RTI की पालना नहीं कर रहे है सूचना अधिकारी
भारत में साल 2005 में सूचना का अधिकार (राइट टू इनफार्मेशन) का कानून प्रदेश समेत पूरे देश में लागू हुआ था। इस कानून का उद्देश्य सरकार और सरकारी काम-काज में पारदर्शिता लाने और सरकरी महकमों में व्याप्त भ्रष्टाचार रोकना था। लेकिन आज 15 साल बाद भी कई लोक सूचना अधिकारी इस कानून की पालना नहीं कर रहे हैं। ऐसा करने वाले अधिकारीयों पर जुर्माने और सख्ती का भी कोई असर नहीं है।
प्रदेश में बीते 10 साल में 4 हजार 214 सूचनाएं उपलब्ध नहीं कराने, गलत या अधूरी सूचनाएं देने, सूचना अटकाने वाले अधिकारियो पर साढ़े चार करोड़ रुपए का जुर्माना भी लगाया चुका है। हालात यह है की साढ़े चार करोड़ जुर्माने में से भी लगभग ढाई करोड़ जुर्माना अधिकारियो ने जमा ही नहीं करवाया। वहीँ आरोपी अधिकारियो के रिटायर्ड होने या मृत्यु के बाद जुर्माना वसूलना और भी टेढ़ी खीर साबित हो सकती है।
उक्त खुलासा आरटीआई कार्यकर्ता तरुण अग्रवाल को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत राज्य सूचना आयोग से मिली जानकारी में हुआ है। आरटीआई कार्यकर्ता तरुण अग्रवाल के अनुसार सूचना अधिकारी ना तो यथासमय सूचना उपलब्ध करवाते है, न जुर्माना अदा कर रहे। जबकि यह जुर्माना 30 दिन के अंदर अंदर जमा हो जाना चाहिए। यही वजह है कि आरटीआई आवेदकों की हजारों अपीलें राज्य सूचना आयोग में लंबित हैं। अपीलों की संख्या में दिनोदिन बढ़ोतरी होने से इनके निस्तारण में काफी समय लग रहा है। जुर्माना राशि जमा नहीं कराने से अधिकारियो में भय भी समाप्त होता जा रहा है।
वहीँ दूसरी आरटीआई कार्यकर्ता शांतिलाल मेहता के अनुसार ज्यादातर लोक सूचना अधिकारियों आधी-अधूरी सूचनाएं ही प्रदान करते हैं। कई लोक सूचना अधिकारी भ्रष्टाचार छिपाने के लिए फाइल, दस्तावेज गुम हो जाने या नहीं मिलने का बहाना बना देते हैं।