×

होली का महत्व, कथा, इतिहास और खास बात ….

होलिका दहन के अगले दिन रंगो, अबीर और गुलाल से होली का त्यौहार मनाया जाता है

 

रंगो का त्यौहार होली भारतवर्ष के सबसे प्रमुख त्योहारों में शामिल किया जाता है। प्राचीन काल से ही देश में इस त्यौहार को मनाये जाने के प्रमाण उपलब्ध हुए है जिसे की देश के विभिन्न भागो में विभिन्न रूपों में मनाया जाता रहा है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा के अवसर पर मनाया जाने वाला होली का त्यौहार मानव जीवन को खुशियों के रंग से सरोबार कर देता है। 

होली के अवसर पर होलिका दहन का विशेष महत्व है। होली के एक दिन पूर्व होलिका दहन किया जाता है जो की बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में प्रचलित है। होलिका दहन के अगले दिन रंगो, अबीर और गुलाल से होली का त्यौहार मनाया जाता है। भारतवर्ष में ब्रज के बरसना की लट्ठमार होली सबसे प्रसिद्ध होली है। होली के रंग जीवन में खुशियों का सन्देश लेकर आते है।

अभी बाजार जाएं तो पता ही नहीं चलेगा कि दो साल पहले ही पूरा देश कोरोना के दंश को झेला है। लोग बिंदास हो कर होली की खरीदारी कर रहे हैं। हर ओर रंग-अबीर और पिचकारियों की धूम है। किराना दुकानों पर लोग मैदा, चीनी, मेवे आदि खरीद रहे हैं। होली में इस बार जम कर पुआ-पूड़ी, गुझिया आदि जो बनानी है। 

उदयपुर के सभी बाजारों में हर ओर रंग, अबीर ,गुलाल और पिचकारी मिलेगी। इसके साथ ही तरह तरह के मास्क और मुखौटे से भी बाजार सजा है। बाजार में तरह तरह के विग भी मिल रहे हैं। एक विग लगा लेंगे तो आप अंग्रेज की तरह दिखेंगे। दूसरा विग लगाएंगे तो जोकर की तरह, तीसरा विग लगाएंगे तो भूत की तरह और किसी विग में भालू की तरह। होली के टीशर्ट भी खूब बिक रहे हैं। इसके अलावा मैदा, सूजी, मेवा, घी आदि भी खरीद रहे हैं। लोग रेडीमेड गुझिया, मिठाइयां, गिफ्ट आइटम्स, फूल एवं फल, कपड़े, फ़र्निशिंग फैब्रिक, किराना, एफएमसीजी प्रोडक्ट, कंज्यूमर ड्युरेबल्स सहित अन्य अनेकों उत्पादों की भी ज़बरदस्त खरीदारी कर रहे हैं।  

इस साल बाजार में हर तरह के रंग और गुलाल बिक रहे हैं। लेकिन लोगों का ध्यान हर्बल रंग और गुलाल पर है। लोग इसे पसंद भी कर रहे हैं। क्योंकि हर्बल रंग और गुलाल से शरीर की त्वचा पर कोई नुकसान नहीं होता। वहीं केमिकल से बने रंग और गुलाल से शरीर की त्वचा पर नुकसान होता है। इसलिए दुकानदार भी इसे ही प्रोत्साहित कर रहे हैं।

बाज़ार में इस साल नए तरह की पिचकारी भी आई है। प्रेशर वाली पिचकारी 100 रुपये से 350 रुपये तक की उपलब्ध है। टैंक के रूप में पिचकारी 100 रुपये से लेकर 400 रुपये तक में उपलब्ध है। इसके अलावा फैंसी पाइप की भी बाजार में धूम मची है। स्पाइडर मैन, छोटा भीम आदि को बच्चे खूब पसंद कर रहे है। वहीं गुलाल के स्प्रे की मांग हो रही है। पहली बार बाजार में बेलन के शेप में पिचकारी दिखी है। यह देखने में हू-ब-हू बेलन की तरह दिखता है। लेकिन है पिचकारी। इस पिचकारी में रंग भरिए और दे मारिए किसी को भी। अच्छी बात यह है कि लोग आपसे दूर भी नहीं भागेंगे। लोग समझेंगे कि आप बेलन लेकर आ रहे हैं। उन्हें क्या पता कि इस बेलन में रंग भरा है।

क्या होता है होली का डंडा?

होलिका दहन के पूर्व होली का डंडा चौराहे पर गाड़ना होता है। होली का डंडा एक प्रकार का पौधा होता है, जिसे सेमल का पौधा कहते हैं। इन डंडों को गंगाजल से शुद्ध करने के बाद इन डांडों के इर्द-गिर्द गोबर के उपले, लकड़ियां, घास और जलाने वाली अन्य चीजें इकट्ठा की जाती है और इन्हें धीरे-धीरे बड़ा किया जाता है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा की रात्रि को होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन के पहले होली के डंडा को निकाल लिया जाता है। उसकी जगह लकड़ी का डंडा लगाया जाता है। फिर विधिवत रूप से होली की पूजा की जाती है और अंत में उसे जला दिया जाता है। 

क्या करते हैं बडूलिए का 

होलिका में बडूलिए जलाने की भी परंपरा है। होली के दो डांडे के साथ ही भरभोलिए रखे जाते हैं। बडूलिए गाय के गोबर से बने ऐसे उपले होते हैं - - जिनके बीच में छेद होता है। इस छेद में मंजू की रस्सी डाल  कर माला बनाई जाती है। एक माला में सात बडूलिए होते के समय यह माला होलिका के साथ जला दी जाती है। हैं। अत: होली में आग लगाने से पहले या होलिका दहन के पूर्व इस बडूलिए की माला को भाइयों के सिर के ऊपर से 7 बार घूमा कर फेंक दिया जाता है। रात को होलिका दहन इसका यह आशय है कि होली के साथ भाइयों पर लगी बुरी नज़र भी जल जाए। इस तरह होलिका दहन संपन्न होता है।

होली के त्योहार पर हर साल की तरह बहुत सारे ग्रामीण होली, बडूलिए, कंडे और गेर के डंडो शहरोँ में लाते है और इनकी बिक्री करते है। कुछ ग्रामीणों ने इन पेड़ो पर चारा बांधकर पूरी होली को पहले ही तैयार कर लिया था । इनकी दर भी आम होली से ज्यादा थी । बाज़ार में 1000 से 5000 तक की होली की बिक्री हुई है । इनमे 7 से 15 फीट की होली भी शामिल है ।

क्या है होली के पीछे का इतिहास ?    

इतिहास पुराण व साहित्य में अनेक कथाएं मिलती है । होली का त्यौहार की सबसे प्रसिद्ध कथा प्रह्लाद और होलिका की कथा से जुडा हुआ है । विष्णु पुराण की एक कथा के अनुसार प्रह्लाद के पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर देवताओं से यह वरदान प्राप्त कर लिया कि वह न तो पृथ्वी पर मरेगा न आकाश में, न दिन में मरेगा न रात में, न घर में मरेगा न बाहर, न अस्त्र से मरेगा न शस्त्र से, न मानव से मारेगा न पशु से। इस वरदान को प्राप्त करने के बाद वह स्वयं को अमर समझ कर नास्तिक और निरंकुश हो गया। होलिका इसी हिरण्कश्यप असुर की बहन थी।  वह चाहता था कि उनका पुत्र भगवान नारायण की आराधना छोड़ दे, परन्तु प्रह्लाद इस बात के लिये तैयार नहीं था. हिरण्यकश्यप ने उसे बहुत सी प्राणांतक यातनाएं दीं लेकिन वह हर बार बच निकला ।

हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को भगवान से यह वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे भस्म नही कर सकती वह आग में नहीं जलेगी। अतः उस ने होलिका को आदेश दिया के वह प्रह्लाद को लेकर आग में प्रवेश कर जाए जिससे प्रह्लाद जलकर मर जाए। परन्तु होलिका का यह वरदान उस समय समाप्त हो गया जब उसने भगवान भक्त प्रह्लाद का वध करने का प्रयत्न किया। होलिका अग्नि में जल गई परन्तु नारायण की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। इस घटना की याद में लोग होलिका जलाते हैं और उसके अंत की खुशी में होली का पर्व मनाते हैं।