जो आज प्रिय लग रहा है, जरूरी नहीं कि वह हितकारी हो
संदीप खमेसरा द्वारा खानपान पर विशेष आलेख
पिज़्ज़ा, बर्गर, तेलीय भोजन और बाहर का खानपान, स्वाद में हमें प्रिय लगता है। शराब, सिगरेट, तंबाकू या अन्य कोई भी नशा, किसी को प्रिय लगता है। देर तक जागना, देर से उठना और बेतरतीब जीवनशैली कइयों को मज़ेदारी भरा लग सकता है। कसरत के प्रति आलस्य और शरीर को कम से कम वर्जिश में धकेलना अच्छा लग सकता है। व्यवसाय, नौकरी और रुपया कमाने की अंधी दौड़ के चलते, स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही, वर्तमान में उस दृष्टि से सुख प्रदान कर सकती है कि हम खूब तरक्की की राह पर अग्रसर हो रहे हैं।
इन तमाम प्रिय लगने वाली चीजों के प्रति दीवानगी, भविष्य में कितने दुःख के द्वार खोल सकती है, इसपर क्या हम कभी विचार करते हैं? " जो आज प्रिय लग रहा है, जरूरी नहीं कि वह हितकारी हो" इसलिए प्रियकर और हितकर के मध्य चुनाव करते समय हमारी जागृति बनी रहनी चाहिए।
"जो हितकर है, जरूरी नहीं कि वह आज प्रिय लगे" लेकिन, कालांतर में श्रेष्ठ जीवन के लिए वही अनिवार्य है। वैसे ही, जैसे बीमार को कड़वी दवा प्रियकर नहीं लगती, लेकिन स्वास्थ्य को सही करने में वह हितकारी भूमिका निभाती है।
व्यक्ति का सारा जीवन अधिकतर, वर्तमान सुख के लिए आज जो प्रिय लगता है, वही विकल्प चुनने में बीत जाता है। वह अपने स्वयं के जीवन को बेहतर बनाने के लिए जो हितकारी है, उसका त्याग करता चला जाता है।
हमारा जीवन इसी तरह की बाध्यताओं से भरा पड़ा है। इन बंधनों में हमारी चित्त की वृत्ति इस तरह झकड़े रहती है कि चाहते और जानते हुए भी हम श्रेयकर का चुनाव नहीं कर पाते! उसी को चुनते चले जाते हैं जो आज प्रियकर लग रहा है। यही मनोवृत्ति भविष्य में शरीर और मन के दुःख का बड़ा कारण बनती है।
हमारे ये चयन, सिर्फ हमारे ही नहीं, हमारे आसपास रह रहे तमाम लोगों को प्रभावित करते हैं। उनके भी दुःख का कारण बन जाते हैं। हितकर का चुनाव तात्कालिक त्याग का मार्ग हो सकता है। हमारा मन उसके लिए कितना तैयार है और यह चयन करने में भविष्य के प्रति कितनी दृष्टि हमने विकसित की है, यह इसपर निर्भर करता है।
जीवन को जो समग्र रूप में देखना जानता है, उसमें यह दृष्टिकोण सहज ही प्रकट होने लगता है। जो केवल वर्तमान की मौज मस्ती तक सीमित रहना चाहता है, उसकी प्राथमिकता में सदैव प्रियकर का ही चयन होता रहेगा।
हितकर आज चाहे कड़वा लगे, लेकिन बेहतरी के लिए अपनाया वह जाना चाहिए - "संदीप खमेसरा"