिर से नोटिस जारी किया जाता है की दिनांक 15-4-2021 को चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी की ओर से दूसरा नोटिस “कारण बताओ नोटिस” जारी किया जाता है जिसमें बताया जाता है कि निजी चिकित्सालयों द्वारा Remdesivir इन्जेक्शन की मांग हेतु मरीजों के परिजनों को अधोहस्ताक्षरकर्ता के कार्यलय में भेजा जाता है जो कि बिल्कुल गलत है। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की ओर से 2 नोटिस जारी होने के बाद 16-4-2021 एक ओर नोटिस जारी किया जाता है जिसमें साफ़ है की चिकित्सा विभाग अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हटता हुआ नज़र आ रहा है। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी तीसरे नोटिस में लिखा गया है कि कोविड-19 के संक्रमण के उपचार में काम आने वाली दवा Remdesivir, tocilizumab प्राइवेट हॉस्पिटल स्टॉकिस्ट से सीधे खरीद सकगें।
अब सवाल ये उठता है की Remdesivir, tocilizumab इन्जेक्शन का जिम्मा निजी अस्तपातलो को सौंप कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो गए है ? क्या Remdesivir, tocilizumab इन्जेक्शन की कालाबाज़ारी नहीं होगी ? क्या अब ये कालाबाजारी करने वाले इस का फायदा नहीं उठाएंगे ? क्युकी जाहिर सी बात है आये दिन अखबारों में मीडिया कर्मी और पुलिस इन सौदागरों की धड़ पकड़ कर रहे है ? क्या चिकित्सा विभाग इन को मामलो को देख कोई कड़ा कदम नहीं उठाएगा ? क्या पीड़ित के परिजन को मूल्य दर से ज़्यादा की कीमत चुकानी होगी ? हालाँकि अपने परिजन के लिए वो हर कीमत चुकाने को तैयार होंगे लेकिन सोचने वाली बात यह है की इन कालाबाज़ारी की रोक ले लिए सरकार क्या कर रही है? आये दिन कोरोना का आकड़ा बढ़ता जा रहा है इस बीमारी की त्रासदी में कितने लोगो ने जान गवा दी है लेकिन इन हालत में भी लोग अपने स्वार्थ देखना नहीं छोड़ रहे है। उदयपुर जयपुर जोधपुर न जाने कितने शहरों में कालाबाज़ारी चल रही है ये तो सिर्फ राजस्थान की बात हो रही है ऐसे भारत के कितने राज्य है जहाँ लोग सौदेबाज़ी कर रहे है।
क्या सरकार, प्रशासन और पूरा तंत्र अपना कर्तव्य निभा रहे है ? क्यों देश में ऑक्सीजन, रेमेडीसीवीर, वेंटिलेटर की कमी हो गयी। क्या पूरा तंत्र ही चरमरा गया या पूरा सिस्टम ही वेंटिलेटर पर पहुँच गया है। क्यों नहीं वक़्त रहते हमने अस्पताल बनवाये ? क्यों नहीं स्वास्थ्य सेवाओं को मज़बूत किया ? ज़िम्मेदारो ने यह सब करने की बजाय अपनी पूरी ताकत राज्यों के चुनाव जीतने में झोंक डाली, ज़रूरतमंदो को राशन की जगह लच्छेदार भाषण देते रहे। क्या पक्ष क्या विपक्ष सभी इस आग में अपनी अपनी रोटियां सेंकने में लगे रहे। नतीजा सामने है कहीं लोग ऑक्सीजन की कमी से मर रहे है तो कहीं लॉकडाउन और कर्फ्यू जैसी स्थिति के चलते भूख और बेरोज़गारी से मर रहे है। बस लाशें गिनते जाइये।