आज महिलाओ ने जमकर उठाया हरियाली अमावस के मेले का लुत्फ़
पूरे विश्व में मात्र राजस्थान के उदयपुर शहर में हरियाली अमावस्या के मेले में दुसरे दिन पुरुषो को प्रवेश की इजाजत नहीं होती है
उदयपुर 18 जुलाई 2023। हरियाली अमावस्या का मेला एक ऐसा अनोखा मेला जो सिर्फ महिलाओं के लिए आयोजित होता हैं पूरे विश्व में मात्र राजस्थान के उदयपुर शहर में सहेलियों की बाड़ी में लगने वाले हरियाली अमावस्या के मेले में दुसरे दिन पुरुषो को प्रवेश की इजाजत नहीं होती है। सखियों के इस मेले में अगर कोई मनचला युवक प्रवेश कर भी जाता है तो उसकी शामत आ जाती है।
पुलिस और प्रशासन द्वारा मेले में सुरक्षा के पुख्ता इंतजामात किये जाते है और इसलिए सखियों के इस मेले में महिलाये बगैर किसी रोक टोक के खुलकर मेले का लुत्फ़ उठा पाती है। मेवाड़ में सेंकडो वर्षो से सावन महीने में लगने वाला यह मेला उदयपुर के महाराणा फ़तहसिंह की महारानी बख्तावर कुंवर की देन है।
उन्होंने एक दिन राजा से कहा की उदयपुर में लगने वाले हरियाली अमावस्या के मेले का दूसरा दिन सिर्फ महिलाओ के लिए होना चाहिए। महारानी की इच्छा पूरी करते हुए महाराणा फतहसिंह ने दुसरे दिन सखियों का मेला लगाने की हामी भर दी। बस फिर क्या था इस मेले में यदि कोई पुरुष प्रवेश कर लेता तो उसे महाराणा के कोप का सामना करना पड़ता था।
कालांतर में भी यही परंपरा जारी है और आज प्रशासन द्वारा इस बात की व्यवस्था की जाती है कि मेला परिसर में महिलाओ ओर युवतियों के अलावा कोई और प्रवेश न करे। मेले का आयोजन करने वाली नगर निगम प्रतिवर्ष मेले के आकर्षण को बढाने के लिए प्रयासरत है। मेले में नगर निगम द्वारा आने वाले महिलाओं के मनोरंजन की भी पूरी व्यवस्थाएं की जाती है तो वही सिर्फ महिलाएं मेले में होने के चलते स्वच्छंद रूप से महिलाओं को मस्ती करते हुए देखा जा सकता है।
सखियों के इस मेले का उदयपुर में महिलाओ को पुरे साल इंतज़ार रहता है। वे इस मेले का जमकर लुत्फ़ उठाती है मेले में महिलाओ, युवतियों ओर छोटे बच्चो के अलावा किसी पुरुष को आने की इज़ाज़त नहीं होती है। यहाँ आने वाली महिलाए इस बात से काफी खुश नज़र आती है कि साल में एक एसा भी दिन आता है जब वे जमकर मौज मस्ती कर सकती है और उन्हें रोकने टोकने वाला कोई नहीं होता है।
मेले में आई हजारो महिलाओ ने इस मेले का जमकर उत्त्फ़ उठाया और जमकर खरीददारी करने के साथ झूले और खाने पीने की वस्तुओ का भी मजा लिया। मेले में स्वछंद घुमती महिलाये खासी प्रसंचित नज़र आई। यही नहीं पुरूषो के बिना इस मेले में घुमती युवतियों को ऐसा अहसास हुआ जैसे उनके पंख लग गये हो।
दूसरी और महिलाओं की इतनी बड़ी तादाद एक साथ जमा होने के चलते प्रशासन के लिए भी चुनौती बढ़ जाती है और उन्हें सुरक्षित वातावरण मुहैया कराने के लिए पूरा पुलिस और प्रशासनिक अमला अपनी जिम्मेदारी निभाता है मुख्य रूप से महिला अधिकारियों को ड्यूटी दी जाती है लेकिन महिलाओं की संख्या बहुत ज्यादा होने के चलते मेले में सिर्फ ड्यूटी देने वाले पुरुष पुलिसकर्मी, नगर निगम के कर्मचारी और दुकानदारों को प्रवेश दिया जाता है।
वाकई में सहेलियों की बाडी और फतहरसागर की पाल पर लगने वाला सखियों का यह मेला अनुठा है। साथ ही यह मेला इस बात का भी प्रमाण हैं कि मेवाड में महिलाओं को बराबरी का दर्जा डेढ सौ साल पहले ही मिल चुका था।