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विज्ञान महाविद्यालय में ऑटोमेटेड लाइब्रेरी का उद्घाटन आज

पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान के विभाग प्रभारी डॉ पी एस राजपूत को 55 लाख रुपए का प्रोजेक्ट मिला था
 

शिक्षा के प्रत्येक क्षेत्र में कंप्यूटर आधारित तकनीकी का प्रयोग पुस्तकालय में अति आवश्यक- कुलपति प्रोफ़ेसर अमेरिका सिंह

विज्ञान महाविद्यालय के पुस्तकालय में रूसा 2.0 के अंतर्गत पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान के विभाग प्रभारी डॉ पी एस राजपूत को 55 लाख रुपए का प्रोजेक्ट मिला था इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत डॉ पी एस राजपूत ने पुस्तकालय ओटोमेशन हेतु उच्च तकनीकों का उपयोग करके एक उच्च स्तरीय पुस्तकालय विकसित किया है संभवतः राज्य विश्वविद्यालय का पहला विश्वविद्यालय है जिसमें इस तकनीक का प्रयोग करके श्रेष्ठ पुस्तकालय सेवाएं दी जा रही है।

कुलपति प्रोफेसर अमेरिका सिंह ने विज्ञान महाविद्यालय परिवार को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि रेडियो फ्रिकवेंसी आधारित पुस्तकालय की अति आवश्यकता है। पुस्तकालय ज्ञान के भंडार हैं और आज के विद्यार्थी पुस्तकालय के रिसोर्सेज को अपने मोबाइल के द्वारा पढ़ना चाहते हैं। साइंस कॉलेज के पुस्तकालय का कार्य अत्यंत सराहनीय है जिसमें समस्त प्रकार के ओपन एक्सेस रिसोर्सेज क्यूआर कोड के माध्यम से प्रदान किए जा रहे हैं साथ ही पूरी लाइब्रेरी ऑटोमेटेड है। 

विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी एवं पुस्तकालय के प्रभारी डॉ पीएस राजपूत ने बताया कि प्रोजेक्ट के अंतर्गत आरएफआईडी तकनीक का प्रयोग करके ऑटोमेशन कार्य संपन्न किया गया साथ ही  "दृष्टि" यूनिट में कई सॉफ्टवेयर उपलब्ध है जो दिव्यांग जनों के लिए शिक्षा ग्रहण करने में सहायक है सॉफ्टवेयर के माध्यम से दिव्यांगजन ऑडियो सुन सकते हैं। डॉ. पी एस राजपूत राज्य विश्वविद्यालय  के प्रथम सहायक आचार्य है जिन्हें पुस्तकालय एवं सूचना विभाग के क्षेत्र में 55 लाख का प्रोजेक्ट रूसा 2.0 के अंतर्गत मिला है।

डॉ राजपूत ने बताया इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत उन्होंने आरएफआईडी तकनीक के द्वारा मानव रहित पुस्तक लेन-देन की सुविधा उपलब्ध होगी। विद्यार्थी बिना पुस्तकालय कर्मचारियों की मदद के पुस्तक लेनदेन की प्रक्रिया स्वयं संपन्न कर सकेंगे। इस तकनीक के माध्यम से यह भी पता किया जा सकेगा कि कौन सी पुस्तक उस कक्ष में कहां रखी हुई है। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत ऐसी तकनीक का उपयोग किया गया है जिससे पुस्तकालय में पुस्तकों की चोरी रोकी जा सकेगी साथ ही पुस्तक लेनदेन की प्रक्रिया में लगने वाले समय को भी कम किया जा सकेगा। इस प्रकार की तकनीक का प्रयोग पुस्तकालय में विश्वविद्यालय की एक अलग पहचान स्थापित करता है।