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मेवाड क्षैत्र की फसलों में जिंक का उपयोग बढाने पर अंतर्राष्ट्रीय समझोता

हिंदुस्तान जिंक और MPUAT के बीच एमओयू 

 

उदयपुर 4 दिसंबर 2021 विश्व स्तर पर बेहतर मानव एवं पशु स्वास्थय हेतु कृषि में का उपयोग बढाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय जिंक एसोसिएशन, संयुक्त राज्य अमेरिका के डॉ. एंड्रयू ग्रीन, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुलपति डॉक्टर नरेंद्र सिंह राठौड, हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड, उदयपुर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अरुण मिश्रा के मध्य समझोता पत्र पर हस्ताक्षर किए तथा इस अवसर पर अनुसंधान निदेशालय, उदयपुर पर एक प्रोजेक्ट कार्यशाला का आयोजन किया गया। 

समझौते के तहत अंतरराष्ट्रीय ज़िंक एसोसिएशन तथा हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड कृषि की ज़िंक के उपयोग पर अनुसंधान तथा नवीन तकनीकों के क्षेत्र में प्रसार हेतु वित्तीय सहयोग तथा प्रदान करेंगे तथा महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय  ज़िंक के उपयोग पर अनुसंधान केंद्र तथा किसान खेतों पर तकनीकी प्रदर्शन करेंगे तथा किसानों को प्रशिक्षण देगी ।  इस हेतु वर्ष 2021 में समझौते के तहत एक परियोजना पर चर्चा करने हेतु कार्यशाला का आयोजन भी किया गया  ।

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर डॉ. नरेन्द्र सिंह राठौड़ ने कहा कि उत्पादकता व्यय गुणवता उत्पादन हेतु सभी प्रमुख व सुक्ष्म तत्वों का मृदा में पर्याप्त मात्रा में उपस्थित होना अत्यन्त आवश्यक हैं। राष्ट्रीय स्तर पर 40 प्रतिशत एवं प्रदेश में 50 प्रतिशत मृदा में जिंक की कमी पायी गयी है। जिंक का फसलों के साथ-साथ मानव पोषण में भी महत्वपूर्ण योगदान हैं। कोविड महामारी के दौरान रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए जिंक की गोलियां दी गई थी। 

विश्वविद्यालय में जिंक पर विभिन्न अनुसंधान आयोजित करवाने हेतु एक समझोता अंतर्राष्ट्रीय जिंक एसोसिएशन, अमेरिका एवं हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड, उदयपुर के साथ साइन किया जा रहा है जिससे जिंक के उपयोग  हेतु विभिन्न अनुसंधानों  को गति मिलेगी एवं इसके परिणामों से किसानों व वैज्ञानिक गणों को जिंक पर विस्तृत जानकारी उपलब्ध होगी। कुलपति ने सूक्ष्म तत्वों के सही समय, सही स्थान, सही मात्रा व सही विधि से उपयोग करने पर जोर दिया। जिससे कि हम संतुलित पोषण प्रदान कर राष्ट्रीय स्तर पर उत्पादन को सार्थक रूप से बढ़ा सकेंगे। कुलपति ने कहा कि विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों पर जिंक के प्रदर्शन व प्रशिक्षण आयोजित किए जाएंगे जिससे कि आम किसान जिंक के उपयोग के महत्व के बारे में संपूर्ण जानकारी एक केंद्र पर प्राप्त कर सकेंगे।

कार्यशाला के अंतर्राष्ट्रीय अतिथि डॉ. एंड्रयू ग्रीन, एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, अंतरराष्ट्रीय जिंक एसोसिएशन, अमेरिका ने बताया कि जिंक का विश्व स्तर पर खाद्य सुरक्षा तथा पोषण आपूर्ति सुरक्षा बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने अपने व्याख्यान में जिंक की कमी के विश्व परिदृश्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि पूरे विश्व में 2 बिलियन जनसंख्या जिंक की कमी से प्रभावित है जिससे कि डायरिया निमोनिया जैसी सामान्य बीमारियां अफ्रीकन व एशियाई देशों के बच्चों में देखी जाती हैं। उन्होंने कहा कि स्थाई उत्पादन हेतु सभी प्रकार के सूक्ष्म पोषक तत्वों की स्थाई आपूर्ति अत्यंत आवश्यक है। डॉ ग्रीन ने जिंक की कई फॉर्मूलेशंस एवं उनकी उपलब्धता की जानकारी दी।

कार्यशाला के विशिष्ट अतिथि डॉ. सौमित्रा दास, निदेशक साउथ एशियन जिंक एसोसिएशन ने जिंक के पादप पोषण में महत्व को समझाया साथ ही उन्होंने बताया कि राष्ट्र की लगभग 37 प्रतिशत मृदायें बहु सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से प्रभावित हैं । जिसमें तमिलनाडु में 63 प्रतिशत, मध्यप्रदेश में 57 प्रतिशत एवं राजस्थान की 56 प्रतिशत मृदाओं में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी पाई गई है। उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा कि जिंक कमी वाली मृदाओं के उत्पाद का उपयोग करने से मानव शरीर में भी जिंक की कमी उत्पन्न होती है। उन्होंने बताया कि प्रदेश के सवाईमाधोपुर जिले में एक अनुसंधान परियोजना में जिंक के उपयोग के अत्यंत सफल परिणाम प्राप्त हुए हैं इससे प्रेरणा लेकर सभी जिलों में जिंक के उपयोग पर जोर देना चाहिए।

कार्यशाला में अमृता सिंह, एग्जीक्यूटिव मार्केटिंग ऑफिसर, हिंदुस्तान जिंक  लिमिटेड, उदयपुर ने कहां की जिंक के उपयोग से मृदा की उर्वरक क्षमता में वृद्धि होती है अतः किसानों के खेतों पर जिंक के प्रदर्शन लगाकर इसके महत्व को प्रसारित करना चाहिए ।

डॉ. एस. के. शर्मा, निदेशक अनुसंधान ने अतिथियों का स्वागत किया एवं कार्यशाला की उद्देश्य की चर्चा की। उन्होंने कहा कि राजस्थान की मृदा कैल्केरियस होने के कारण जिंक की कमी से ज्यादा प्रभावित होती है। डॉ शर्मा ने जिंक पर विभिन्न अनुसंधान के परिणामों को पैकेज आफ प्रैक्टिसेज में समावेश करने की बात कही।

डॉ. आर. ए. कौशिक, निदेशक, प्रसार शिक्षा, ने खाद्य श्रृंखला में जिंक के महत्व को बताया। उन्होंने कुक्कुट पालन, कृषि, पशुपालन सभी में जिंक के महत्व की बात कही एवं उद्यानिकी फसलों में भी जिंक के उपयोग पर जोर देने को कहा। उन्होंने कहा कि कृषि विज्ञान केंद्र जिंक प्रदर्शन के एक सफल केंद्र के रूप में सिद्ध हो सकते हैं एवं मासिक पत्रिका में भी जिंक पर लेख प्रकाशित करने को कहा।

कार्यशाला में 60 वैज्ञानिकों एवं विद्यार्थियों ने भाग लिया। डॉ.  देवेन्द्र जैन, सहायक आचार्य ने परियोजना की रूपरेखा पर व्याख्यान दिया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. रोशन चैाधरी, सहायक आचार्या एवं अतिथियों का आभार डॉ. गजानन्द जाट द्वारा किया गया ।