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फायदे का सौदा है मधुमक्खी पालन, बशर्ते पूरी जानकारी होनी चाहिए

व्यवस्थित व वैज्ञानिक तरीके से शहद निकाला जाए तो इसका उत्पादन बढ़ सकता है

 

मधुमक्खी अपने डंक के कारण डराती है, लेकिन इसका इस्तेमाल बिजनेस के लिए किया जाए तो यह फायदे का सौदा है। भारत में मधुमक्खी पालन कर शहद जुटाने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। मधुमक्खी पालन बहुत ही फायदे का व्यवसाय है, बशर्ते आपको इसकी पूरी जानकारी होनी चाहिए।

मेवाड़ में राजस्थान के सबसे समृद्ध जंगल है। यहां कई प्रकार के जीवों का प्राकृतिक आवास है तो भिन्न भिन्न प्रजातियों के पेड़ पौधे हैं। ऐसे में यहां मधुमक्खी पालन की प्रचूर संभावनाएं हैं।विभिन्न जंगली पेड़ पौधों में औषधीय गुण होने से ये शहद औषधीय दृष्टि से अधिक गुणवत्तापूर्ण होता है। 

लेकिन इसके लिए उन्नत और वैज्ञानिक तकनीक अपनाए जाने की आवश्यकता है। परपरागत तरीके से लोग मधु मक्खियों को मारकर तथा उनके छत्तों को नष्ट करके शहद निकालते हैं। जो ठीक तरीका नहीं है। इसके लिए ग्रामीणों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। व्यवस्थित व वैज्ञानिक तरीके से शहद निकाला जाए तो इसका उत्पादन बढ़ सकता है और बेहतर पैकेजिंग के साथ बाजार में लाया जाए तो दाम भी बेहतर मिल सकते हैं।

ग्रामीण बेतरतीब तरीके से शहद निकालते है 

कई बार एस होता है की मधुमक्खियों के छत्तों से ग्रामीण बेतरतीब तरीके से शहद निकालते हैं। वे या तो पेड़ों के नीचे आग लगा कर या सीधे पूरे छत्ते को तोड़कर शहद लेते हैं। दोनों ही तरीके से मधुमक्खियां नहीं बच पाती। आग लगा देने से जहां उनके पंख जल जाते हैं और वे जमीन पर गिरकर मर जाती है। वहीं सीधे छत्ते को तोड़ देने से उन्हें उड़ना पड़ता है और छत्तों में एक-एक हिस्से में रहने वाले उनके अंडे और बच्चे मर जाते हैं। ऐसे में वे शहद का सीमित मात्रा में उत्पादन ले पाते हैं।

एमपीयूएटी के माध्यम से किया जा सकता है प्रशिक्षित

उदयपुर के महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में भी एपीकल्चर (मधुमक्खी पालन) का प्रशिक्षण दिया जाता है। यदि विश्वविद्यालय के माध्यम से उदयपुर के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को उन्नत तकनीक का प्रशिक्षण दिया जाता है, मेवाड़ के वाइल्ड हनी के उत्पादन में बढ़ोतरी हो सकती है और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकता है।