हरित जलवायु निधि की टीम ने किया नवीन जलग्रहण क्षैत्र का दौरा
हरित जलवायु निधि का एक दल उदयपुर पंहुचा
उदयपुर, 17 सितंबर 2020 । राज्य के गांवों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से राज्य में हरित जलवायु निधि (जीसीएफ) के तहत प्रस्तुत प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान को गति प्रदान करने एवं अब तक की स्थिति की समीक्षा के लिए हरित जलवायु निधि का एक दल उदयपुर पंहुचा।
वाटरशेड सेल के अधीक्षण अभियंता एवं परियोजना प्रबंधक आर.के.अग्रवाल ने बताया कि इस टीम में नाबार्ड के उप महाप्रबन्धक डॉ. सुरेन्द्र बाबू ने अन्य सदस्यों के साथ पंचायत समिति सराडा के अजबरा, अदवास, भोरिया एवं जावद गांवो का अवलोकन किया एवं हरित जलवायु निधि के तहत करवाये जाने वाले कार्यो की विस्तृत जानकारी ली।
उन्होने पंचायत समिति सलूम्बर के नोली ग्राम पंचायत डगार में एमजेएसए के तहत करवाये गये कार्यो का भी अवलोकन किया। टीम ने भींडर पंचायत समिति की उम्मेदपूरा गांव में विकसित किए गए लगभग 700 बीघे चारागाह में मॉडल के रूप में जलग्रहण विकास के विभिन्न कार्य यथा एमपीटी, स्टेगर्ड ट्रेैन्च, एनीकट तथा पौधारोपण आदि कार्यों का भी निरीक्षण किया व कार्यों की सराहना की। इस अवसर पर परियोजना से संबंधित विभिन्न गतिविधियों की चर्चा करते हुए आयुक्त जल ग्रहण विकास भू संरक्षण जयपुर सीताराम बंजारा विभिन्न गतिविधियों की पूरी जानकारी दी।
अग्रवाल ने बताया कि चरणबद्ध तरीके से चार वर्षों के दौरान लगभग 21 हजार गाँवों को कवर किया जाना था। हालाँकि, सीमित वित्तीय संसाधनों के कारण, प्रथम चरण में केवल 3 हजार 529 गाँव ही कवर किए जा सके, द्वितीय चरण में शामिल 4 हजार 214 गाँव और तृतीय चरण में शामिल 4 हजार 313 गाँव, तीन चरणों में 12 हजार 056 गाँव शामिल हैं।
जीसीएफ परियोजना के लिए तैयार अवधारणा नोट के अनुसार चतुर्थ चरण में भी उतने ही गाँव प्रस्तावित किए जा सकते हैं, क्योंकि अधिक गाँवों को कवर करने के लिए अतिरिक्त धन उपलब्ध नहीं कराया जाएगा। जिसमें लगभग 16 हजार गाँवों को एमजेएसए के तहत कवर किया जाएगा जो एक अनुमानित क्षेत्र है।
सीमित वित्तीय संसाधनों के मद्देनजर, गाँवों की संख्या बढ़ाने के लिए विभाग ने कुछ बाह्य धन स्रोतों की खोज की। तदनुसार, विभाग, एसएलएससी की मंजूरी लेने के बाद, एमजेएसए के चरण-पंचम के तहत गांवों की संख्या को बढ़ाने के लिए जीसीएफ के तहत अनुदान के लिए एक अवधारणा नोट प्रस्तुत किया, जिसकी मंजूरी पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा सिद्धांत रूप में दी गई है। इस प्रस्ताव की लागत लगभग 3 हजार करोड हैं जिससे अतिरिक्त 5000 गाँवों को कवर किया जा सकेगा।