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महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के मॉड्यूल की विदेशों में हो रही प्रशंसा

समिधा संस्थान के स्वयं सहायता समूह बने आदर्श

 

उदयपुर। सामाजिक सरोकारों हेतु कार्यरत समिधा संस्थान ने गांव गांव में महिलाओं के "स्वयं सहायता समूह" गठित करने का कार्य विगत 3 वर्ष पूर्व प्रारंभ किया जिसके तहत गांवो में स्वयं सहायता समूह गठित कर महिलाओं को स्वावलंबी बनाने की दिशा में समिधा संस्थान की "वूमेंस वॉलिंटियर्स" लगातार काम कर रही है । 

इन समूह के निर्माण से प्रत्येक गांव में महिलाएं संगठित हो रही है तथा गृह कार्य और खेती के अलावा जब समय मिलता है अपनी आय बढ़ाने हेतु अन्य काम भी कर रही है। महिलाएं जो पूर्व में अपना कीमती समय इधर-उधर की बातों में गवा देती थी वह अब समूह के साथ जुड़कर अपने और अपने परिवार की आय बढ़ाने हेतु प्रयास करना प्रारंभ हो गई है , इससे गांवो में एक अच्छा वातावरण बना है। 

विदेशो में भी महिलाओं के स्वयं सहायता समूह के इस मॉड्यूल की प्रशंसा हो रही हैं तथा विदेशी युवक युवतियां मावली क्षेत्र के गांवो में समिधा संस्थान की "वूमेंस वॉलिंटियर्स" के साथ स्वयं सेवक के रूप में कार्य कर इसे अपने देश में लागू करने के अनुभव ले रहे है ।

इस संबंध में जानकारी देते हुए वॉलिंटियर प्रभारी श्रीमती चांदी गाडरी ने बताया कि प्रत्येक गांव में 10 से 20 होमोजीनस (एक जैसी प्रकृति, आय वर्ग, आर्थिक स्तर, एक ही प्रकार का परिवार का व्यवसाय) महिलाओं का समूह बनाया जा रहा है जिसके अंतर्गत एक ही जैसे व्यवसाय और एक ही जैसे आर्थिक स्तर की महिलाओं के पृथक पृथक ग्रुप बनाया जा रहे हैं, प्रत्येक माह के एक निर्धारित दिवस पर इन महिलाओं की बैठक आयोजित होती है जिसमें संपूर्ण वृतांत और उस महिला की आवश्यकता रजिस्टर में इंद्राज की जाती है । 

यह महिलाएं अपनी एक फिक्स बचत (सामान्यत 500 रु प्रतिमाह) को स्वयं सहायता समूह के बैंक के खाते में जमा कर देती है। उल्लेखनीय है की प्रत्येक समूह का खाता पास की बैंक शाखा में खोल दिया गया है, जिसके माध्यम से संपूर्ण लेनदेन किया जाता है, यही पैसा जब 6 माह तक समूह चलता रहता हैं तो समूह के नाम पर एक बहुत बड़ी रकम बैंक में जमा हो जाती है। जमा रकम के सापेक्ष में सभी बैंक जमा राशि से 6 गुना तक कम ब्याज मात्र 4 प्रतिशत पर ऋण भी इन महिलाओं को उपलब्ध करा देती है। 

इस प्रकार इन माताओं बहनों के पास अपना व्यवसाय जैसे गाय, बकरी, अन्य पशुपालन, कुम्हारी कार्य, स्वेटर बुनाई, जिल्द चढ़ाना, मसाला निर्माण , पापड़ बड़ी निर्माण, पातल दोना बनाना, सिलाई कार्य, अगरबत्ती की पैकिंग करना, मोमबत्ती की पैकिंग करने हेतु कार्यशील पूंजी सदैव आसानी से मिल जाती है और महिला अपना व्यापार अथवा उद्योग प्रारंभ कर सकती है।

समिधा संस्थान के महिला वॉलिंटियर्स श्रीमती डा. आभा शर्मा, श्रीमती सुनीता राठौड़, श्रीमती राजलक्ष्मी राजावत, श्रीमती आरूषि व्यास और श्रीमती घनश्याम कुंवर निरन्तर विभिन्न गांवों में अवकाश के दिन स्वयं सहायता समूहों की मासिक बैठकों में एकत्रित महिलाओं से संपर्क कर इनको महिलाओं द्वारा किए जाने वाले विभिन्न कुटीर उद्योगों की जानकारी भी उपलब्ध करा रही है तथा शहर क्षेत्र की बड़ी प्रतिष्ठानों में संपर्क कर इन महिलाओं के उत्पाद को बेचने के प्रयास में भी संलग्न है । 

प्रत्येक समूह का संचालन एक अध्यक्ष एक सचिव और एक कोषाध्यक्ष अपने संयुक्त हस्ताक्षर से करते हैं जिससे कि आर्थिक गड़बड़ी होने की संभावना शून्य हो जाती है। समिधा संस्थान का मानना है की स्वयं सहायता समूह के माध्यम से ही गांवो की प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हो सकती हैं, इसके माध्यम से ही फालतू समय को भी उपयोगी और लाभप्रद बनाया जा सकता है।