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पर्यावरण के लिए कुछ कदम, अब नहीं तो कब?

by: डॉक्टर सुषमा तलेसरा

 

पूरा विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की तैयारी कर रहा है। सऊदी अरब मेजबानी कर रहा है, थीम " हमारी भूमि हमारा भविष्य" है। इसके अंतर्गत भूमि पुनर्जीवित करना, मरुस्थलीकरण  व सूखे से बचाव  हेतु प्रयास करना है।

वैसे तो पर्यावरण के विभिन्न घटक आपस में जुड़े हुए हैं। भूमि की बात करते हैं तो  वायु एवं जल की बात किए बिना भूमि की बात करना संभव नहीं है।

विभिन्न संस्थान पर्यावरण दिवस मनाने की तैयारी में जुटे हुए हैं, जिसमें सबसे ज्यादा वृक्षारोपण पर जोर है। यह सही है कि वृक्ष भूमि संरक्षण में अहम भूमिका निभाते  हैं। वृक्ष बढ़ते वैश्विक ताप को कम करने में मदद करते हैं। गर्मी कम होगी तो जल का वाष्पीकरण भी कम होगा। वृक्ष मिट्टी के कटाव को कम करके मरुस्थलीकरण को रोकता है। वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड को सोखकर आक्सीजन प्रदान करता है। निःसंदेह वृक्षारोपण एक बेहतरीन प्रयास है पर वृक्षारोपण पर्यावरण को बचाने के लिए पूर्ण प्रयास नहीं कहा जा सकता है। पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा का स्तर इतना अधिक बढ़ चुका है कि कितना ही वृक्षारोपण कर दिया जाए कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने के लिए अपर्याप्त हैं। अतः कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को कम करने की दिशा में सरकारी व व्यक्तिगत प्रयास करना भी आवश्यक है। हाल ही में अक्षय ऊर्जा को प्रयुक्त करते हुए पानी से हाइड्रोजन गैस बनाने का प्रोजेक्ट सराहनी  कदम है, निश्चित ही पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा कम करने के लिए बेहतरीन कदम है।

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का हम सब सामना कर रहे हैं, इससे कोई भी अछूता नहीं है। कहीं बादल फट रहे हैं,  बेमौसम की बरसात से बाढ़ आ रही है, गर्मी ने सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए, भूमिगत जल डार्क जोन में चला गया है। इन दुष्परिणामों से सामना करने के बावजूद अगर हम हर एक व्यक्ति अब भी प्रयास नहीं करेंगे तो कब करेंगे? पहले ही बहुत देर हो चुकी है।

हमारे छोटे-छोटे प्रयास बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं। बिजली की खपत को आसानी से कुछ हद तक कम किया जा सकता है। बिजली उत्पादन में सबसे ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होती है। इसी प्रकार अपनी इच्छाओं एवं आवश्यकताओं को कुछ सीमित कर, कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम कर सकते हैं। हर वस्तु के उत्पादन में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होती है, उत्पादन के दौरान निकले अवशिष्ट भूमि को प्रदूषित करते हैं। जितनी हमारी आवश्यकताएं बढ़ती जाती हैं

उतना ही हम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करने के भागीदार बनते चले जाते हैं।

जहां  संभव हो अक्षय ऊर्जा, सौर ऊर्जा व बैटरी चलित वाहन की ओर अपने कदम बढ़ाए।

भूमि की उर्वरता खराब होने का सबसे बड़ा कारण रसायनों का अत्यधिक प्रयोग करना है। भूमि की उर्वरता बढ़ाने के लिए एक फसल लेग्युमिनस फैमिली की बुवाई से बढ़ाई जा सकती है ( मटर, मूंगफली, सेम, दालें,सोयाबीन आदि) । ये फसलें वातावरण की नाइट्रोजन को अवशोषित कर नाइट्रिफिकेशन के माध्यम से भूमि में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाकर भूमि को उपजाऊ बनाती हैं। पेड़ों से गिरने वाले सूखे पत्ते, रसोई से निकलने वाला गीला कचरा, खरपतवार आदि सब का वर्मीकंपोस (सड़ा कर), अच्छे खाद के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है। इन प्रयासों से जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा ,वहीं रासायनिक उर्वरक कम किए जा सकेंगे। इन सबके लिए इच्छा शक्ति एवं थोड़ी सी योजना बनाने की आवश्यकता है।

भूजल संरक्षण के लिए प्रत्येक घर में वर्षा जल संरक्षण किया जाना चाहिए। इसके नियम बने हुए हैं, जिनका सख्ती से पालन करवाया जाना आवश्यक है ।प्रत्येक घर में वर्षा जल संग्रहण होने लगे तो कई क्षेत्र जो आज डार्क जोन में हैं, उनसे बाहर आ जाएंगे ।कंक्रीट की पक्की सड़कें व पक्की नालियों ने पानी के सीपेज को कम कर दिया है। इसके कारण भी भूमिगत जल का स्तर काफी गहरा हो गया है। भूमिगत जल पर्याप्त होगा तो सूखे की समस्या का अपने आप समाधान हो जाएगा।

आशय  यह है कि हर व्यक्ति ईमानदारी से प्रयास करें तो जलवायु परिवर्तन से संबंधित सभी समस्याएं चाहे भूमि की उर्वरता बढ़ाने से संबंधित है या मरुस्थलीकरण को बढ़ने से रोकना हो या सूखे की समस्या को कम करना है, हमारे सामूहिक प्रयास अवश्य रंग लाएंगे। पर्यावरण दिवस एक दिन या 1 सप्ताह नहीं ,वर्ष के प्रत्येक दिन मनाना है। हमें संकल्प लेना पड़ेगा कि प्रत्येक दिन पर्यावरण संरक्षण के लिए हम कोई ना कोई कदम अवश्य उठाएं।यह हमारी भूमि है जहां जीवन है, यहीं हमारा भविष्य है। मां की तरह इसका आदर करना है व ख्याल रखना है।

डॉक्टर सुषमा तलेसरा
शिक्षाविद एवं पर्यावरण प्रेमी
उदयपुर