समाजसेवी जगदीश प्रसाद बंसल की देह RNT मेडिकल कॉलेज को सौंपी
दस साल पहले देहदान का संकल्प पत्र भरा था
उदयपुर 14 जनवरी 2025 । कहते हैं दुनिया में दान का बडा महत्व है, लेकिन इनमें भी देहदान सबसे बडा दान माना जाता है। मृत्यु के पश्चात अपनी देह को उस काम के लिए सौंप देना जिससे डाक्टर्स परीक्षण कर हजारों लाखों जिंदगियों के लिए एक आधार तय करें। ऐसा ही एक उदाहरण उदयपुर में अग्रवाल समाज के जगदीश प्रसाद बंसल ने पेश किया।
मूल रुप से ब्यावर निवासी 82 वर्षीय जगदीश प्रसाद बंसल पिछले कई समय से यहां भूपालपुरा में अपने पुत्र सुनील बंसल के निवास पर रह रहे थे। ह्दयाघात के कारण सोमवार को उनका निधन हो गया। जगदीश प्रसाद बंसल ने दस साल पहले ही अपना देहदान करने की ईच्छा व्यक्त कर संकल्प पत्र भी भर दिया था और परिवारजनों को भी इसकी जानकारी दे दी थी। उनकी भावना और मंशा के अनुरुप परिवार ने उनकी देह सोमवार को आरएनटी मेडिकल कॉलेज को प्रशिक्षु चिकित्सकों के अध्ययन के लिए सौंप दी।
सोमवार दोपहर में उनकी शवयात्रा भूपालपुरा से प्रस्थान हुई जिसमें अग्रवाल समाज के अलावा बडी संख्या में शहर के प्रबुद्जन शामिल हुए। शाम करीब सवा चार बजे परिजनों ने देह शरीर रचना विभाग की विभागाध्यक्ष डॉक्टर सीमा प्रकाश को देहदान की।
डाक्टर सीमा प्रकाश ने जगदीश प्रसाद बंसल के पुत्र सुनील बंसल व अनिल बंसल तथा पुत्री शशिकला व सुमित्रा के नाम सर्टिफिकेट भी जारी कर मृत्आत्मा के शरीर को सद्गति व आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की।
उल्लेखनीय है कि श्री जगदीश प्रसाद बंसल ब्यावर में और बाद में उदयपुर में समाजसेवा में लगे हुए रहे थे। भगवान खाटू श्याम के प्रति उनकी अगाढ आस्था थीं। उनके पुत्र सुनील बंसल भी समाजसेवी है और भगवान खाटू श्याम के भजन कीर्तन करवाकर उदयपुर की हजारों जनता को अध्यात्म की ओर ले जा रहे हैं।
सुनील बंसल ने बताया ने की उठावना बुधवार शाम को 5 बजे उनके निवास स्थान भूपालपुरा पर रखा गया है। उन्होंने बताया कि देहदान के प्रति जागरुक होने की जरुरत: देहदान सबसे बडा दान माना जाता है, लेकिन आज भी समाज में लोग देहदान करने से कतराते हैं। उनका मानना है कि इससे शरीर को सद्गति नहीं मिलती, लेकिन शास्त्रों में भी इसको महादान कहा गया है और बताया गया कि देहदान से शरीर को मोक्ष और मुक्ति प्राप्त होती है। कई ऋषि मुनियों
ने भी अपने देह का दान किया था। अस्पताल सूत्रों ने बताया कि हर साल अध्ययन के लिए करीब 25 शवों की जरुरत होती है, लेकिन 7-8 ही प्राप्त हो पाती है। देहदान के प्रति लोगों को जागरुक होने की आवश्यकता है।