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उदयपुर के कलाकारों ने बांग्ला कहानी 'खुदा हाफिज' का किया मंचन                                     

नाट्यांश द्वारा आयोजित रविवारिय नाट्य संध्या में नाटक का मंचन            

 
नाटक के माध्यम से बताया गया कि किस प्रकार से मुश्किल परिस्थितियों में जाति-धर्म के भेदभाव को भूल कर एक इन्सान, दूसरे इंसान की मदद करता है

नाट्यांश नाटकीय एवं प्रदर्शनीय कला संस्थान, उदयपुर के कलाकारों ने रविवार की शाम को समरेश बसु द्वारा लिखित बांग्ला कहानी “खुदा हाफिज़” का मंचन किया। कॉवि़ड के बढते संक्रमण के चलते मात्र 20 दर्शकों के सामने ही हुई प्रस्तुती। कहानी के मंचन से पहले महेश कुमार जोशी ने धर्मवीर भारती द्वारा लिखित नाटक - अंधा युग के अश्वथामा का एक मॉनोलोग प्रस्तुत किया। यह मॉनोलोग 18 दिवस की लडाई के बाद मध्य रात्री में अश्वथामा की मनःस्थिती को दर्शाता है। अभिनय के दृष्टिकोण से इस तरह की एकल प्रस्तुतियाँ काफी महत्वपुर्ण होती है।

इसके बाद बांग्ला लेखक समरेश बसु की लिखी कहानी ‘आदाब’ जिसका हिन्दी अनुवाद गुलजार साहब द्वारा ‘‘खुदा हाफिज़’’ के नाम से किया गया, का मंचन किया गया। इस कहानी में दंगे के बाद के दृश्य को दिखाया है। जब दंगे को नियन्त्रित करने के लिये सरकार कर्फ्यु लगा देती है और ऐसे दंगें और कर्फ्यु में आम जन फंस जाते है। ऐसे ही आम व्यक्तियों की कहानी है खुदाहाफ़िज़। कहानी में धीरज जिंगर और दाऊद अंसारी ने अपने दमदार अभिनय के जरिये दंगों के समय होने वाली परिस्थितियों को उजागर किया।

नाटक के माध्यम बताया गया कि किस प्रकार से मुश्किल परिस्थितियों मे जाति-धर्म के भेदभाव को भूल कर एक इन्सान, दूसरे इंसान की मदद करता है। इस कहानी के माध्यम से सामाजिक सोहार्द्र की भावनाओं को प्रस्तुत किया है। कहानी का निर्देशन व मंच संचालन मोहम्मद रिज़वान मन्सुरी ने किया। संगीत सयोंजन रागव गुर्जरगौड़ और प्रकाश संचालन अगस्त्य हार्दिक नागदा का रहा। इस नाट्य संध्या को सफल बनाने मे अशफाक़ नूर खान, अमित श्रीमाली, फिज़ा बत्रा, चक्षु सिंह रूपावत, पियुष गुरूनानी, सरिता पाण्डेय, रमन कुमार, यश शाकद्विपिय, महावीर शर्मा एवं मयुर शर्मा का महत्वपूर्ण योगदान रहा।