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12 दिवसीय पेन्टिंग एवं मूर्तिशिल्प कार्यशाला में उभर रही कलाकृतियां

कलाकारों की संस्था टखमण 28 अपनी स्वर्णजयन्ती के उपलक्ष में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, ललित कला अकादमी, नई दिल्ली, केन्द्रीय सांस्कृतिक मंत्रालय, राजस्थान ललित कला अकादमी जयपुर के संयुक्त तत्वावधान में देश-विदेश के कलाकारों को एक मंच प्रदान करते हुए कार्यशाला में देश-विदेश के कलाकारों द्वारा शहरवासियों के अवलेाकनार्थ नित नयी कलाकृतियों का सृजन किया जा रहा है।

 

टखमण में भाग लेने आई बांग्लादेशी प्रीति अली

कलाकारों की संस्था टखमण 28 अपनी स्वर्णजयन्ती के उपलक्ष में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, ललित कला अकादमी, नई दिल्ली, केन्द्रीय सांस्कृतिक मंत्रालय, राजस्थान ललित कला अकादमी जयपुर के संयुक्त तत्वावधान में देश-विदेश के कलाकारों को एक मंच प्रदान करते हुए कार्यशाला में देश-विदेश के कलाकारों द्वारा शहरवासियों के अवलेाकनार्थ नित नयी कलाकृतियों का सृजन किया जा रहा है।

टखमण में भाग लेने आई बांग्लादेशी प्रीति अली ने बताया कि उसे बचपन से ही चित्रकारी का शौक है यह शोक उन्हें इसलिए लगा क्योंकि उनके पिताजी भी यही कार्य करते थे। वर्तमान में वह फ्रीलांस चित्रकारी करती है। पहले वह मिक्स मीडिया में काम करती थी लेकिन वहां पर बंधन काफी ज्यादा होने से उन्होंने वह काम छोड़ दिया। अब वह स्वतंत्र रूप से स्वयं काम करती है। उनकी बनाई हुई कलाकृतियों को दुनिया में काफी पसंद किया जाता है। मिक्स मीडिया में काम करते हुए वह स्वयं के लिए समय नहीं दे पा रही थी। इसलिए अब उन्होंने स्वतंत्र रूप से ही यह काम करना शुरू किया। टखमण उदयपुर से आमंत्रण मिलने के बाद वह उदयपुर पहुंची और अपनी कला का प्रदर्शन कर रही है।

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1974 से चित्रकारी कर रहे चितेरे डॉक्टर बसंत कश्यप ने बताया कि उन्हें बचपन से ही चित्रकला का शौक लग गया था। वह मूल रूप से उदयपुर के गोवर्धन विलास क्षेत्र के रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि वह बचपन में बच्चों के साथ खेलने के लिए जाया करते थे, वहां पास में ही एक स्कूल था। वहां पर स्कूल मे चित्रकला का काम देखते थे। उस समय वह उन बच्चों के साथ मिलकर गांधीजी चाचा नेहरू आदि के चित्र बनाया करते थे। धीरे-धीरे उन्हें चित्र बनाने की आदत हो गई । उसके बाद उन्होंने पढ़ाई के दौरान ड्राइंग में ही एडमिशन लिया और आगे जाकर वह इसके ही प्रोफेसर बन गये। उन्होंने अपनी चित्रकारी कला को समकालीन कला का नाम दिया है। 61 वर्षीय डॉक्टर कश्यप को इस कला के लिए राष्ट्रीय अवार्ड भी मिल चुका है।

डॉक्टर बसंत कश्यप

मूर्ति कला में अपनी विशिष्ट पहिचान रखने वाली उदयपुर की शिल्पकार डॉ मर्यादा हिंगड़ गत 12 वर्षों मुंबई में रह रहे है। उन्होंने बताया कि टखमण से ही उन्होंने यह कला सीखी है आज वह जो कुछ भी मूर्ति कला के क्षेत्र में काम कर रही है वह टखमण की ही देन है। अभी टखमण के आमंत्रण पर वह अपनी कला का प्रदर्शन करने उदयपुर आई है। उन्होंने बताया कि मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय से उन्होंने ड्रॉइंग में डिप्लोमा किया है । डिप्लोमा करने के बाद वह टखमण से जुड़ी और यहां से चित्रकला की बारीकियों गहराइयों को जाना और समझा। उन्होंने इस कला पर पीएचइडी भी की है। उन्हें राजस्थान ललित कला अकादमी जयपुर द्वारा राज्य स्तरीय सम्मान से सम्मानित भी किया जा चुका है अभी वह एक वाद्य यंत्र एक तारा का निर्माण कर रही है । वह टखमण में 12 दिनों की कार्यशाला के दौरान ही इसे पूरा करेगी। हिंगड ने बताया कि वह आज जो कुछ भी है टखमण की वजह से ही है।

शिल्पकार डॉ मर्यादा हिंगड़