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राज्यपाल मिश्र उदयपुर में पाकिस्तानी सेना को करारी शिकस्त देने वाले टैंक टी-55 का उद्घाटन करेंगे

कार्यक्रम फ़तहसागर मोती मगरी स्थित प्रताप स्मारक पर शनिवार 6 मई दोपहर 12:15 को शुरू होगा।

 

भारतीय सेना ने 1971 के युद्ध में जिस टी-55 टैंक से पाकिस्तान की सेना को करारी शिकस्त दी थी, वह टैंक टी-55 अब उदयपुर शहर की शान बनेगा। टैंक टी-55 महाराणा प्रताप स्मारक, मोती मगरी पर पहुंच चुका है। इसे क्रेन की मदद से मोती मगरी में रखवा दिया गया है। भारतीय सेना ने महाराणा प्रताप स्मारक समिति मोती मगरी को यह टैंक पुणे से उपलब्ध करवाया है।

मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार के सदस्य और समिति अध्यक्ष डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने बताया कि इस टैंक का प्रताप स्मारक मोती मगरी में उद्घाटन राज्यपाल कलराज मिश्र के कर कमलों से शनिवार 6 मई को दोपहर 12.15 बजे किया जाएगा। समारोह में लेफ्टिनेंट जनरल जय सिंह नैन की गरिमामयी उपस्थिति रहेगी। टैंक टी-55 को शहरवासियों और देसी-विदेशी पर्यटकों के अवलोकन के लिए मोती मगरी में प्रदर्शित किया जाएगा। राज्यपाल कलराज मिश्र की प्रेरणा और उनकी विशेष मौजूदगी में महाराणा प्रताप के वंशज लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ भारत माता के अमीर शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के परिजनों को सम्मानित करेंगे। उद्देश्य भावी पीढ़ी में राष्ट्रभक्ति की अलख जगाना है।

सेना के अविस्मरणीय पराक्रम और गौरवशाली गाथा का प्रतीक है टैंक टी-55

टी-55 टैंक युद्ध में हमारी सेना के अविस्मरणीय पराक्रम और गौरवशाली गाथा का प्रतीक है। रूस में निर्मित टी-55 टैंक का पाकिस्तान की सेना के खिलाफ 1971 के युद्ध में उपयोग किया गया था। 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था। टैंक टी-55 पाकिस्‍तान सैनिकों के लिए दहशत की वजह बन गए थे। सीमा पर इसकी दहाड़ सुनकर पाकिस्‍तानी सैनिक कांप उठते थे। यह टैंक साल 1968 में सेना में शामिल हुआ और 2011 तक सेवा देता रहा।

दिन-रात लड़ने की क्षमता वाले टैंक टी-55 की खासियत

दिन-रात लड़ने की क्षमता वाले टैंक टी-55 को 1968 में भारतीय सेना में शामिल किया गया था। टैंक टी-55 का 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया था। टैंक टी-55 ने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के कई टैंकों को नेस्तनाबूद कर दिया था। टैंक टी-55 की सटीक मारक क्षमता ने पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे। इससे पहले टैंक टी-55 ने 1967 के अरब इजराइल युद्ध और 1970 के जॉर्डन के गृह युद्ध तथा 1973 के योम किप्पूर युद्ध में भी पूरी दुनिया के समक्ष अपनी ताकत का लोहा मनवा दिया था। कुछ टैंक टी-55 की 1991 में ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म और 21वीं सदी में ऑपरेशन इराकी फ्रीडम के दौरान कार्रवाई देखी जा चुकी है। कुछ देशों में टैंक टी-55 और इसी तरह के टैंक अभी भी सक्रिय सेवा में मौजूद हैं। 580 एचपी इंजन से लैस टैंक टी-55 रूसी टैंक है। यह टैंक 37 टन वजनी होने के बावजूद तेज गति से चलने वाला बख्तरबंद लड़ाकू वाहन है। इस टैंक में 4 सदस्यों का दल तैनात किया जाता है, जो इस टैंक की मदद से 105 एमएम की राइफल से भी लैस होकर तमाम बाधाएं पार करते जाते हैं।