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मेनार में खेली जाती है बारूद की होली

विजय पर्व के रूप में मनाया जाता है हर साल "जमरा बीज"

 

उदयपुर 9 मार्च 2023 । शहर से करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित मेनार गांव में बुधवार 8 मार्च की रात तोंपो, बंदूकों और पटाखों की आवाजों से गूंजता रहा। लेकिन यह दृश्य किसी युद्ध का नहीं था बल्कि होली के जश्न का था, हर तरफ तलवारें चलती दिखीं ये मौका था विजय पर्व जमरा बीज मनाने का, जो बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। मौके पर पूरा गांव रोशनियो से जगमगा उठा और इसे एक दुल्हन की तरह सजा धजा दिया गया।

 मौका था होली का ,लेकिन रंगों से नहीं बल्कि बारूद से खेली गई होली। 

रोशनी से जग मगा रहे मेनार में आतिशबाजी के साथ बंदूकों व तोपों के धमाके आधी रात जारी रहे। तोपें, बंदूकें आग उगल रही थी। सफेद कपड़ों और सर पर पगड़ी पहने 10 साल के किशोरों से लेकर 70 साल के बुजुर्ग सभी हाथों में तलवारें और बंदूके लिए नजर आ रहे थे। बताया जाता है की विजय पर्व जमरा बीज का यह पारंपरिक आयोजन मेवाड़ में मुगलों की सेना की एक टुकड़ी पर विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता रहा है, हर साल होली के समय इसे धूमधाम से मनाया जाता है। 

इस जश्न में सभी रणजीत ढोल की थाप पर गैर करते हैं। कभी खांडे टकराए तो तलवारों की खनक हवाई फायर के साथ बंदूकों और तोपों ने आग उगली। आधी रात बाद तक यही नजारे देखने को मिले। हजारों लोग रात 8 बजे से मेनार पहुंचे जो भोर तक डटे रहे। यहां दिनभर रणबांकुरे रणजीत ढोल बजाते रहे। 

राजस्थान के मशहूर इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने भी मेनार गांव का उल्लेख अपनी पुस्तक द एनालिसिस ऑफ राजस्थान में किया है। इस गांव का संबंध महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह से भी जुड़ा है।

गौरतलब है की रात 10 बजे बाद सभी सैनिकों की पोशाकों धोती कुरता और पगड़ी पहने ग्रामीण अलग अलग रास्तो से एक दूसरे को ललकारते हुए बंदूक और तलवार लेकर हवा में बंदूक दागते हुए सेना के आक्रमण किये जाने के रूप मे गांव के चारभुजा मंदिर के सामने गांव का मुख्य बाजार ओंकारेश्वर चौक के यहाँ पहुँचे, जहाँ ग्रामीणों ने बंदूक और तोप से गोले दागे और आतिशबाजी की, तोपो, बंदूकों की गर्जना 5 किलोमीटर दूर तक सुनाई दे रही थी।

मुख्य चौक पर पटाखों की गूंज,आग के गोले, गरजती बंदूकें,और तलवारों की खन-खनाहट के बीच सिर पर कलश लिए महिलाएं वीर रस के गीत गाती चल रही थी। हवाई फायर, तोपों की आवाज के बीच गुलाल चारों ओर उड़ रहा था और साथ ही रणजीत ढोल बजते रहे, पुरुष आतिशबाजी करते हुए बोचरी माता की घाटी पर 300 मीटर का रास्ता तयकर पहुँचे, जहाँ बोचरी माता की घाटी पर जनसमूह के बीच मेनार के शौर्य व वीरता का वाचन किया गया।

इसके बाद सभी लोग ढोल की थाप पर दोबारा ओंकारेश्वर चौक पर पहुंचे। जहां ग्रामीणों के एक हाथ मे तलवार और दूसरे हाथ मे खांडा (लकड़ी) लेकर तलवारों की जबरी गैर ढोल की थाप पर खेली गयी जिसे देखकर हर कोई दंग रह गया । मेनार का इतिहास गौरवशाली है जिसको लेकर यहां का बच्चा बच्चा अभिभूत है।