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विश्व पर्यटन दिवस पर राजकीय संग्रहालयों एवं स्मारकों में प्रवेश निःशुल्क

विश्व पर्यटन दिवस के उपलक्ष्य में 27 सितंबर को राजकीय संग्रहालयों एवं संरक्षित स्मारकों में पर्यटकों का प्रवेश निःशुल्क रहेगा। पुरातत्त्व एवं संग्रहालय विभाग अधीक्षक डॉ. विनीत गोधल ने बताया कि हर वर्ष कि भांति इस वर्ष भी निदेशालय से विश्व पर्यटन दिवस पर राजकीय संग्रहालयों एवं स्मारकों में पर्यटकों का प्रवेश निःशुल्क रखने के आदेश प्राप्त हुए हैं. राजकीय संग्रहालय आहड़ में पर्यटकों के प्रवेश का समय पूर्व में ही दोपहर 12 बजे से रात्रि 8 बजे तक किया जा चुका है।

 

विश्व पर्यटन दिवस के उपलक्ष्य में 27 सितंबर को राजकीय संग्रहालयों एवं संरक्षित स्मारकों में पर्यटकों का प्रवेश निःशुल्क रहेगा। पुरातत्त्व एवं संग्रहालय विभाग अधीक्षक डॉ. विनीत गोधल ने बताया कि हर वर्ष कि भांति इस वर्ष भी निदेशालय से विश्व पर्यटन दिवस पर राजकीय संग्रहालयों एवं स्मारकों में पर्यटकों का प्रवेश निःशुल्क रखने के आदेश प्राप्त हुए हैं. राजकीय संग्रहालय आहड़ में पर्यटकों के प्रवेश का समय पूर्व में ही दोपहर 12 बजे से रात्रि 8 बजे तक किया जा चुका है।

आहड़ संग्रहालय संरक्षण एवं जीर्णोद्धार कार्य के पश्चात एक नए स्वरुप में पर्यटकों का स्वागत करने को तैयार है। आहड़ स्थित पुरास्थल धूलकोट के उत्खनन से प्राप्त प्राचीन अवशेषों को सरक्षित एवं प्रदर्शित करने के लिए इस संग्रहालय का निर्माण किया गया था। 1960-61 के दौरान इस संग्रहालय का निर्माण किया गया था किन्तु बाद में धीरे धीरे इस संग्रहालय में अनेक सामग्री आने के बाद इसका विस्तार किया जाता रहा। यह धूलकोट अपने अन्दर आज से लगभग छरू-सात हजार वर्ष पुरानी सभ्यता के अवशेष छुपाये हुए है। यह मेवाड़ का ही नहीं अपितु संपूर्ण देश के प्राचीनतम ग्रामीण समुदायों के समकक्ष अपना विशेष स्थान रखता है। देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में आहड़ संस्कृति से सम्बंधित अध्यायों को पुरातत्त्व के विद्यार्थियों को विशेष तौर पर पढाया जाता रहा है।

प्रदर्शनी दीर्घा इस बार संग्रहालय में एक अलग कक्ष में बनायीं गयी है। इस प्रदर्शनी दीर्घा में समय समय पर नवीन प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाएगा. इस समय इस दीर्घा में वेळी क्रसन रुक्मण री प्रदर्शनी को निरंतर जारी रखा गया है। इस कक्ष में एक टीवी भी लगाया गया है जिसमे समय समय पर पर्यटन के विज्ञापन एवं अन्य डॉक्युमेंट्री भी चलायी जायेंगी।

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पुरातात्त्विक दीर्घा में आदिमानव के आज से लगभग 5 लाख वर्ष पुराने पत्थरों के औजार सबसे पहले प्रदर्शित किये गए है। इन औजारों से तत्कालीन मानव अपने लिए शिकार करके भोजन की व्यवस्था करता था। ये उपकरण पूर्व में सर्वेक्षण में नदियों के किनारों से एकत्रित किये गए थे। मानव की विकास यात्रा को भी यहाँ पर चार्ट के माध्यम से आने वाले पर्यटकों को समझाने के लिए प्रदर्शित किया गया है।

इसके पश्चात आहड़ के उत्खनन से प्राप्त विभिन्न प्रकार के प्रागैतिहासिक उपकरण, विभिन्न प्रकार के म्रद्पात्र, ताम्बे से निर्मित सामग्री, मनके, पकी मिट्टी की मूर्तियाँ एवं तीसरी सदी ईस्वी पूर्व से द्वितीय सदी ईस्वी पूर्व कि ऐतिहासिक सामग्री भी इस संग्रहालय में जीर्णोद्धार के बाद प्रदर्शित की गयी है। आहड़ के प्राचीन ग्राम का एक कल्पनात्मक चित्र भी दीर्घा में लगाया गया है। मेवाड़ क्षेत्र में आहड़ एवं बालाथल का विस्तृत तौर पर उत्खनन कार्य किया गया है।

आहड़-बनास संस्कृति को विशेष प्रकार के म्रद्पात्र कृष्ण लोहित पात्रों के आधार पर विभिन्न्कृत किया गया है। अन्य पात्र प्रकारों में धूसरित पात्र, लाल पात्र, लाल रंग की परत चढ़े पात्र सम्मिलित किये जा सकते हैं। पक्की मिटटी से बने पुरावशेषों में गोल चक्राकार गोटियाँ, खिलोने बैल, मनके एवं विभिन्न आकार प्रकार की गोटियाँ भी सम्मिलित हैं। इसके अलावा ताम्र निर्मित अवशेषों में अंगूठियाँ, चुड़ियाँ, कुल्हाड़ियाँ, चाकु एवं ताम्बे के साथ ताम्र धातु शोधन के मलबे भी प्राप्त हुए हैं जो तत्कालीन ताम्र धात्विकी पर प्रकाश डालते हैं। अन्य सांस्कृतिक अवशेषों में खिलोने गाड़ियों के पहिये, पत्थर की गोल गेंदे, विभिन्न प्रकार के कूटने पीसने वाले पत्थर, शंख एवं कांचली मिट्टी से बने मनके विशेष हैं। अनेकानेक सामग्री यहाँ प्रदर्शित की गयी है।

इसके बाद चित्र दीर्घा में रागमाला चित्रावली प्रदर्शित की गयी है। सत्रवी सदी के मध्य में राजस्थान में चित्रकला की एक नयी परंपरा का विकास हुआ जिसमे संगीत काव्य एवं चित्रकला की समन्वित अभिव्यक्ति दिखाई देती है। यह सभी चित्रांकन दो साहित्यों संगीत माला और रागमाला पर आधारित है। ये चित्र मेवाड़ी कला का बहुत सुन्दर रूप है और इनसे तत्कालीन कला का पता चलता है।

इसके निकट कि गैलरी में ही उत्खनन का मोडल भी प्रदर्शित किया गया है जिसके निकट विभिन्न प्रकार कि जानकारी देने वाले बोर्ड लगाये गए हैं। इसके पश्चात मूर्ति दीर्घा में स्थानीय क्षेत्र से प्राप्त अनेक मूर्तियाँ बड़ी और छोटी दोनों प्रकार कि प्रदर्शित की गयी है। ये मूर्तियाँ बहुत ही सुन्दर है और मेवाड़ के कलाकार्रो के हस्तशिल्प का ज्ञान कराती हैं। इन मूर्तियों में विष्णु के अवतार, नाग युगल, शिव, सूर्य, जैन मूर्तियाँ, दिक्पाल, मूर्तियों के चारों और लगाये जाने वाला परिकर आदि प्रदर्शित किये गए हैं।

इसके पश्चात आगे आने पर दो कक्षों में अस्त्र-शस्त्रों का प्रदर्शन किया गया है। तलवार, कटार, भाले, छोटी सजावटी तोप, हेलमेट, जिरह बख्तर, तोड़ेदार बन्दूक, कारतूस बन्दूक, रिवाल्वर आदि भी बहुत ही सुन्दर तरीके से दिखाए गए है।