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क्या यौन संचारित संक्रमण (STDs) फर्टिलिटी को प्रभावित करते हैं?

WHO के अनुसार, दुनिया भर में प्रतिदिन 1 मिलियन से अधिक लोग यौन संचारित संक्रमणों का शिकार होते हैं-डॉ चंचल शर्मा 

 

दुनिया भर में हर दिन बड़ी संख्या में पुरुष और महिलाएं दोनों यौन संचारित रोग (एसटीडी) का शिकार होते हैं। लेकिन फिर भी महिलाएं समाज में इन समस्याओं के बारे में खुलकर बात करने में झिझक महसूस करती हैं। और इस प्रकार का रवैया समस्या को दिन-ब-दिन बदतर बनाता जाता है। WHO के अनुसार, दुनिया भर में प्रतिदिन 1 मिलियन से अधिक लोग यौन संचारित संक्रमणों का शिकार होते हैं। 

आशा आयुर्वेदा की डायरेक्टर और सीनियर फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट डॉ. चंचल शर्मा का कहना है की इससे महिलाओं और पुरुषों दोनों के स्वास्थ्य पर असर पड़ता हैं। अक्सर हम अपनी योनि से जुड़ी समस्या को नजरअंदाज कर देते हैं। यौन संचारित संक्रमण एक पुरानी स्थिति है, जिसे अनदेखा करने से स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं बढ़ सकती है। और इससे महिलाओं और पुरुषों की प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। जिसके कारण एक महिला के लिए प्रेगनेंट होना मुश्किल हो जाता है। 

डॉ. चंचल शर्मा बताती है कि यौन संचारित रोग सीधे तौर पर या अप्रत्यक्ष रूप से महिलाओं और पुरुषों में निसंतानता का कारण बन सकते हैं। जब एसटीडी (STD) का इलाज नहीं किया जाता है, तो संक्रमण विकसित हो सकता है जो प्रजनन प्रणाली में ऊपर जाकर महिला के गर्भाशय, अंडाशय और फैलोपियन ट्यूब में फैलकर खराब करने के साथ साथ घाव या सूजन का कारण बनकर निसंतानता का कारण बन सकता है। एसटीडी से संबंधित निसंतानता के दो प्रमुख कारणों में पहला पेल्विक सूजन रोग (पीआईडी) और दूसरा फैलोपियन ट्यूब को नुकसान होना शामिल हैं।

फैलोपियन ट्यूब में स्कारिंग होना एक्टोपिक प्रेगनेंसी के जोखिम को और बढ़ा सकता है। एक्टोपिक प्रेगनेंसी एक प्रकार की अनिर्धारित प्रेगनेंसी है। इस स्थिति में अंडा निषेचित होने के बाद गर्भाशय के बाहर प्रत्यारोपित हो जाता है। एसटीडी के मामले में कई बार 20 से भी अधिक बीमारियों का एक समूह देखा जाता है जो कई जटिलताओं का कारण बन सकता है। जब इन संक्रमणों का इलाज नहीं किया जाता है, तो अपरिवर्तनीय क्षति हो सकती है जो अक्सर निसंतानता का कारण बन सकती है।

डॉ. चंचल शर्मा बताती है कि एसटीडी होने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें क्लैमाइडिया, गोनोरिया, ह्यूमन पेपिलोमावायरस, सिफलिस आदि शामिल हैं। इलाज की बात करें तो आयुर्वेद औषधीय अध्ययन की एक धारा है जिसमें हमारी रोजमर्रा की बीमारियों से निपटने का निवरण मिलता है। आयुर्वेद उपचारों की मदद से एसटीडी को भी आसानी से ठीक या नियंत्रित किया जाता है। 

आयुर्वेद स्वास्थ्य समस्याओं का इलाज खोजने के लिए शरीर प्रणालियों, आहार संबंधी आदतों और सांस लेने की तकनीकों का प्रमुख रूप से उपयोग करता है और यह देखा गया है कि उपचार में उपयोग किए जाने वाले आयुर्वेद उपचारों की मदद से एसटीडी को भी आसानी से ठीक या नियंत्रित किया जाता है। 

एसटीडी के लिए आयुर्वेदिक उपचार में पंचकर्मा के साथ आयुर्वेदिक दवाइयां शामिल हैं।  इस तरह के रोग खासकर एसटीडी  इम्युनिटी सिस्टम को प्रभावित करते हैं। इसलिए मरीज के लिए अपने इम्यूनिटी सिस्टम को मजबूत करना बहुत जरूरी है। आयुर्वेदिक इलाज का का कोई भी साइड एइफेक्ट नहीं होता है और सटीडी पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।