गुण-गुणी के समक्ष विनम्र होना चाहिये – आचार्य कनकनन्दी जी
विनय मोक्ष का द्वार है, विनय ही यथार्थ में विद्यावान बनाता है आदि सूत्रों के द्वारा आदिनाथ भवन सेक्टर 11 में आचार्य कनकनन्दी गुरूदेव ने प्रात:कालीन धर्मसभा में दश लक्षण धर्मों की श्रृंखला में उपस्थित श्रावकों को विनय गुणों का वास्तविक स्वरूप बताया।
विनय मोक्ष का द्वार है, विनय ही यथार्थ में विद्यावान बनाता है आदि सूत्रों के द्वारा आदिनाथ भवन सेक्टर 11 में आचार्य कनकनन्दी गुरूदेव ने प्रात:कालीन धर्मसभा में दश लक्षण धर्मों की श्रृंखला में उपस्थित श्रावकों को विनय गुणों का वास्तविक स्वरूप बताया।
आचार्यश्री ने कहा कि हमारे शरीर का देव शास्त्र, गुरू, गुण, गुणी के समक्ष झुकना ही विधेय है। काम अथवा आर्थिक स्वार्थ या सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने हेतु जो लोक विनय अथवा स्वार्थ विनय किया जाता है वह यथार्थ से विनय गुण न होकर दीनता- हीनता, स्वार्थपरता, कायरता या चापलूसी आदि दुर्गुणों से युक्त होने से आध्यात्मिक दृष्टि से दासत्व की वृत्ति का परिचारक है।
उपरोक्त दुर्गुणों के कारण ही भारतीय जन हजारों वर्ष मुगल, अंग्रेज, रजवाड़े व जमींदारों के गुलाम बन कर रहे।
आचार्यश्री ने कहा कि स्वार्थ, लोभ, मोह, काम के कारण हम स्वाभिमान भूल कर आपस में लड़े। इस सन्दर्भ में गुरूदेव ने भारत के महान स्वाभिमानी महापुरूषों के उदाहरण प्रस्तुत किये। जिनमें महाराणा प्रताप, सुभाषचन्द्र बोस, चामुण्डराय आदि का गौरव करते हुए उनसे प्रेरणा प्राप्त करने के लिए सभी को प्रेरित किया।
आचार्यश्री ने इस विषय का समापन कुछ इस तरह से किया-
जननी जने तो ऐसी जने, कै दानी कै शूर। नहीं तो बांझ रहे, काहे गमावे नूर।।