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स्टेम सेल थेरेपी ने लौटाई हिबा के जीवन में खुशियां

स्टेम सेल थेरेपी ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी, ग्लोबल डेवलपमेंटल डिले और अन्य न्यूरोलॉजिकल विकारों के उपचार में नए क्रांतिकारी विकल्प के रूप में उभर र

 

स्टेम सेल थेरेपी ऑटिज्मसेरेब्रल पाल्सीग्लोबल डेवलपमेंटल डिले और अन्य न्यूरोलॉजिकल विकारों के उपचार में नए क्रांतिकारी विकल्प के रूप में उभर रही है। इसमें स्टेम सेल को विशेषज्ञ चिकित्सकों की देखरेख में शरीर के उस हिस्से में इंजेक्ट किया जाता है जो रोगग्रस्त हैं। इसके बाद स्टेम सेल उस अंग की खुद-ब-खुद मरम्मत शुरू कर देती है और व्यक्ति स्वस्थ्य हो जाता है। इस नए जीवनदायी चिकित्सा विज्ञान से कई असाध्य रोगों का सटीक उपचार हो रहा है। यह विचार गुरुवार को होटल राजदर्शन में आयोजित प्रेसवार्ता में देश के जाने-माने स्टेम सेल थेरेपी केंद्र न्यूरोजेन ब्रेन एंड स्पाइन इंस्टीट्ययूट की उपनिदेशक व चिकित्सा सेवाओं की प्रमुख डॉ. नंदिनी गोकुलचंद्रन ने व्यक्त किए।

उन्होंने बताया कि न्यूरोजेन की ओर से असाध्य न्यूरोलॉजिकल विकारों से जूझ रहे राजस्थान के मरीजों के लिए उदयपुर में 13 मई 2018 को निःशुल्क स्टेम सेल थेरेपी’ शिविर का आयोजन किया जाएगा। निःशुल्क कार्यशाला भी होगी। इस निःशुल्क शिविर’ का मकसद स्पाइनल कॉर्ड इंजुरीमस्क्युलर डिस्ट्राॅफीऑटिज्मसेरेब्रल पाल्सी इत्यादि विकारों से पीडित मरीजों को स्थानीय स्तर पर निःशुल्क परामर्श प्रदान करना है। कई बार सिर्फ परामर्श के उद्देश्य से मरीजों को मुंबई तक की यात्रा करना काफी तकलीफदेह हो जाता हैइसलिए मरीजों की सुविधा के लिए शिविर का आयोजन किया जा रहा है। असाध्य न्यूरोलॉजिकल विकारों से पीडित मरीज इस निःशुल्क शिविर में परामर्श के लिए समय लेने के लिए मोना (मो. 09920200400) या पुष्कला (मो.- 09821529653) से संफ कर सकते हैं।

रोशन हुई हिबा की जिन्दगी 

डॉ. नंदिनी ने बताया कि ग्लोबल डेवलपमेंट डिले से प्रभावित बच्चों के लिए न्यूरोजेन ब्रेन एंड स्पाइन इंस्टीट्ययूट स्टेम सेल थेरेपी उपचार की नई उम्मीद है। पैदा होने वाले हर एक हजार बच्चों में से एक से तीन बच्चे ग्लोबल डेवलपमेंट डिले से प्रभावित हो सकते हैं। स्टेम सेल थरेपी के बाद उदयपुर की पांच वर्षीय हिबा खान अपने परिवार के सदस्यों को पहचान पाने में सक्षम हैं। हिबा माइक्रोसैली के साथ ही ग्लोबल डेवलपमेंट डिसऑर्डर से पीडित थीं। जन्म के ठीक बाद वह रोई नहींउसकी सभी प्रेरक पेशियों के विकास में विलंब हुआ। लगभग वर्ष की उम्र में उसे बच्चों के विशेषज्ञ के पास ले जा गया व  बार-बार बीमार होने के कारण उसके एमआरआई परीक्षण की सलाह दी गई। जांच में दिमागी विकृति के संकेत सामने आए। हिबा के अभिभावकों ने और दो-तीन डॉक्टरों से संफ कियालेकिन बात नहीं बनी। डेढ साल की उम्र में हिबा को बार-बार दौरे पडने लगे। लगभग पांच मिनट के पहले दौरे में उसकी मुट्ठियां भिंच जातीमुंह से झाग निकल आतेवह निढाल हो जातीहोंठ नीले हो जाते। इसके बाद वह लगभग घंटे तक बेहोशी की हालत में रहती। कुछ मिर्गी-रोधी दवाओं के साथ फिजियोथेरेपी शुरू की गई।

हिबा के अभिभावकों को जब यह पता चला कि स्टेम सेल थेरेपी के जरिए बच्ची का इलाज संभव हैतो उन्होंने तुरंत न्यूरोजेन के डॉक्टरों से संफ किया। टेलीफोन और ई-मेल के जरिए रिपोर्ट भेजी। न्यूरोजेन के विशेषज्ञों से उन्हें सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली कि न्यूरो पुनर्वास और स्टेम सेल थेरेपी के जरिए उनकी बच्ची का इलाज हो सकता है। वे फौरन उपचार के लिए नवंबर 2017 में हिबा को न्यूरोजेन लाया गया। परीक्षण में पता चला कि ध्यान देने की क्षमता कमजोर थीएकाग्रता को बनाए रख पाने में सक्षम नहीं थी। वह निर्देशों का पालन नहीं करती थी। तर्ककल्पना शक्तिस्मृतिसमझ के मामले में उसका प्रदर्शन उसकी उम्र के अनुरूप नहीं था। खतरे और आसपास की परिस्थिति को लेकर निर्णायक क्षमता नहीं के बराबर थी। कार्यों और संकेतों का अनुसरण नहीं कर पातीबातचीत नहीं कर पाती थी। संचार कौशल कमजोर था। मौखिक और अमौखिक संकेतों को नहीं समझ पातीभोजन करनेवस्त्र धारण करने आदि जैसे दैनिक क्रियाकलापों के लिए वह दूसरों पर निर्भर थी। शौचालय संबंधी गतिविधियों के लिए वह प्रशिक्षित नहीं थी।

न्यूरोजेन ब्रेन एंड स्पाइन इंस्टीट्ययूट में हिबा का स्टेम सेल थेरेपी उपचार शुरू हुआ। उसे ऐसी एक्सरसाइज बताई गई जिससे समझ में सुधार लाने और व्यवहारसंवेदी व पे*रक पेशियों के संचालन (मोटर- संबंधी) की दक्षता में मदद मिली। अपने-अपने क्षेत्र के सबसे अनुभवी पेशेवरों के मार्गदर्शन में उसे व्यावसायिक चिकित्साफिजियोथेरेपीस्पीच थेरेपी और मनोवैज्ञानिक परामर्श दिया गया। उसके घर जाने के बाद भी न्यूरोजेन में बताए गए व्यावसायिक चिकित्सा और पुनर्वास को जारी रखा गया।

इस थेरेपी के बाद हिबा वस्तुओं और अपने परिवार के सदस्यों को पहचाने लगी। उसका व्यवहार सौम्य हो गयाऊपरी और निचले अंगों की मुद्रा और समग्र शक्ति में सुधार हुआ है। चाल बेहतर हुईलेटनेबैठने और खडे  रहने की सहनशीलता में सुधार हुआ। चबानेनिगलनेनेत्र-संफखतरे के प्रति जागरूकता में सुधार हुआ है। दैनिक गतिविधियों के मामले में सुधार आया। संकेतों के माध्यम से मूत्राशय और आंत्र आंदोलनों को इंगित करती है। निर्देशों के प्रति उत्तरदायित्व में सुधार हुआ है। हिबा की नानी शकीला खान ने बताया कि इस उपचार ने हिबा की जिंदगी को फिर से नई रोशनी से भर दिया है। हम सबको कम उम्र में इस तरह की कठिनाइयों का सामना करने वाले बच्चों के प्रति समान रूप से स्वीकृति और प्रेम का इजहार करना चाहिए।

60 से अधिक देशों के 6000 मरीजों का सफलतापूर्वक उपचार

डॉ. नंदिनी ने बताया कि मुंबई के बाहरी छोर पर स्थित भारत का अग्रणी स्टेम सेल थेरेपी केंद्र न्यूरोजेन ब्रेन एंड स्पाइन इंस्टीट्ययूट न्यूरोलॉजिकल विकारों से पीडित बच्चों के लिए व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करता है। न्यूरोजेन बीएसआई की स्थापना सुरक्षित और प्रभावी तरीके से स्टेम सेल थेरेपी के जरिए असाध्य न्यूरोलॉजिकल विकारों से पीडित मरीजों की मदद के लिएउनके लक्षण और शारीरिक विकलांगता से राहत प्रदान करने के लिए की गई है।  न्यूरोजेन ब्रेन एंड स्पाइन इंस्टीट्ययूट न्यूरोलॉजिकल विकार मसलनऑटिज्मसेरेब्रल पाल्सीमानसिक मंदताब्रेन स्ट्रोकमस्क्युलर डिस्ट्राॅफीस्पाइनल कॉर्ड इंजुरीसिर में चोटसेरेबेलर एटाक्सियाडिमेंशियामोटर न्यूरॉन रोगमल्टीपल स्केलेरॉसिस और न्यूरोसाइकिएट्रिक विकार के लिए स्टेम सेल थेरेपी और समग्र पुनर्वास प्रदान करता है। अब तक इस संस्थान ने 60 से अधिक देशों के 6000 मरीजों का सफलतापूर्वक उपचार किया है। एलटीएमजी अस्पताल और एलटीएम मेडिकल कॉलेजसायनमुंबई के प्रोफेसर एवं न्यूरोसर्जरी के प्रमुख और न्यूरोजेन ब्रेन एंड स्पाइन इंस्टीट्ययूट के निदेशक डॉ. आलोक शर्मा बताते हैं कि चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति के विकास पर एक नजर डालने से पता चलता है कि मुश्किल लाइलाज बीमारियों का समाधान अक्सर मल्टी-डिसिप्लीनरी अपोच से मिलता है। यह तभी होता है जब लाइलाज या उपचार के लिहाज से मुश्किल विकारों के मामलों में अलग-अलग विशेषताओं के लोग अपने ज्ञानकौशल और संसाधनों का संयुक्त रूप से प्रयोग करते हैं। 

क्या है ग्लोबल डिले डेवलपमेंट ः

ग्लोबल डिले डेवलपमेंट (जीडीडी) प्रेरक पेशियों की कार्यक्षमतामानसिक कार्यक्षमता और भाव-भंगिमा की असामान्यता से संबंधित विकार हैयह समस्या बिल्कुल शुरुआती उम्र मेंयहां तक कि जन्म से पहले भी चपेट में ले सकती है। प्रेरक पेशियों (मोटर सिस्टम) में यह असामान्यता मस्तिष्क को पहुंची अप्रगतिशील क्षित का नतीजा होती है। शरीर की प्रेरक पेशियां (मोटर सिस्टम) गतिविधियों को संचालित करने और नियंत्रित करने की क्षमता प्रदान करती है। इन प्रणालियों में असामान्यता का अर्थ है कि यह बच्चों की दैनिक गतिविधियों को पूरा कर पाने की क्षमता को प्रभावित करती है और उनकी चलने-फिरने की क्षमता को प्रभावित करती है।

इसके संकेत और लक्षण आमतौर पर जीवन के पहले वर्ष में दिखाई पड जाते हैं। जीडीडी के प्रमुख संकेत और लक्षण प्रेरक पेशियों की समस्याओं (मोटर डिफिकल्टीज) से संबंधित होते हैंजो मस्तिष्क को पहुंची क्षति का परिणाम होता है। मस्तिष्क को पहुंची क्षति की व्यापकता और गंभीरता पे*रक पेशियों को पहुंचनेवाले नुकसान का अग्रणी कारक है। बच्चों में देखे गए कई लक्षण प्राथमिक समस्याओं से संबंधित होते हैंजो प्रेरक पेशियों की कार्यक्षमता (मोटर फंक्शंस) को प्रभावित करते हैं। ऐसे बच्चों में नजर आनेवाले कुछ प्रमुख लक्षणों में प्रेरक पेशियों के विकास में विलंबगेट डिसऑर्डर (चाल संबंधी विकार)पे*रक पेशियों के सहज और सकल समन्वय में क्षीणतानिगलने में कठिनाईसंवाद क्षमता के विकास में देरी आदि सभी बुनियादी पे*रक पेशियों के विकार (मोटर विकार) का परिणाम होते हैं।   हालांकि समय से पहले पैदा हुए और कम वजन वाले शिशुओं में यह समस्या ज्यादा देखने को मिलती है।जीडीडी के अधिकांश कारणों का विशिष्टशर्तिया उपचार उपलब्ध नहीं है।

डॉ. नंदिनी गोकुलचंद्रन ने बताया कि जीडीडी वाले बच्चों में ऐसी कई चिकित्सा समस्याएं नजर आती हैंजिनका इलाज किया जा सकता है या जिनकी रोकथाम की जा सकती है। उपचार के शुरुआती चरण में एक अंतर्विषयक (विविध मामलों के विशेषज्ञ) टीम शामिल जिसमें बालरोग विशेषज्ञखासकर न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर मामलों में दक्ष बालरोग विशेषज्ञएक न्यूरोलॉजिस्ट (या अन्य न्यूरोलॉजिकल पैक्टिशनर)एक मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सकएक ऑर्थोपेडिक सर्जनएक फिजिकल थेरेपिस्ट (भौतिक चिकित्सक)एक स्पीच थेरेपेस्टि और एक व्यावसायिक चिकित्सक (ऑक्युपेशनल थेरेपिस्ट) उपचार करते हैं। हालांकि उपचार के ये विकल्प मरीजों की जीवन गुणवत्ता में सुधार लाने में मदद करते हैंलेकिन समस्या को मूल रूप में हल नहीं करते हैं। आधुनिक चिकित्सा और अनुसंधान ने जीडीडी में देखे गए विनाशकारी प्रभावों को रोकने के लिए स्टेम सेल को सर्वोत्तम बताया है।