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ऐतिहासिक गंगू कुंड पर मटकी के मेले का आयोजन 

आंवला एकादशी के मौके पर किया जाता है इस मेले का आयोजन 

 

उदयपुर शहर के ऐतिहासिक गंगू कुंड पर मटकी के मेले का अनूठा आयोजन आंवला एकादशी के मौके पर किया जाता है। इस मेले की खासियत यह है कि इसमें विभिन्न तरीके के मटकों की बिक्री होती है। इसमें न सिर्फ उदयपुर बल्कि उदयपुर के आसपास के क्षेत्रों के ग्रामीण हिस्सा लेते हैं। इस मेले का आयोजन गर्मी की दस्तक माना जाता है।

मिट्टी के कई तरह के बर्तन होते है 

इस आकर्षण मेले मे घी से लेकर पानी भरने तक के मिट्टी के पात्र मिलते हैं। मेले में पानी भरने की कलसी व भाण्डे, दही जमाने के लिए पात्र जावणियां, छाछ बिलौने के लिए गोली, घी रखने के लिए घिलोड़ी, आटा गूंदने की भणई, शादी-ब्याह के लिए महा मटला, रोटी सेकने के लिए केलड़ी, सब्जी व राब के लिए हांडी आदि मिट्टी के पात्र उपलब्ध कराए जाते है।

बदलते परिवेश में घटी मटकियों की मांग

मेले में मटका बेचने आई मनीषा कुम्हार ने बताया कि बदलते परिवेश के साथ ही मटकों की मांग घटी है। इन दिनों बाजारों में मटकियो को कम बिक्री होती है।  लेकिन अब विभिन्न प्रकार की नई वैरायटी की मटकियां तैयार की जा रही है जो दिखने में भी काफी आकर्षित है। इसके साथ ही मिट्टी की बोटल्स भी बनाई जा रही है।

800 वर्षो पुराना है यह मेला

उदयपुर शहर में इस मेले का आयोजन करीब 800 वर्ष से भी पुराना है। यहां के महाराणा द्वारा इस मेले की शुरुआत की गई थी। इस मेले में उदयपुर के आसपास के गांव के कुम्हार अपने मटको की बिक्री के लिए यहां पर आते हैं। वर्षों से गंगू कुंड पर दो दिवसीय विशाल मटकी मेले का आयोजन किया जाता है।