×

पागलखाना के पागलों ने किया समाज पर कटाक्ष

उदयपुर की नाट्य संस्था नाट्यांश सोसाइटी ऑफ ड्रामेटिक एंड परफोर्मिंग आर्ट्स ने रविवार को आमजन के लिये नाटक “पागलखाना” का मंचन भूपालपुरा स्थित महाराष्ट्र भवन में किया गया। संयोजक मोहम्मद रिज़वान ने बताया कि नाटक पागलखाना प्रतीकात्मक पागल पात्रों के माध्यम से वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था पर करारा प्रहार करने के साथ ही महिलाओं के प्रति समाज की सोच को भी उजागर करता है। नाटक में शासन, प्रशासन, अपराधियों, भ्रष्टाचारियों की मिलीभगत से समाज में उत्पन्न समस्याओं को प्रदर्शित किया गया।

 

उदयपुर की नाट्य संस्था नाट्यांश सोसाइटी ऑफ ड्रामेटिक एंड परफोर्मिंग आर्ट्स ने रविवार को आमजन के लिये नाटक “पागलखाना” का मंचन भूपालपुरा स्थित महाराष्ट्र भवन में किया गया। संयोजक मोहम्मद रिज़वान ने बताया कि नाटक पागलखाना प्रतीकात्मक पागल पात्रों के माध्यम से वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था पर करारा प्रहार करने के साथ ही महिलाओं के प्रति समाज की सोच को भी उजागर करता है। नाटक में शासन, प्रशासन, अपराधियों, भ्रष्टाचारियों की मिलीभगत से समाज में उत्पन्न समस्याओं को प्रदर्शित किया गया।

नाटक के सभी पागल हमारे समाज के हर तबके के लोगो को दर्शाते है। पहला पागल नेता सत्ता और शक्ति को,दूसरा पागल उद्योगपति पैसे को, तीसरा पागल गायक क्रांति और शोषण के खिलाफ विद्रोह को, चौथा पागल पत्रकार प्रजातंत्र को प्रदर्शित करता है। नाटक में दरबान जो की पागल नहीं है बल्कि पागलखाने का रक्षक है वो सभी की आवाज़ को दबाने का प्रयत्न करता है और लालच में आकर सत्ता और शक्ति के साथ मिल जाता है।

Click here to Download the UT App

नाटक में यह चार पागल समाज के वो चार स्तम्भ है जिनसे समाज और देश की प्रगति टिकी है। मगर जब यही स्तम्भ देश को आगे बढ़ने की जगह खुद को आगे बढ़ाते है तब जनता का मौन रहना उचित है? इन्ही स्तंभों के द्वारा सुरसतिया, पागलखाने की एकमात्र महिला पात्र और सफाई कर्मचारी, का भी शोषण किया जाता है और उसका बलात्कार कर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।

निर्देशक अशफ़ाक नूर खान ने अपनी कल्पनानुसार दो नए पागलो राधा (एक किन्नर) और मुखबीर, जो सभी घटनाओ का एक मूक गवाह है, को शामिल किया है। यह पागल हमारी समाज में उन लोगो को चित्रित करते है जो सब कुछ देखकर और जानकर भी अनदेखा करते है और अनजान बने रहते है। दरअसल ये लोग समाज के मूक दर्शक जो सिर्फ स्वयं को ही बचाने चाहते है।

नाटक का लेखन अशोक कुमार “अंचल” और निर्देशन अशफ़ाक नूर खान पठान ने किया। इस नाटक में बतौर कलाकार मनीषा शर्मा, राघव गुर्जरगौड़, अगस्त्य हार्दिक नागदा, धर्मेन्द्र टीलावत, महेश जोशी, मोहन शिवतारे, रक्षित आनंद, नेहा पुरोहित, पलक कायस्थ, चक्षु सिंह रुपावत, इंदर सिंह सिसोदिया ने अभिनय किया। संगीत हेमन्त आमेटा, प्रकाश संचालन मोहम्मद रिज़वान, वेशभूषा नेहा पुरोहित, मंच निर्माण अगस्त्य हार्दिक नागदा, रूपसज्जा पलक कायस्थ व नाईल शेख द्वारा किया गया। साथ ही मंच पार्श्व में अब्दुल मुबीन खान पठान, रेखा सिसोदिया, योगिता सिसोदिया और जतिन भरवानी ने कार्यभार संभाले।

गौरतलब है कि नाट्यांश संस्थान के कलाकार पिछले 6 सालो से रंगमंच के क्षेत्र में निरंतर रूप से कार्यरत हैं। संस्थान रंगमंच कि विभिन्न विधाओ जैसे नुक्कड़ नाटक, स्टोरी टेलिंग, शोर्ट प्ले, एकांकी नाटक एवं पुर्णाकी नाटको के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों पर आमजन कि आवाज़ बनने का प्रयास करती है। साथ ही समाज और दुनिया में चल रही गतिविधियों से आवाम को जागरूक करने का कार्य कर रही हैं। साथ ही युवा पीढ़ी में रंगमंच विधा का के प्रति कार्य करने को प्रेरित कर रही है एवं शहर के युवाओं को एक साथ लेकर रंगमंच के क्षेत्र में अग्रसर हो रही हैं। और हर साल कि भांति इस साल भी जल्द ही उदयपुर के रंगकला प्रेमियों के लिए 6ठा राष्ट्रिय नाट्य महोत्सव ‘अलफ़ाज़’ ले कर जल्द ही प्रस्तुत होने वाले है।

नाटक देखने आये दर्शकों में महाराष्ट्र समाज के सचिव श्री उल्हास नेवे ने नाटक कि जमकर तारीफ कि और कहा “नाटक पागलखाना चित्रण है देश के आला अधिकारीयों एवं सत्ताशीन लोगो के द्वारा किये गए कार्यो का। ऐसा नही है कि सभी आला अधिकारीयों एवं सत्तानशीन अपनी शक्तियों का गलत उपयोग करते है लेकिन उनमे से कुछ लोग जो ऐसा करते है उन कर ये नाटक भरपूर कटाक्ष करता है” एवं सभी कलाकारों को नाटक के बेहद सफल मंचन के लिए बधाई दी और भविष्य में ऐसे ही रचनात्मक नाटकों के मंचन के लिए प्रेरित किया।

सभागार में मौजूद वरिष्ठ रंगकर्मी विलास जानवे ने कहा कि जनजागरूकता के लिए रंगमंच का क्षेत्र सबसे सफल तरीका है और उन्होंने नाट्यांश टीम से ये आशा जताई कि वो भविष्य में भी ऐसे ही नाटकों के द्वारा समाज में जनजागरूकता का कार्य लगातार करते रहे एवं युवाओं को इस क्षेत्र से जोड़ने के मार्ग को प्रदर्शित करते रहेंगे। साथ ही टीम की तारीफ करते हुए ये भी कहा की चलते नाटक में लाइट चले जाने क बाद भी कलाकारों ने अपनी अदायगी पर कोई शिकन तक नहीं आने दी ओर नाटक मोबाइल की टौर्च लाइट में भी उसी तन्मयता ओर एकाग्रता से चलता रहा।