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क्या रिश्ते का टूटना सिर्फ लड़की की गलती?

आज का जो लेख है वह मेरी जिन्दगी की वास्तविकता से जुड़ा है। लेकिन यह लेख उन लड़कियों के लिये है जो मेरे जैसे दौर से गुजर चुंकि है या फिर यू कहूँ कि मेरे जैसी मिलती जुलती परिस्थिति का सामना करती है।

 

आज का जो लेख है वह मेरी जिन्दगी की वास्तविकता से जुड़ा है। लेकिन यह लेख उन लड़कियों के लिये है जो मेरे जैसे दौर से गुजर चुंकि है या फिर यू कहूँ कि मेरे जैसी मिलती जुलती परिस्थिति का सामना करती है।

ये लेख मेरी अब तक की कहानी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। एक ऐसी लड़की की कहानी जिसमें एक लड़की की सगाई मतलब कच्चा दस्तुर होकर छुट जाता है। फिर वो समाज में जिस तरह के हालात या तानों से गुजरती है या उनका सामना करती है।

समाज जो अपने लोगों से मिलकर बनता जिसमें हम रहते हैं। तो इस समाज की एक छोटी सी झलक बताती हूँ। जब लड़की का रिश्ता होकर छूटता है तो वह मजबूती के साथ सब कुछ भूलकर एक अच्छी जिन्दगी जीना चाहती है, आगे बढ़ना चाहती। लेकिन वो जैसे ही कदम उठाती है, सबसे पहले उसे इस नजर से देखते कि अरे! यह वही लड़की है जिसका फलाना जगह रिश्ता होकर छूटा था।

जब लड़की और उसके परिवार वाले कहीं खुशी से जाते और खुशी का सामना करते तो उन्हें सवालों का सामना करना पड़ता। जैसे क्या उसी तारीख को लग्न तय हुए, अब ज्यादा दिन कुँवारी नहीं रखना वरना लोग क्या सोचेगे कि पहले रिश्ता क्यों छूटा, तो कुछ लोग बोलते अब कब कर रहे हो लड़की की शादी? तो कुछ लड़की को यानि मुझे ही ताने देते की जो हुआ अच्छे के लिये।

मेरा किसी कि जिन्दगी से चले जाने से लड़के का प्रमोशन हुआ। क्या किसी लड़की का लड़के के साथ सिर्फ कच्चा दस्तुर हो जाने से उसकी नौकरी और तरक्की को जोड़कर देखा जाता? ये बातें तो हमारे हाथ में नहीं होती क्योंकि किसी ने कहीं न कहीं सच कहा कि जोडि़यां ऊपर से लिखी। फिर ऊपर वाले के जवाब में समाज के सवाल का सामना क्यूँ?

और यह भी तो सोच सही नहीं कि रिश्ता सिर्फ इसी वजह से छूटता कि लड़के में बुराई है या फिर लड़की में बुराईयां कभी-कभी सभी अच्छाईयां होते हुए भी सब हालात सही नहीं होते। क्योंकि जो आपके लिये है ही नहीं तो उन रिश्तों के छूटने के बहाने तो बनेंगे ही।

मेरे ध्यान में ऐसे भी किस्से जिनका शादी के बाद तलाक होता तो फिर समाज सवाल खड़ा कर देता। लड़की या लड़के को ताने के दौर से गुजरना पड़ता। किसी रिश्ते के छूटने से जिन्दगी जीना तो नहीं छूटती। अपितु मजबुरियां और मुश्किलें ही इंसान को मजबूती देती है। और ऐसी परिस्थिति में चुनौतियां बढ़ जाती है।

ऐसे दौर में खुद की अच्छाईयों को जिन्दा रखना बहुत मुश्किल होता है। क्योंकि कहीं न कहीं लड़की से जुड़े परिवार को समाज के तानों का सामना करना पड़ता। तो यह अपने आप में उस दौर में एक चुनौती है कि खुद की अच्छाई का इस्तेमाल सही दिशा में कैसे किया जाए।

मन दुःखता है तो दिमाग रूकता है, लेकिन फिर भी मन तो चलता रहता है ना, तो दिमाग को भी चलना ही पड़ता है। इसलिये जब भी ऐसी विपरित परिस्थिति आये तब समझ लेना चाहिए कि स्वयं को साबित करने का समय आया है। वरना यह समाज आसानी से जीने नहीं देता। इसलिये ऐसे हालात में स्वयं को चुनाव करना कि खुद को टूटना है या फिर अपनी अच्छाई और योग्यता का सही दिशा में इस्तेमाल करके रिकॉर्ड तोड़ने।

-नुपुर जारोली