जीवन के प्रति सत्य दृष्टिकोण पैदा करें: सौभाग्य मुनि
श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने कहा कि आज मानव भौतिकवाद की चकाचौंध में भटक रहा है। निरन्तर अपने साधन बढ़ाकर अधिकाधिक सामग्री का स्वामी बन जाने को तड़प रहा है, बहुत कुछ जुटा भी रहा है किन्तु शान्ति कहां? व्यक्ति बहुत कुछ पाकर भी संक्लेशों की भट्टी में जल रहा है।
श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने कहा कि आज मानव भौतिकवाद की चकाचौंध में भटक रहा है। निरन्तर अपने साधन बढ़ाकर अधिकाधिक सामग्री का स्वामी बन जाने को तड़प रहा है, बहुत कुछ जुटा भी रहा है किन्तु शान्ति कहां? व्यक्ति बहुत कुछ पाकर भी संक्लेशों की भट्टी में जल रहा है।
दिन तो क्या मानव रात को नींद में भी बेचैन है, क्योंकि उसने जीवन को मोह की भट्टी में धकेल दिया है। उसे प्रत्येक वस्तु अधूरी और अपर्याप्त लगती है। एक आग सी जल रही है मानव मन में। ऐसा क्यो हो रहा है ?
इसका मुख्य कारण मानव अपने जीवन के प्रति एकांगी दृष्टिकोण है। उसमें पारमार्थिक और यथार्थ दृष्टि का अभाव है। मुनि ने कहा कि धार्मिक भावनाओं का नितांत अभाव हो, ऐसी बात नहीं है। थोड़ी बहुत धार्मिक भावनाएं सभी में पाई जाती है किन्तु उनका उपयोग सही तरह से नहीं हो रहा है। तीर्थों में नहाने या धर्म स्थानक में आ जाने मात्र से धर्म का स्वरूप जीवन में प्रकट नहीं हो जाता। धार्मिक भावना को सफल बनाने के लिये सर्वप्रथम विचार शुद्धि आवश्यक है। अपने मन में भरे हुए जो असत्य, मोह और अहंकार के भाव है, उनसे छुटकारा पाने का प्रयास करें। जीवन के प्रति सत्य दृष्टिकोण पैदा करें। हम जहां है, वह एक सराय ही तो है।
एक दिन यहां से जाना भी है ही, यह बात विचारों में पूर्णतया स्वीकृत रहनी चाहिये। जितने पदार्थ हमारे पास हैं या आसपास हैं वे सारे नष्ट होने वाले है। हम उन पर मुग्ध होकर जीयें तो यह एक मूढ़ता ही है। मुनि जी ने बताया कि यह सत्य है कि जीवन को बाह्य साधनों की आवश्यकता रहती है किन्तु आवश्यक साधन यदि उपयोग पुरस्सर है तो उनकी प्राप्ति आवश्यक व्यवहार है किन्तु हजारों ऐसे साधन इकट्टे करना कि जिनका उपयोग हो ही नही पाता तो यह यह एके मोह मुग्धा ही है।
सद्ज्ञान से जीवन में सत्य का उदय होता है। गुरू उपदेश दे सकते है किन्तु कहॉ, कब, क्या करना यह निर्णय तो व्यक्ति को स्वयं करना होगा। व्यक्ति को स्वयं का चरित्र बनाने के लिये अपना गुरू स्वयं को ही बनना पड़ेगा। मुनि ने बताया कि प्रतिदिन मानव मात्र को तीन बातों पर अवश्य चिन्तन कर लेना चाहिये। हम जो परमार्थ करते है वह अमृत है, जो कर्तव्य पूर्ण व्यवहार करते है वह पानी है और जो अधर्म और पापपूर्ण प्रवृति करते है वह जहर है।
कल दिनभर में हमने अमृत, पानी और जहर इनमें से कितना क्या पिया? अर्थात् आचरण में अमृत, पानी और जहर में से किसकी मात्रा अधिक रही, इसका गहराई से चिंतन करें। यदि पाप ज्यादा रहा तो उसे तुरन्त निकाल कर दूर कर देना चाहिये। सभा को विकसित मुनि ने भी सम्बोधित किया। संचालन हिम्मत बड़ाला ने किया। स्वागत अध्यक्ष वीरेन्द्र जी ड़ांगी ने किया।