मुंशी प्रेमचंद जी की कहानी ‘‘सौत’’ के मंचन से दी बंसी कौल साहब को श्रद्धांजली
नाट्यांश नाटकीय एवं प्रदर्शनीय कला संस्थान, उदयपुर की प्रस्तुति
नाट्यांश नाटकीय एवं प्रदर्शनीय कला संस्थान, उदयपुर के कलाकारों ने मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा लिखित कहानी ‘‘सौत’’ का मंचन किया। आज की यह नाट्य संध्या प्रख्यात रंगकर्मी पद्मश्री बंसी कौल साहब को समर्पित की गयी। कार्यक्रम से पहले बंसी कौल साहब की याद में दो मिनिट का मौन रख कर सभी कलाकारों ने श्रद्धांजली अर्पित की।
बंशी कौल जी बहुत ही संघर्षशील, अनुशासित, मिलनसार, लेखक, चित्रकार, नाट्य लेखक, सेट डिजाइनर और रंग निर्देशक थे। उनकी सांसों में रंगकर्म धड़कता और संवादों में साहित्य। वह महज एक नाम नहीं, समकालीन हिंदुस्तानी रंगकर्म की जीती जागती परिभाषा थे। उनके पंचतत्व में विलिन होने से रंगकर्मी समुदाय गहन शौक में है। कॉविड - 19 के मद्देनजर मात्र 20 दर्शकों के लिये ही की गयी प्रस्तुती।
कहानी मंचन से पहले राघव गुर्जरगौड़ ने एंतोन चेखव द्वारा लिखित नाटक ‘‘दी बेयर’’ का एक मॉनोलोग प्रस्तुत किया। अभिनय के दृष्टिकोण से इस तरह की एकल प्रस्तुतियाँ काफी महत्वपुर्ण होती है। इसके बाद उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी ‘‘सौत’’ का मंचन किया गया। इस कहानी का नाट्य रूपांतारण एवं निर्देशन अमित श्रीमाली ने किया।
मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी सौत नारी हृदय के कई भावो को सामने लाती है। स्वामित्व, अधिकार, ईर्ष्या, जलन, दुःख, गुस्सा, दया आदि भाव इस कहानी में उभरते दिखाई पड़ते है। पाई-पाई जोड़कर बनाई गृहस्ती जब उझडने लगती है, जब अपने घर व अपने पति पर से स्त्री का स्वामित्व खोने लगता है, तो टूट कर बिखरने ने के बावजूद भी स्त्री अपने को इतना सक्षम बनाने की ताकत रखती है कि ना केवल अपना जीवन यापन कर सके बल्की अपने पर आश्रितों को भी सम्भाल सके। महिला अपने में पूर्ण और स्वतंत्र है। यही बात मुंशी जी इस कहानी में दिखाई देती है।
कथासार
कहानी में राजिया के दो-तीन बच्चे हो कर मर जाने के बाद जब वो अपने पति को औलाद का सुख नही दे पाई तब राजिया के पति रामू दुसरा ब्याह कर के सौत ले आता है। सौतन के आने पर राजिया को दिन-प्रतिदिन का अपमान व तिरस्कार सहना पडता हैं। इस सबसे तंग आ कर वो घर-गाँव छोड़ देती है और अकेले ही रहने लगती है। अपमान की आग में तडपती राजिया जी तोड मेहनत कर के तीन ही साल में समाज में एक सम्मानिय स्त्री के रूप में उभरती है।
उधर उसके पति रामू स्वास्थ गिरने लगता है और रामू का घर भी धीरे-धीरे उजड़ने लगता है, जो पहले भी केवल राजिया के कारण सुधरा हुआ था। रामू की मृत्यु होने पर राजिया अपनी सौत के सभी अपराध माफ कर उसे अपनी बेटी कि तरह रखती है और एक बार फिर से सारी बिखरी गृहस्ती को सम्भाल कर रजिया, रामू का स्थान ले लेती है।
कलाकारों में राजिया, दासी और रामु के किरदार में क्रमशः ईशा जैन, फिज़ा बत्रा व महेश कुमार जोशी ने पति-पत्नी का प्रेम और सौत का राजिया से ईर्ष्या करना और रामू का पश्चाताप, रामू की मृत्यु के बाद राजिया और सौत दसिया के पुनर्मिलन के दृश्यों को बहुत ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। साथ ही सहयोगी कलाकार के तौर पर हरिजा पाण्डेय ने तीन व धिरज जिंगर ने पांच अलग-अलग किरदार बखुबी निभाये।
संगीत सयोंजन एवं संचालन - रागव गुर्जरगौड़ और प्रकाश संचालन - अगस्त्य हार्दिक नागदा का रहा। इस नाट्य आयोजन को सफल बनाने मे मोहम्मद रिज़वान मंसुरी, पीयूष गुरुनानी, रमन कुमार, दाऊद अंसारी, योगिता सिसोदिया व चक्षु सिंह रूपावत का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
कार्यक्रम संयोजक मोहम्मद रिज़वान मंसुरी ने बताया कि कोविड़ महामारी के लॉकडाउन और अनलॉक के बाद यह टीम नाट्यांश की दुसरी प्रस्तुती है। आगे भी संस्थान का प्रयास है कि ऐसी ही प्रस्तुतियां होती रहे। शुरूआती चरण में सोशल डिस्टेंसींग और कोविड प्रोटोकॉल के अंतर्गत मात्र 20 दर्शकों के सामने प्रस्तुति दी गयी। अगले रविवार को मुंशी प्रेमचंद की कहानी कफन का मंचन होगा।