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आदिवासी महिलाओं द्वारा बनाए जा रहे जामुन के पल्प की पुरी दुनिया में मांग

राजेश ओझा ने महिलाओं को स्वावलंबी बनाकर किया आर्थिक रूप से मजबुत

 

उदयपुर अंचल का आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र आज भी पिछडा हुआ हैं। यहॉं जनजीवन को समाज की मुख्यधारा में लाने के प्रयास किये जा रहे हैं। इस बीच एक ऐसे युवा सामने आये जिन्होंने अपनी सोच के चलते सैंकडो आदिवासी महिलाओं को रोजगार मुहैया कराकर उन्हें आर्थिक रूप से मजबुत बनाया साथ ही स्वावलंबी बनाकर काम करने की राह से जोड दिया। 

उदयपुर के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में मुख्य रूप से सीताफल, जामुन, आंवला आदि फलों की खेती होती हैं। ऐसे में बडी तादाद में इन फलों की पैदावार होती हैं। हालांकि आदिवासी समाज पिछडा हुआ होने के चलते इन फलों का उचित दाम प्राप्त नहीं कर पाता। दुर दराज बेचने जाने पर भी जब उचित दाम में बिक्री नहीं होती तो इन्हें अपनी मेहनत के फल को नालियों तक में बहाना पडता था। ऐसे में पिछले कुछ वर्षो में इन महिलाओं की किस्मत बदली हैं।

फिलहार करीब डेढ महीने से जामुन का सीजन चल रहा हैं। ऐसे में ये महिलाएं पहले तो जंगलों से जामुन को इकट‌ठा करके लाती हैं और फिर इन जामुन का पल्प तैयार करती हैँ। राजेश ओझा नाम के व्यक्ति ने इन महिलाओं की पीडा को समझा ओर इन्हीँ के गॉंवों में प्रोसेसिग युनिट तैयार करवा दी।

इससे महिलाओं को जामुन का उचित दाम मिलने लगा और उनका पुरा जामुन इसी प्रोसेसिंग युनिट में खरिदा जाने लगा। यहीं नहीं इन महिलाओं को यहॉं काम भी मिला और ये अपने लाये हुए जामुन का पल्प तैयार करने लगी। यह पल्प पुरी दुनिया में डिमांड में हैं। 

राजेश ओझा ने इस तरह की प्रोसेसिंग युनिट 18 आदिवासी बाहुल्य गांवों में लगा दी और प्रत्येक गॉंवों में 35-35 महिलाओं को ट्रेनिंग देकर काम से जोड दिया। अब तक 1200 महिलाओं को अपनी मेहनत का उचित दाम और रोजगार उपलब्ध कराया गया हैं। इस काम से आदिवासी महिलाएं भी खासी खुश हैं और उनका मानना हैं कि अब उन्हें मजदुरी के लिये शहर नहीं जाना पडता हैं, फलों को बेचने की मेहनत नहीं करनी पडती हैं, फलों का पुरा दाम मिलता हैं और रोजगार मिलने से आर्थिक स्थिति भी मजबुत हुई हैं।

अब इन आदिवासी महिलओं द्वारा जामुन जैसे जंगली फल से भी मुनाफा कमाया जा रहा हैं और इनके द्वारा बनाये गये प्रोडेक्ट पुरी दुनिया में ऑनलाइन खरिदें जा रहे हैं। यह महिलाएं पहले तो जामुन खरीद कर लाती है और बाद में उन जामुनों को पूरी तरह से साफ कर उनकी गुठलियों और पल्प को अलग किया जाता है बाद में पल्प को कोल्ड स्टोरेज में सुरक्षित कर आगे काम में लिया जाता है।

 बहरहाल आदिवासी महिलाएं को रोजगार मिलने से ना सिर्फ वे बल्कि उनका परिवार भी खुश हैं। अब ये महिलाए मजदुरी की और ध्यान ना देकर सिर्फ मेहनत करती हैं और पुरे दिन में जामुन का पल्प तैयार कर उसे इकट‌ठा करती हैं।

यह पल्प कोल्ड स्टोरेज में सुरक्षित रखा जाता हैं ओर फिर इससे जामुन स्ट्रीप, जामुन विनेगर, जामुन पाउडर आदि प्रोडेक्ट तैयार होते हैं, ये प्रोडेक्ट मुख्य रूप से शुगर से ग्रसीत मरीजों के लिये खासे लाभदायक हैं।