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उदयपुर: परिंदों के पर्यवेक्षण में दिखाई दे रहे दिलचस्प वाकयें

लॉकडाउन में भी चल रही चिडि़या की जिन्दगानी
 
लॉकडाउन के दौरान जहां आम लोग अपने बचाव के लिए पूरी तरह घरों में ही रहकर जीवन बचाने की जद्दोजहद करते दिखाई दे रहे हैं वहीं इन दिनों परिंदों की जीवनचर्या में तनिक मात्र भी बदलाव नहीं दिखाई दे रहा है अपितु उनमें ज्यादा उन्मुक्तता का अहसास देखा जा रहा है।

उदयपुर, 24 अप्रेल 2020। वैश्विक महामारी घोषित हो चुके कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए लागू किए गए लॉकडाउन के दौरान जहां आम लोग अपने बचाव के लिए पूरी तरह घरों में ही रहकर जीवन बचाने की जद्दोजहद करते दिखाई दे रहे हैं वहीं इन दिनों परिंदों की जीवनचर्या में तनिक मात्र भी बदलाव नहीं दिखाई दे रहा है अपितु उनमें ज्यादा उन्मुक्तता का अहसास देखा जा रहा है।

ऐसा ही वाकया शहर के मध्य स्थित गुरु रामदास कॉलोनी में रहने वाले पक्षीप्रेमी विनय दवे के निवास पर देखा जा रहा है जहां पर दवे द्वारा लगाए दो कृत्रिम घौंसलों में घरेलु गोरैया के तीन जोड़ों ने न सिर्फ प्रजनन किया अपितु अपनी संतति का भरण पोषण कर उन्हें प्रकृति में उन्मुक्त किया।

ख्यातनाम पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. सतीश शर्मा के निर्देशन में शोध कार्य के रूप में दवे ने जहां एक माह की इस संपूर्ण प्रक्रिया को न सिर्फ देखा अपितु इनकी गतिविधियों को अपने कैमेरे के सहारे रिकार्ड भी किया। इस मोहल्ले में गोरैया के दो दर्जन से अधिक घौंसले इस पर्यवेक्षण शोध का आधार बने हैं। लॉकडाउन के दौरान इस प्रकार के पर्यवेक्षण में गोरैया की प्रकृति, प्रजनन प्रक्रिया और संतति को फिडिंग कराने की विधि के बारे में कई दिलचस्प तथ्य भी प्रकाश में आए।

नज़र आया कोरोना का दुष्प्रभाव:  

इस पर्यवेक्षण शोध पर दवे ने बताया कि पहले पहल तो जब चूजा बहुत छोटा था तो नर-मादा गोरैया चार से पांच मिनट में फिडिंग कराते थे। ज्यों-ज्यों चूजा बड़ा हुआ तो फिडिंग टाईम बढ़ता गया। जब चूजा़ बड़ा होकर घौंसलें से बाहर झांकने लगा तो हर एक मिनट में नर-मादा उसको फिड कराने लगे। यह क्रम लगातार दो दिन चलता रहा। तीसरे दिन नर-मादा के आने का क्रम तीस सैकण्ड हो गया। चौथे दिन अचानक चार से पांच मिनट हो गया। इस प्रकार का अक्रमिक अंतर देखकर आश्चर्य हुआ तो तलाश करने पर पाया कि जिस दिन कोरोना संक्रमण के चलते मोहल्ले में नगर निगम द्वारा फोगिंग की गई थी तो उससे अनैक किट-पतंगे मर गए, जिससे नर-मादा मरे हुए किट पतंगे उठाकर लाने लगे और फिडिंग का क्रम तीस सैकण्ड हो गया। दूसरे दिन अधिकांश किट पतंगे मर जाने से उन्हें चूजे के लिए भोजन की प्राप्ति नहीं हुई और इस कारण से चार-पांच मिनट का क्रम हो गया। पांचवें दिन इसका दुष्प्रभाव देखा कि नर-मादा रोटी के टुकड़े बच्चे को खिलाने लगे जबकि ऐसा आमतौर पर नहीं करते हैं क्योंकि चूजे के विकास के लिए प्रोटिन की आवश्यकता होती है जो कि किट पतंगों में सर्वाधिक होता है।

दिखा दिलचस्प वाकया

दवे ने बताया कि अपने छत पर लगाये गए कृत्रिम घौंसलें से पांच मीटर दूरी पर एक अन्य कृत्रिम घौंसला भी लटकाया था। विगत दो वर्षों से गोरैया का एक जोड़ा इसी एक घौंसले में प्रजनन करता था। यह जोड़ा पास में लगे हुए दूसरे घौंसले में किसी अन्य गोरैया या अन्य पक्षी को नहीं आने दे रहा था परंतु इस वर्ष इस जोड़े के नर ने एक अन्य मादा गोरैया से दोस्ती कर ली और उस घौंसले को भी आबाद कर दिया। शुरू में तो दोनों मादाएं लड़ती थी पर अब दोनों में सुलह होती दिखाई दे रही है और यहीं वजह है कि अब यहां पर एक नर और दो मादाएं अलग-अलग घौंसलों में प्रजनन कर रही है।