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बड़ा रामद्वारा, उदयपुर में संत ध्यानदासजी महाराज का 200 वां निर्वाण पर्व 

शोभा यात्रा जगदीश मंदिर चौक से आरम्भ होकर श्री रामद्वारा, चांदपोल समाप्त हुई

 

उदयपुर शहर में चांदपोल स्थित रामद्वारा में संत श्री ध्यानदासजी महाराज का 200 वां निर्वाण पर्व कल दिनांक 15 अप्रैल 2022 से आरम्भ हुआ और रविवार दोपहर भोजन परसादी के साथ समापन होगा। इस कार्यक्रम में विशेष अतिथी के तौर पर पूर्व राज परिवार के लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने शिरकत की।   

इस अवसर पर रामद्वारा स्थित विराजमान बड़े साध श्री नरपतरामजी के सानिध्य में यह पर्व आयोजित किया जा रहा है। इसमें वर्तमान रामस्नेही सम्प्रदाय, शाहपुरा (भीलवाड़ा) के प्रधान पीठाधीश्वर श्री श्री राम दयालजी महाराज का पदार्पण यहाँ हुआ है। कार्यक्रम का श्री गणेश कल प्रातः 9 बजे श्री जगदीश मंदिर चौक से भव्य शोभायात्रा से हुआ। शोभा यात्रा जगदीश मंदिर चौक से आरम्भ होकर श्री रामद्वारा, चांदपोल समाप्त हुई। इसमें बड़ी संख्या में महिलाओं ने कलश लेकर व भक्तजनो के गाजे बाजे के साथ शिरकत की। 

रामस्नेही सम्प्रदाय की स्थापना आज से 260 वर्ष पूर्व शाहपुरा (भीलवाड़ा) में आदि गुरु श्री राम चरणजी महाराज द्वारा की गई। उदयपुर चांदपोल स्थित यह ऐतिहासिक रामद्वारा शाहपुरा पीठ के बड़े रामद्वारों की गिनती में आता है। यहाँ पर विध्यमान संत बड़े साध के रूप में जाने जाते है। रामद्वारा की स्थापना महाराणा अरी सिंह -II के काल में हुई और इसका विकास महाराणा हमीर सिंह- II तथा  महाराणा भीम सिंह के समय हुआ। रामद्वारा में श्री अनुभव वाणी व अन्य रामस्नेही ग्रन्थ की  हस्तलिखित पांडुलिपियां व पुरानी माला, कंठिया व कम्बल जी के दर्शन होते है।

रामस्नेही सम्प्रदाय निर्गुण उपासक है एवं इनकी निर्गुण उपासना पध्दति के कारण इन्हे रामानंदी, कबीर व रविदास के करीब माना जाता है। सम्प्रदाय का प्रमुख ग्रन्थ श्री अनुभव वाणी है, जिसमे 28400 पद या श्लोक है।  निर्गुण भक्ति साहित्य में इतना बड़ा विशद संग्रह अन्यंत्र नहीं है। 

रामस्नेही सम्प्रदाय मध्यम मार्ग पर चलने की अनुशंसा करता है एवं गुरु और गोविन्द को समान स्थान पर रखता है। ईश्वर या परमात्मा को निरंजन ब्रह्म, अचल,अखंड, अभंग, अरूप, रूप न रेख सा निराकार व घट घट व्यापी है। मनुष्य मात्र अवगुण का पुतला है एवं संसार-चक्र (जीवन व मरण) से निर्वाण प्राप्ति हेतु काम, क्रोध , माया, लोभ व अन्य दुराचार से दूर रहकर गृहस्थ जीवन का पालन करते हुआ असंग्रह की नीति के साथ जीव मात्र के साथ सह अस्तितत्व की कामना करता है।  

राम रसायन अजब सार का सार रे I 
पिया प्रेम उपाय गया जग पार रे II
नित्य निरंजन राम मिल्या जाइ दास है I
परिहाँ राम चरण निज ज्ञान भयो प्रकाश है II