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राग-द्वेष का प्रभाव महसूस होता है दिखाई नहीं देता

कुछ वस्तुएं ऐसी होती है जो दिखाई तो नहीं देती है किन्तु उनका अभाव प्रतीत होता है। विचारों में जाग्रत होने वाले राग-द्वेष ऐसे ही भाव है जिनका हम केवल प्रभाव देख पाते है।

 

कुछ वस्तुएं ऐसी होती है जो दिखाई तो नहीं देती है किन्तु उनका अभाव प्रतीत होता है। विचारों में जाग्रत होने वाले राग-द्वेष ऐसे ही भाव है जिनका हम केवल प्रभाव देख पाते है।

उक्त विचार श्रमण संघीय महामंत्री श्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने पंचायती नोहरे में आयेाजित विशाल धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि वास्तव में तो ये भावनात्मक बंधन है। इनमें से यदि हम किसी भी बन्धन को स्वीकार करते है तो अन्य जो भी श्रैष्ठ होता है उसे नहीं पा सकते।

उन्होंने बताया कि जहां किसी की बुराई होकर भी वह बुराई न लगकर अच्छाई जैसी ही लगे तो उसे रागान्धता ही समझना चाहिये। रागान्ध व्यक्ति को अपने प्रिय की कमी कमी स्वरूप नही लगती किन्तु जिसका जिसके प्रतिद्वेष है वहां किसी विपरीत व्यक्ति की अच्छाई भी बुराई की तरफ दिखती है। यह विद्वेष की निशानी है। ये दोनों अवस्थाएं हमारे भाव जगत के लिये अत्यन्त कष्ट रूप है। इनसे हमारी तटस्थता और न्यायप्रियता समाप्त हो जाती है।

सौभाग्य मुनि के सानिध्य में श्री वद्र्धमान स्थानकवासी युवक परिषद की ओर से भाषण प्रतियोगिता भी संपन्न हुई। कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रवर्तक मदन मुनि के सूत्र वाचन से हुआ। निर्मल मुनि ने भी प्रवचन दिये। कोमल मुनि ने कविता पाठ किया कार्यक्रम का संचालन श्रावक संघ मंत्री हिम्मत बड़ाला ने किया। अध्यक्ष वीरेन्द्र डांगी ने अतिथियों व तपस्वियों का स्वागत किया।