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उदारवादी शिक्षा से ही बनेगा अच्छा समाज व मजबूत लोकतंत्र - डॉ प्रताप भानु मेहता

विद्या भवन का 90वां स्थापना दिवस

 

शिक्षा व् समाज का भविष्य विषयक उद्बोधन

उदयपुर, 21 जुलाई 2021। विद्या भवन संस्था की नब्बेवी वर्षगांठ पर बुधवार को प्रसिद्ध चिन्तक प्रताप भानु मेहता एवं पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गोविन्द माथुर ने शिक्षा, समाज, नागरिकता, लोकतंत्र, समानता इत्यादि पर विस्तृत एवं विश्लेष्णात्मक व सोचपरक उद्बोधन दिया। मुख्य वक्ता प्रताप भानु मेहता ने शिक्षा क्षेत्र में हुए अच्छे प्रयोगों व् परिणामो की  चर्चा करते हुए सत्ता व बाजार के दखल  से उत्पन्न चुनौतियों का उल्लेख किया। 

एक अच्छे नागरिक समाज व परिपक्व लोकतंत्र के निर्माण में उदारवादी शिक्षा के महत्व को रेखांकित हुए मेहता ने कहा कि उदारवादी शिक्षा एक नागरिक को उसके संवैधानिक कर्तव्यों व अधिकारों के प्रति तैयार करती है। इसी से मानवीय मूल्यों से परिपूर्ण नागरिक निर्मित होते हैं, जो एक अच्छे समाज का निर्माण करते हैं। 

मेहता ने कहा कि पश्चिमी लोकतंत्रों के विपरीत, भारतीय लोकतंत्र में किसी भी सरकार ने शिक्षा में प्रभावी प्रयास व निवेश नहीं किया जितना कि अन्य क्षेत्रों में किया। यद्यपि 2019 में हम प्रतिदिन तीन महाविद्यालय खोल रहे थे, जो अमेरिका से भी ज्यादा है। उच्च शिक्षा व स्कूली शिक्षा में नामांकन बढे हैं, विज्ञान, तकनिकी व् गणित के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी विश्व में सर्वाधिक है। तथापि, भारत ने अभी तक शिक्षा की सार्वजनिक प्रणाली पर पर्याप्त जोर नहीं दिया है।  

स्वतंत्रता के बाद यह मौलिक अवधारणा रही है कि शिक्षा सामाजिक और आर्थिक असमानता को पाटती है जबकि वास्तविकता यह है कि हमारी समकालीन शिक्षा व्यवस्था ने कई असमानताओं को पुन: जन्म दिया है। इस सन्दर्भ में मेरिट या योग्यता का उल्लेख करते हुए मेहता ने कहा कि मेरिट या योग्यता क्षमता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, पर जो इस प्रतिस्पर्धा में छूट जाते हैं, उन पर गहरे व् दूरगामी नकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ते हैं। जो असमानता को बढ़ाते ही हैं। 

आज हम ऐसे समय से गुजर रहे हैं जहां शिक्षा में मूल्यों एवं नागरिक कर्तव्यों की आवश्यकता बहुत बढ़ गई हैं। मेहता ने कहा कि विद्या भवन जैसी संस्थाओं का अस्तित्व बने रहना आवश्यक है। क्योंकि यंहा वे समस्त मूल्य निहित है जिनकी जरुरत आज के भारत व् विश्व को है। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गोविंद माथुर ने कहा कि विद्या भवन एक ऐसी संस्था है जहां पढ़ने, सीखने और सामाजिक कठिनाइयों को समझने का माहौल मिलता है। वर्तमान सामाजिक राजनीतिक एवं कोविड महामारी से उपजी स्थितियों से समाज अनजाने विषाद में है, जिस पर बहुत ध्यान देने की आवश्यकता है। शिक्षा ने बहुत हद तक जाति भेद को तोड़ा है लेकिन वर्ग भेद को बढाया है। 

वर्गीय असमानताओं के चलते शिक्षा वास्तविक उद्देश्यों के अनुरूप कारगर नहीं हो पा रही है। केवल सूचनाएं प्रदान करना ही शिक्षा नहीं है, बल्कि बुद्धिमता, समझ, तर्क, वैज्ञानिक सोच व व्यहवारिकता का विकास करना शिक्षा है। उन्होंने कहा कि गाँधी वादी मूल्यों पर आधारित एक ऐसी उदारवादी शिक्षा की जरुरत है जो समाज को बाँटने वाली ताकतों का मुकाबला कर सके एवं समाज की विविध असमानताओं व् बुराइयों का का अंत कर मूल्य आधारित समरस समाज का निर्माण कर सके।

प्रारंभ में विद्या भवन के अध्यक्ष अजय एस मेहता ने वक्ताओं एवं विश्व भर से जुड़े शिक्षाविदो व् समाजविदो का स्वागत करते हुए सहयोग व समन्वय को विकास व् प्रगति के लिए जरुरी बताया। धन्यवाद विद्या भवन विद्याबंधु संघ की अध्यक्षा पुष्पा शर्मा ने ज्ञापित किया।