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आदिवासी जनजातियों के पहनावें की आकर्षकता प्रदान कर रही रोजगार के नवीन अवसर और जनजातियों को पहचान

राजस्थान के साहित्य समारोह में आडावल के परिधानों का शुभांरभ

 
कलाकारों ने अपने मन के भावों को प्रकृति बेल-बूटे, पत्तियों, पशु-पक्षी, हाथी-घोड़े को रंग के अनुसार पोशाक, पर्दा, चुनरी, दुपट्टा, साफा, गमछा आदि पर उकेरा है। 

राजस्थान की संस्कृति दुनिया भर में मशहूर है।  आज भी राजस्थान की संस्कृति का नाम लिया जाता है तो ख्याल में रेगिस्तान, ऊंट की सवारी, घूमर और कालबेलिया नृत्य और रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधान नजर आते है। चाहे स्वदेशी हो या विदेशी यहां की संस्कृति किसी के भी दिल को आसानी से छू जाती है। और बात करे यहां के पहनावे की तो सबसे दिलचस्प बात यह है कि यहां का पहनावा बेहद ही अनोखा होता है। 

राजस्थान की खासियत ही है कि यहां कई तरह के लोग रहते है। क्योंकि यहां अनेक जातिया निवास करती है। उदयपुर में राजस्थान के साहित्य समारोह में आडावल के परिधानों का शुभांरभ किया गया। 

इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के लिए उदयपुर होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष  भगवान वैष्णव मौजूद रहे। भगवान वैष्णव ने बताया कि खादी ने देश को गुलामी की जंजीरो से बाहर निकाला। वही लघु कुटीर उद्दोग की धंधो की मजबूती से ही वैश्विक मंदी,महामारी के दौर में भारतीय उद्दयम मजबूत करते हुए हथकरघा कलाकारों के जीवन में दिवाली आ सकेगी। और इसी से हमारी अर्थव्यवस्था स्वदेशी के रास्ते मजबूत होगी। 

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि हस्तकला एवं शिल्प के क्षैत्रीय प्रभारी रजत वर्मा  ने कहा कि प्रदेश के रंगाई छपाई उद्योग को जीवित रहने से ही रंगरेज छींपा व अन्य श्रमिक जातियों ने अपनी पहचान बचाए रखी है। कलाकारों ने अपने मन के भावों को प्रकृति बेल-बूटे, पत्तियों, पशु-पक्षी, हाथी-घोड़े को रंग के अनुसार पोशाक, पर्दा, चुनरी, दुपट्टा, साफा, गमछा आदि पर उकेरा है। 

विशिष्ट अतिथि प्रदीप त्रिपाठी ने कोटा डोरीया कला की विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि राजस्थान में बच्चों के जन्म पर जच्चा को अलग-अलग रंग का पोमचा पहनाया जाता है पुत्र के जन्म पर पीला और पुत्री के जन्म पर गुलाबी एवं इसी तरह हाड़ौती के काले रंग का चीडर का पोमचा अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। 

कार्यशाला निदेशक डॉ शिवदान सिंह जोलावास ने बताया कि इस दौरान प्रतिभागियों को बाड़मेर की अजरक प्रिंट, प्रदेश की पहचान दाबू, बगरू की गेहूं बंधनी, बालोतरा तबक छपाई मलीर आदि का बारीक परिचय कराया जाएगा। उन्होंने जनजातियों के पहनावें को आकर्षकता प्रदान कर रोजगार के नवीन अवसर गाबा कार्यशाला की शुरुआत बताई जिसमें गुजरात, पंजाब, झारखंड देश के कई हिस्सों से युवा प्रतिभा डिजाइनर उत्साह से जुड़ रहे हैं। उन्हें राजस्थान की ब्लॉक प्रिंट, गोंद  गारा से रंग निकालने की कला, अनार, लोहा, नील से प्राकृतिक रंगों की छपाई का प्रशिक्षण दिया जाएगा और इन्हें रोजगार उन्मुख कला की पहचान कराई जाएगी। 

वहीं आयोजक अमि संस्था सहसचिव संध्या स्रंगदेवोत ने बताया कि प्रदर्शनी में कशीदा, सतदानी, मुकेश, दुरमुचो, बांकड़ी, जरदोजी, जरी, लहरिया, मोठड़ा, चुनरी आदि के कामों को प्रदर्शित किया जाएगा। सुविवि फैशन डिजाइनींग विभाग के बच्चे उत्साह से इसमें भागीदारी कर रहे हैं, कोरियोग्राफर प्रतीभा वैष्णव ने प्रशिक्षण दिया। 

इस माध्यम से राजस्थान के देवासी रेबारी गरासिया, बंजारा, कालबेलिया, गाडोलिया गुर्जर क्षत्रिय आदि जातियों की परंपरागत पोशाकों को खादी के साथ एक नए रूप में प्रस्तुत किया जाएगा। आडावल के दौरान महोत्सव में डॉक्टर सतीश शर्मा, पर्यावरणविद,  महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय, कुलपति प्रोफेसर एन एस राठौड़, पूर्व सचिव आईएएस अदिति मेहता, दूरदर्शन निदेशक नंद भारद्वाज आदि ने विभिन्न सत्रों में अपनी उपस्थिति से इस कार्यक्रम को ऊंचाइयों प्रदान करने का प्रयास किया है। 

कार्यक्रम के लिए मुंबई से अभिनेत्री इला अरुण, मिस्टर इंडिया रजनीश दुग्गल, अभिनेत्री एवं राजनीतिज्ञ बीना काक,  सुपातर बीनणी फेम शिरीष कुमार तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ गिरिजा व्यास के संदेश एवं जानकारियां प्राप्त हुई है जिन्हें छात्रों में प्रसारित किया जाएगा।