उदयपुर में होगा भाषा-कला-साहित्य-संस्कृति का भव्य "मेला”
4 दिन बिखरेंगे "मेला के रंग रूह के संग"
उदयपुर 10 मार्च 2023 । शहर में मौलिक ऑर्गेनाइजेशन ऑफ क्रियेटिव एन्ड परफोर्मिंग आर्ट सोसायटी और राजस्थानी विभाग एमएलएसयू के संयुक्त तत्वाधान एवं राजस्थान साहित्य अकादमी, उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, पटियाला के सहयोग से 23 मार्च से 26 मार्च तक भाषाई परम्पराओं और कला प्रोत्साहन हेतु एक बहुभाषीय साहित्य एवं कला महोत्सव "मेला" ( Merging Elements of language Literature And Arts ) के पहले संस्करण का आयोजन होना है। 4 दिन तक चलने वाले इस महोत्सव का उद्घाटन 23 मार्च की संध्या को होगा। आयोजक मौलिक संस्था एवं मेला के संस्थापक निदेशक शिवराज सोनवाल बतातें हैं कि कला और भाषा के इस जश्न को रूहानियत देती हैं।
(R) राजस्थानी (U) उर्दू और (H) हिंदी भाषाओं (रूह ) की एक मंच पर मौजूदगी
अपने पहले संस्करण में मेला महोत्सव को तीन भाषाओं, राजस्थानी, उर्दू और हिंदी की भाषाई परम्पराओं, कला और संस्कृति का जश्न मनाने और उनके संरक्षण को समर्पित किया जाएगा । राजस्थानी विभाग सुविवि के प्रभारी विभागाध्यक्ष सुरेश साल्वी ने कहा कि मेला के मुख्य उद्देश्य युवा और उभरती प्रतिभाओं को मंच देना । आधुनिकीकरण के बीच लगभग खो चुकी खालिस भाषा और कला को पुनर्जीवित करना । तीन भाषाओं के साहित्यकारों और कलाकारों को एक मंच पर लाकर एक अनूठा संगम स्थापित करना है ।
23 मार्च को सजेगा मेला
मेला का उद्घाटन 23 मार्च की संध्या को भव्य और अपने जैसे इकलौते नाटक "प्रणवीर प्रताप" से होगा। इस नाटक में स्क्रीन और स्टेज का एक अनूठा प्रयोग है । नाटक में महाराणा प्रताप की भूमिका में स्टार प्लस "महाभारत" फेम नवीन जीनगर एवं अकबर की भूमिका में होंगे शहर के दिग्गज अभिनेता सतीश आशी।
4 दिवसीय मेला की रूपरेखा
मेला फेस्टिवल के चार दिनों में कई नामी हस्तियाँ शिरकत करेंगी । राजस्थानी भाषा के दिन 24 मार्च को अर्जुनदेव चारण, आई दान सिंह भाटी, राजवीर सिंह चलकोई, पुरुषोत्तम पल्लव जैसे प्रसिद्ध चेहरे कार्यक्रमों की शोभा बढ़ाएँगे । शाम को राजस्थानी सांस्कृतिक कार्यक्रम में स्थानीय गायक कलाकर नारायण गंधर्व और मारिषा दीक्षित प्रस्तुति देंगे
मेला के कला संयोजक मूर्तिकार हेमंत जोशी बताते हैं कि यह संगम भाँति भाँति के कला कौशल के गुणों को अपने में समा कर एक ऐसा नवगुण स्थापित करता है, जो इसे अपनी तरह के अन्य उत्सवों से अलग और बेहतर बनाता है।
25 मार्च का दिन उर्दू भाषा को समर्पित रहेगा, मेला की उर्दू भाषा संयोजक डॉ. सरवत खान ने कहा कि महेंद्र मोदी, हदीस अंसारी, अब्दुल जब्बार, अश्विनी मित्तल के साथ उर्दू भाषा और शायरी के बीते दौर और आगामी स्वरूप पर चर्चा करेंगे। इस दिन मेला के अर्थ को सार्थक करते हुए एक अनूठा प्रयोग होने जा रहा है - गजल विथ केनवास जहाँ चित्रकार गजल की प्रस्तुतियों पर अपनी कल्पनाओं को केनवास पर उतारेंगे । फिल्म निर्माता और गीतकार वैभव मोदी, सिनेमा में हिंदी और उर्दू की नजदीकियों पर बात करेंगे । शाम को आलोकनामा कार्यक्रम में प्रसिद्ध शायर आलोक श्रीवास्तव अपनी रचनाओं से समा बाँधेंगे।
कौनसे गुण मेला को अलग बनाते हैं
मेला निदेशक कपिल पालीवाल बताते हैं कि अनेक साहित्य महोत्सवों के होते हुए, एक और ऐसे उत्सव की क्या आवश्यकता है या बाकी "ब्रान्डेड" उत्सवों के सामने इसे ही क्यों आपकी मेजबानी का अवसर मिले, ऐसे सवालों का उत्तर सिर्फ यही है की वो उत्सव आपके लिए होते हैं और ये महोत्सव आप ही का है । जमीन की बात करने वाले तमाम आयोजनकर्ता, बात तक ही सीमित रह जाते हैं और बाजारीकरण के प्रभाव तले, चलताऊ और वायरल सामग्री लोगों को परोस देते हैं ।
मेला सलाहकार गौरिकांत शर्मा ने बताया कि कार्यक्रम के समापन दिवस 26 मार्च को हिंदी भाषा के सत्रों का आयोजन होगा। यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना करेगा की साहित्य एवं अन्य कला, का कद उसके समक्ष बौना ही रह जाता है। इस दिन गुलाबो सिताबो फेम संगीतकार अनुज गर्ग और गीतकार दिनेश पंत हिस्सा लेंगे । नाटककार भानु भारती, राजस्थान साहित्य अकादमी अध्यक्ष दुलाराम सहारण पत्रकार प्रताप राव, साहित्य के मायनों पर चर्चा करेंगें।
मेला की सह संयोजक रेखा शर्मा ने बताया कि स्त्री शक्ति एवं अभिव्यक्ति कार्यक्रम में विजयलक्ष्मी आमेटा, कनुप्रिया और आर जे दामिनी शामिल होंगे ।दलित और आदिवासी लेखकों के समक्ष आने वाली चुनोतियों पर रत्न कुमार सांभरिया, उम्मेद गोठवाल अपनी राय रखेंगें । मेला समापन संध्या में तीनों भाषाओं के कवि और शायरों का एक कविसम्मेलन एवं स्थानीय प्रतिभाओं की गीत संगीत से जुड़ी भव्य प्रस्तुतियाँ से सजी-शाम रूह से रूह तक आयोजित की जाएगी ।
मेला मुख्य संयोजक चेतन औदीच्य ने कहा कि मेला महोत्सव में आज के दौर में अपने अस्तित्व के लिए जूझती भाषाई परम्पराओं की बात होती है। पुराने पेडों के नजदीक, नई कोंपले कैसे अपनी जगह बना सकती है, इस पर उस्तादों और युवा कलाकारों को साथ में लाकर चर्चा की जाती है । इस जमीन को तैयार करने का उद्देश्य, इसे एक ऐसा उदगम स्थल बनाना है, जहाँ से विचारों की नयी धाराएँ निकलती हों । ये महोत्सव तीन दिन में समाप्त होने के लिए नहीं बनाया गया है, यह तीन दिन, शुरुआत मात्र है । मेला, भाषा को जीवन से जोड़ने का आव्हान यज्ञ है, मेला एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया का नाम है ।