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यौन उत्पीड़न पर युवाओं को संवेदीकरण नामक वेबिनार 

दृढ़तापूर्वक मना करना यौन उत्पीड़न को रोकने में सर्वाधिक कारगर: डॉ.नरेंद्र सिंह राठौड़

 
ऐसा जरूरी नहीं कि यौन शोषण का मतलब केवल शारीरिक शोषण ही हो। आपके काम की जगह पर किसी भी तरह का भेदभाव जो आपको एक पुरुष सहकर्मियों से अलग करे या आपको कोई नुकसान सिर्फ इसलिए पहुंचे क्योंकि आप एक महिला हैं, तो वो शोषण है।

उदयपुर। दृढ़तापूर्वक मना करना यौन उत्पीड़न को रोकने में सर्वाधिक कारगर यह विचार उदघाटन समारोह के मुख्य अतिथि डॉ.नरेंद्र सिंह राठौड़, माननीय कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने सामुदायिक एवं व्यावहारिक विज्ञान महाविद्यालय दवरा आयोजित तथा अखिल भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली,राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना द्वारा प्रायोजित "यौन उत्पीड़न पर युवाओं को संवेदीकरण” विषयक राष्ट्रीय वेबिनार के उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य वक्ता व्यक्त किये। 

उन्होंने कहा की यौन उत्पीड़न किसी भी प्रकार का कार्य है जिसमें बिन बुलाए यौन गतिविधि, यौन व्यवहार में शामिल होने का अनुरोध या किसी अन्य प्रकार का शारीरिक या मौखिक उत्पीड़न शामिल है जो कि यौन प्रकृति का है। यह किसी भी स्थान या किसी भी वातावरण में हो सकता है। उन्होंने अफ़सोस जताते हुए कहा की नर्सेज, डॉक्टर्स, टीचर्स, पेरेंट्स, पुलिस भी ऐसे अपराधों में लिप्त पाया जाता है, जो बहुत गलत बात ह। अगर रक्षक ही भक्षक बन जाएं तो फिर किसी और पर विश्वास करना असंभव हो जाता है। उन्होंने आग्रह किया की इसको रोकने में सभी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें, सम्प्रेषण कौशल और बालकों में आत्मविश्वास विकसित करने को आपने अनिवार्य बताया।

डॉ. मीनू श्रीवास्तव अधिष्ठाता ,सामुदायिक एवम व्यवहारिक विज्ञान महाविद्यालय ने स्वागत करते हुए कहा की यौन उत्पीड़न के खिलाफ लड़ाई में विश्वविद्यालयों को शीघ्रातिशीघ्र कदम उठाना चाहिए ताकि घटनाओं की संख्या को कम करने के उपाय किए जा सकें।

आयोजकों को बधाई देते हुए वेबिनार के कनवीनर डा.अजय कुमार शर्मा, डीन, सी.टी.ए.ई., विश्व बैंक द्वारा पोषित ,संस्थान विकास कार्यक्रम, राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना के प्रमुख अन्वेषक महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्यौगिकी विश्वविधालय, उदयपुर ने कहा की ऐसे संवेदनशील विषय पर बात करना समय की महती आवश्यकता है। 

डॉ.एस. के.शर्मा, निदेशक अनुसंधान ने प्रस्तावित कार्यक्रम यौन उत्पीड़न के बारे में प्रतिभागियों के क्षितिज को व्यापक बनाने में बहुत मददगार होगा। उनहोंने कहा की हमें बालकों को शुरू से ही पेड़ की तरह बनाना चाहिए जिसमें जड़, तना और शीर्ष होते है। यदि जड़ें मज़बूत हैं तो उन पर टिका हुआ तना भी दृढ होगा और फलस्वरूप शाखों पर लगने वाले फल फूल भी अच्छे ही होंगे। जीवन मोमबत्ती की तरह हो आइसक्रीम की तरह नहीं। पिघलते दोनों हैं लेकिन एक में मौज मस्ती और समाप्ति है जबकि दूसरे में परोपकार है। अतैव समाजीकरण के दौरान बहुत सावधानी रखनी चाहिए ताकि कालंतर में बालक नैतिक मूल्यों का प्रतिबिम्ब बन सके।

आयोजन सचिव सचिव और मध्यस्थ डॉ.गायत्री तिवारी ने बताया की कुल 278 प्रतिभागियों द्वारा किया गया पंजीकरण इस बात का द्योतक है की आमजन को इसकी जानकारी की आवश्यकता है। सत्र की समापन टिप्पणी में उन्होंने कहा की इस विषय पर रोक लगाने के लिए स्वयं को मज़बूत करना ही समय की मांग है। ठीक उसी तरह जैसे सड़कों पर पड़े कंकरों से बचने के लिए सब तरफ कालीन बिछाने के बजाय हम स्वयं जूते पहनते हैं।

डॉ. सुधीर  जैन ,छात्र कल्याण अधिकारी द्वारा दिए गए वक्ता के परिचय के उपरान्त मुख्य वक्ता ,भारत सचिव एवम सह संस्थापक, विशाखा संस्था, जयपुर ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में कहा की महिला गलत तरीके से छूना या छूने की कोशिश करना, गलत तरीके से देखना या घूरना, यौन संबंध बनाने के लिए कहना, अश्लील टिप्पणी करना, यौन इशारे करना, अश्लील चुटकुले सुनाना या भेजना, पोर्न फिल्में दिखाना ये सभी यौन उत्पीड़न के दायरे में आता है। 

आज से करीब 26 साल पहले 1992 में राजस्थान की राजधानी जयपुर के निकट भटेरी गांव की एक महिला भंवरी देवी ने बाल विवाह विरोधी अभियान में हिस्सेदारी की बहुत बड़ी कीमत चुकाई थी. इस मामले में 'विशाखा' और अन्य महिला गुटों ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी और कामकाजी महिलाओं के हितों के लिए कानूनी प्रावधान बनाने की अपील की गई थी इस याचिका के मद्देनजर साल 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा के लिए ये दिशा-निर्देश जारी किए थे और सरकार से आवश्यक कानून बनाने के लिए कहा था। उन दिशा-निर्देशों को विशाखा के नाम से जाना गया और उन्हें विशाखा गाइडलाइंस कहा जाता है। 
विशाखा गाइडलाइन्स' जारी होने के बाद वर्ष 2012 में भी एक अन्य याचिका पर सुनवाई के दौरान नियामक संस्थाओं से यौन हिंसा से निपटने के लिए समितियों का गठन करने को कहा था, और उसी के बाद केंद्र सरकार ने अप्रैल, 2013 में 'सेक्सुअल हैरेसमेंट ऑफ वीमन एट वर्कप्लेस एक्ट' को मंज़ूरी दी थी। विशाखा गाइडलाइन्स' के तहत आपके काम की जगह पर किसी पुरुष द्वारा मांगा गया शारीरिक लाभ, आपके शरीर या रंग पर की गई कोई टिप्पणी, गंदे मजाक, छेड़खानी, जानबूझकर किसी तरीके से आपके शरीर को छूना, आप और आपसे जुड़े किसी कर्मचारी के बारे में फैलाई गई यौन संबंध की अफवाह, पॉर्न फिल्में या अपमानजनक तस्वीरें दिखाना या भेजना, शारीरिक लाभ के बदले आपको भविष्य में फायदे या नुकसान का वादा करना, आपकी तरफ किए गए गंदे इशारे या आपसे की गई कोई गंदी बात, सब शोषण का हिस्सा है। ऐसा जरूरी नहीं कि यौन शोषण का मतलब केवल शारीरिक शोषण ही हो। आपके काम की जगह पर किसी भी तरह का भेदभाव जो आपको एक पुरुष सहकर्मियों से अलग करे या आपको कोई नुकसान सिर्फ इसलिए पहुंचे क्योंकि आप एक महिला हैं, तो वो शोषण है।
कानूनी तौर पर हर संस्थान जिसमें 10 से अधिक कर्मचारी हैं वहां, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत अंदरूनी शिकायत समिति (ICC) होना जरूरी है इस कमेटी में 50 फीसदी से ज्यादा महिलाएं होना आवश्यक है और इसकी अध्यक्ष भी महिला ही होगी। इस कमेटी में यौन शोषण के मुद्दे पर ही काम कर रही किसी बाहरी गैर-सरकारी संस्था (NGO) की एक प्रतिनिधि को भी शामिल करना ज़रूरी होता है। अगर आपको भी लगता है कि आपका शोषण हो रहा है तो आप लिखित शिकायत कमेटी में कर सकती हैं और आपको इससे संबंधित सभी दस्तावेज भी देने होंगे, जैसे मैसेज, ईमेल आदि। यह शिकायत 3 महीने के अंदर देनी होती है। उसके बाद कमेटी 90 दिन के अंदर रिपोर्ट पेश करती है। इसकी जांच में दोनो पक्ष से पूछताछ की जा सकती है। आपकी पहचान को गोपनीय रखना समिति की जिम्मेदारी है। इस गाइडलाइंस के तहत कोई भी कर्मचारी चाहे वो इंटर्न भी हो, वो भी शिकायत कर सकता है। उसके बाद अनुशानात्मक कार्रवाई की जा सकती है। विभिन्न स्थानों पर यौन उत्पीड़न के संबंध में कोई सहिष्णुता नहीं होनी चाहिए। जाति, रंग, धर्म, लिंग (गर्भावस्था और लिंग पहचान सहित), यौन अभिविन्यास, वैवाहिक स्थिति, या राजनीतिक संबद्धता, राष्ट्रीय मूल, आयु, विकलांगता, आनुवंशिक जानकारी (पारिवारिक चिकित्सा इतिहास सहित), माता-पिता के रूप में स्थिति के आधार पर भेदभाव और उत्पीड़न से मुक्त वातावरण होना चाहिए। छात्रों या कर्मचारियों के प्रतिकूल व्यवहार की रक्षा करने वाली समिति को भी अधिक सतर्क रहना चाहिए क्योंकि वे उत्पीड़न के आचरण की रिपोर्ट करते हैं या ऐसी शिकायतों से संबंधित जानकारी प्रदान करते हैं। प्रश्नोत्तरी सत्र के दौरान आपने यौन  उत्पीड़न के शारीरिक ,मानसिक ,सामजिक ,आर्थिक ,नैतिक पहलूओं के बारे में विस्तार से बताते हुए जिज्ञासाओं का संधान किया।

अंत में समव्यक डॉ.विशाखा बंसल द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में विश्विद्यालय के गणमान्य पदाधिकारियों व् फैकल्टी सदस्यों सहित  आयोजन समिति के  डॉ.हेमू राठौड़, डॉ.प्रकाश पंवार , डॉ.विशाखा सिंह , डॉ.स्नेहा जैन और श्रीमती रेखा राठौड़ ने भी भाग लिया।