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गीतांजली हॉस्पिटल में अल्सरेटिव कोलाइटिस से पीड़ित रोगी को सर्जरी कर किया गया रोगमुक्त

बड़े शहरों में होने वाली जटिल अल्सरेटिव कोलाइटिस सर्जरी गीतांजली हॉस्पिटल में भी हुई संभव  

 
यह बीमारी मुख्यतः बड़ी आंत में होती है, परंतु शरीर के अन्य भागों में भी हो सकती है।

गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, उदयपुर की गैस्ट्रोएंटरोलॉजी  टीम द्वारा प्रतापगढ़ के रहने वाले 18 वर्षीय रोगी की अल्सरेटिव कोलाइटिस बीमारी की सफल सर्जरी की गयी। ये सर्जरी प्रायः सिर्फ बड़े शहरों के कुछ ही सेंटर्स में उपलब्ध है। इस अत्यंत जटिल सफल इलाज करने वाली टीम में जी.आई. सर्जन डॉ. कमल किशोर विश्नोई, गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट डॉ. पंकज गुप्ता, डॉ. धवल व्यास डॉ. मनीष दोडमानी, सर्जिकल आईसीयू से डॉ. संजय पालीवाल एवं टीम, एनेस्थीसिया से डॉ. चारू शर्मा, एंडोस्कोपी इंचार्ज संजय सोमरा, ओटी इंचार्ज हेमंत गर्ग, वार्ड इंचार्ज मंजू आदि का बखूबी योगदान रहा जिससे यह ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया। 

क्या था मसला?

रोगी ने बताया कि पिछले 3 महीने मल त्याग करते समय खून का स्त्राव हो रहा रहा था जिस कारण हर समय पेट में दर्द रहना, कमज़ोरी, शरीर में खून की कमी इत्यादि समस्याओं से जूझना पड़ रहा था ऐसे में मंदसौर के निजी हॉस्पिटल में दिखाया पर हालत में सुधार नही हुआ, फिर रोगी को गीतांजली हॉस्पिटल, उदयपुर में भर्ती किया गया।   

डॉ कमल ने बताया की यह रोगी दुर्लभ , बड़ी आंत की बीमारी अल्सरेटिव कोलाइटिस से ग्रसित था। यह बीमारी मुख्यतः बड़ी आंत में होती है, परंतु शरीर के अन्य भागों में भी हो सकती है। इस बीमारी के लक्षण मुख्यतः दस्त लगना हुए मल में खून आना शामिल है। दवाओं से इस बीमारी को कंट्रोल किया जा सकता है, परंतु सर्जरी द्वारा इसे जड़ से खत्म किया जा सकता है। इस स्थिति में मरीज को टोटल प्रोक्टोकोलेक्टमी व इलियल पाउच ऐनल एनास्टोमोसिस नाम की सर्जरी की गई। यह एक जटिल सर्जरी है जिसमें बड़ी आँतों को मलद्वार से पहले तक काट दिया जाता है और छोटी आंत को अलग-अलग आकार देकर नया मलद्वार बनाया जाता है। 

यह सर्जरी दो चरण में पूरी की गई।

  1. प्रथम चरण में बड़ी आंत को मलद्वार के ऊपर तक काटा गया और छोटी आंत के अंतिम हिस्से को जे पाउच बनाया गया और मलद्वार के पास जोड़ दिया गया।
  2. दूसरे चरण में रोगी को सर्जरी करके एक महीने के लिए इलियोस्टॉमी पर रखा गया जिससे की जे पाउच को जल्दी हील किया जा सके। (इलोस्टोमी में रोगी के पेट में चीरा लगाकर पेट के ‎निचले दाहिने तरफ एक स्टोमा बनाया गया ताकि अपशिष्ट को एकत्रित ‎किया जा सके) इस स्टोमा को एक माह पश्चात हटाया जायेगा जिससे रोगी सामान्य लोगों की तरह मल निर्वाह कर पायेगा।  

इस तरह से रोगी की सफलतापूर्वक सर्जरी की गयी एवं एक सप्ताह बाद छुट्टी प्रदान की गयी। आज रोगी एवं उसका परिवार बहुत खुश हैं। 

गीतांजली हॉस्पिटल के सीईओ प्रतीम तम्बोली ने कहा कि गीतांजली हॉस्पिटल में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी से संबंधित सभी एडवांस तकनीकें एंडोस्कोपी यूनिट में उपलब्घ हैं तथा गीतांजली हॉस्पिटल पिछले 14 वर्षों से सतत रूप से हर प्रकार की उत्कृष्ट एवं विश्वस्तरीय चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध करा रहा है एवं जरूरतमंदों को स्वास्थ्य सेवाएं देता आया है।