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एडवांस लेप्रोस्कोपिक पद्धति से उल्टियाँ ना रुकने की स्थिति में 18 वर्षीय रोगी का हुआ सफल ऑपरेशन

 
सुपीरियर मेसेन्टेरिक आर्टरी सिंड्रोम एक दुर्लभ विकार है जिसमें छोटी आंत में मुख्य नस जो कि खून की आपूर्ति करती है वह अपना दबाव डालती है जिससे कि खाना आगे नही जा पता और रोगी को उल्टी हो जाती है। इसका एक मात्र इलाज ऑपरेशन ही है। 

गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, उदयपुर में कोरोना महामारी के समय भी सुरक्षित चिकित्सकीय नियमों का पालन करते हुए निरंतर आवश्यक इलाज किये जा रहे हैं। गीतांजली हॉस्पिटल के गैस्ट्रो सर्जरी विभाग से सर्जन डॉ. कमल किशोर बिश्नोई, गैस्ट्रोलोजिस्ट डॉ. पंकज गुप्ता, व डॉ. धवल व्यास, डॉ. नितीश, एनेस्थेसिस्ट डॉ. करुणा शर्मा, डॉ. भगवंत, आई.सी.यू इंचार्ज डॉ. संजय पालीवाल, वार्ड इंचार्ज तरुण व्यास, ओ.टी. इंचार्ज हेमंत गर्ग व के अथक प्रयासों से भीलवाड़ा निवासी 18 वर्षीय रोगी को सुपीरियर मेसेन्टेरिक आर्टरी सिंड्रोम (एस.एम.ए सिंड्रोम) से मुक्ति प्रदान कर उसे नया जीवन प्रदान किया गया। 

क्या है सुपीरियर मेसेन्टेरिक आर्टरी सिंड्रोम (एस.एम.ए)?

सुपीरियर मेसेन्टेरिक आर्टरी सिंड्रोम एक दुर्लभ विकार है जिसमें छोटी आंत में मुख्य नस जोकि खून की आपूर्ति करती है वह अपना दबाव डालती है जिससे कि खाना आगे नही जा पता और रोगी को उल्टी हो जाती है। इसका एक मात्र इलाज ऑपरेशन ही है। 

क्या था मसला?

भीलवाड़ा निवासी रोगी के पिता ने बताया कि उनकी बेटी को लगभग दस दिन से कुछ भी खाती तो उल्टी हो रही थी, पानी तक हज़म नही हो रहा था ऐसे में इलाज करने  भीलवाड़ा के निजी अस्पताल में गये वहाँ एक्स-रे के पश्चात् सभी सुविधाओं से लेस गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, उदयपुर जाने की सलाह दी गयी।  

डॉ. कमल ने बताया रोगी जब गीतांजली हॉस्पिटल में काफी बुरी हालत में भर्ती किया गया। सबसे पहले रोगी की सही स्थिति की जाँच के लिए सी.टी. स्कैन व एंडोस्कोपी की गयी। रोगी बहुत कमज़ोर थी, उसे लगातार उल्टियाँ हो रही थी। रोगी का ऑपरेशन करना ही एक विकल्प था परन्तु उसके भी पहले ज़रूरी था रोगी की हालत में सुधार करना ताकि वह ऑपरेशन करने की स्थिति में आ सके चूँकि रोगी का हीमोग्लोबिन बहुत कम हो गया था ऐसे में रोगी को दो यूनिट खून चढ़ाया गया। रोगी की पूरी तरह से देखभाल की गयी जब रोगी की हालत में सुधार आया तब उसका डॉ. कमल व उनकी टीम द्वारा एडवांस लेप्रोस्कोपिक पद्धति से ऑपरेशन किया गया, जिसे डुओडेनोजेजुनल बाईपास कहते हैं। 

डॉ. कमल ने यह भी बताया कि “एडवांस लेप्रोस्कोपिक पद्धति से ऑपरेशन का सबसे बड़ा फायेदा है कि इससे रोगी दर्द कम होता है, पेट पर निशान नही पड़ते, दवाइयों की आवश्यकता कम पड़ती है, इन्फेक्शन का खतरा नही रहता, स्वास्थ्य लाभ जल्दी मिलता है जिससे कि रोगी को हॉस्पिटल से जल्दी छुट्टी मिल जाती है।” उक्त रोगी को सफलतापूर्वक लेप्रोस्कोपिक ऑपरेशन के बाद हॉस्पिटल द्वारा छुट्टी दी जा रही है, वह पूर्णतया स्वस्थ है और खाना खा रही है। 

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि गीतांजली मेडिसिटी पिछले 13 वर्षों से सतत् रूप से मल्टी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के रूप में परिपक्व होकर चतुर्मुखी चिकित्सा सेंटर बन चुका है। यहाँ एक ही छत के नीचे गैस्ट्रो विभाग में जटिल से जटिल ऑपरेशन एवं प्रक्रियाएं निरंतर रूप से कुशल डॉक्टर्स द्वारा की जा रही हैं, जोकि उत्कृष्टा का परिचायक है।