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हाट बाजार ने पकड़ी गति, मेवाड़ के रंगमंच पर ‘‘माझा महाराष्ट्र’

शिल्पग्राम उत्सव: तीसरा दिन

 

उदयपुर 23 दिसंबर 2021। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित राष्ट्रीय हस्तशिल्प व लोक कला उत्सव में गुरूवार को एक ओर जहां हाट बाजार ने कुछ गति पकड़ी और लोगों ने कलात्मक वस्तुओं की खरीददारी की तथा मेले का आनन्द उठाया। दोपहर में मुक्ताकाशी रंगमंच पर कला प्रस्तुतियों को देखने के लिये लोग दर्शक दीर्घा में जमे रहे वहीं शाम को दर्पण सभागार में महाराष्ट्र के कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियों से ‘‘माझा महाराष्ट्र’’ के भावों को दर्शाया जिसमें लावणी और शिवाजी महाराज के प्रसंग ने मराठी संस्कृति का दर्शाया।

दस दिवसीय शिल्पग्राम उत्सव के तीसरे दिन मेले की शुरूआत में ही हाट बाजार के खरीददार शिल्पग्राम पहुंचे तथा बाजार में शिल्पकारों से मोल भाव कर वस्तुएँ खरीदी। हाट बाजार में असम के ड्राई फ्लाॅवर, बिहार की मधुबनी चित्रकारी, केन व बैम्बू के गार्डन चयर्स व टेबल, बांस के बने फ्लाॅवर पाॅट्स, आकर्षक लैम्प्स, गोवा का सी शैल की बनी कलात्मक वस्तुएं, बिहार की साड़िया, ऊनी वस्त्र, गर्म बंडियां, लैदर के बैग्स, पर्स, जूतियाँ, राजस्थानी पोशाक, साड़ियाँ, बेड शीट बेड कवर, आर्टिफिशियल ज्वैलरी, पीतल की सजावटी वस्तुएँ, फायर आर्ट की चित्र कृतियाँ ट्राइफेड के स्टाॅल पर जनजाति शिल्पकारों की वस्तुओं की दूकानों पर लोग मोलभाव व खरीददारी करते देखे गये। हाट बाजार में लोगों का रूझान खान पान पर भी रहा जिसमें हरियाणा का गर्मागरम जलेबा, साउथ इंडियन खान-पान, पंजाबी व्यंजन प्रमुख हैं। 

दोपहर में एक ओर जहां मुख्य द्वार के समीप छबड़ा के चकरी कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियों से लोगों का ध्यान खींचा वहीं मुक्ताकाशी रंगमंच पर राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र तथा केन्द्र शासित प्रदेश दमण की कलाओं का अनूठा संगम देखने को मिला। इसमें दमण के कलाकारों ने मछुआरा जाति की परम्परा का माछी नृत्य दिखाया जिसमें उन्होंने अपने परिवार में होने वाले उत्सवों की खुशी का इजहार किया। 

इसी मंच पर गुजरात के वासावा आदिवासियों ने होली नृत्य का प्रदर्शन किया जिसमें जनजातीय होली के उत्सव को पुरूष व महिला कलाकारों ने श्रेष्ठ अंदाज में प्रदर्शित किया। खुले रंगमंच पर ही महाराष्ट्र की कोंकणा जन जाति का आनुष्ठानिक नृत्य ‘‘सौगी मुखवटे’’ में देवीय शक्ति की उपासना के दृश्य को मोहक अंदाज में दिखाया। प्रस्तुति में देवी की सवारी सिंह ने दर्शकों पर अपनी छाप छोड़ी। 

रंगमंच पर ही राजस्थान के लोक वाद्यों की सिम्फनी की ध्वनि सुन लोग मंच की दर्शक दीर्घा की ओर खिंचे चले आये व राजस्थानी संगीत का आनन्द उठाया। मुक्ताकशी रंगमंच पर सबसे आकर्षक और मन भावन प्रस्तुति रही गुजरात के सिद्दि कलाकारों की। जिन्होंने अपनी परम्परा के अनुसार बाबा गौर की उपासना की परंपरा को दर्शाते हुए दर्शकों में उत्साह का संचरण किया।

शाम को दर्पण सभागार में महाराष्ट्र की कलाओं का प्रदर्शन दर्शकों द्वारा भरपूर सराहा गया। यहां कोल्हापुर के चन्द्रकांत पाटिल व उनके साथियों ने पहले शिवाजी महाराज के जीवन से जुड़ प्रसंग में उनके राज्याभिषेक को गेय शैली में प्रस्तुत कर मराठी जोश और खरोश का बोध करवाया। 

कार्यक्रम की शुरूआत गणपति वंदना से हुई जो न केवल महाराष्ट्र अपितु पूरे भारत की परंपरा है। इसके बाद नृत्यांगनाओं ने लावणी नृत्य की प्रस्तुति से दर्शकों को रिझाया। लावणी तमाशा में नर्तकियों की आंगिक भंगिमाएं लयकारी के साथ उत्कृष्ट बन सकी। इसके बाद सौंगी मुखवटे की प्रस्तुति को दर्शकों द्वारा सराहा गया। इसके अलावा दर्पण सभागार में ही राजस्थानी फोक एन्सेम्बल की भी प्रस्तुति हुई।