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जिन पर शहर को पाॅलीथिन मुक्त बनानेे की जिम्मेदारी, वे ही कर रहे प्रतिबन्धित पाॅलीथिन का उपयोग

जब जिम्मेदार ही उन नियमों की अन्हेलना करें तो आमजन से उन नियमों की पालना की उम्मीद किस प्रकार की जा सकती है। 
 
दस वर्ष पूर्व राजस्थान सरकार ने प्लास्टिक से होने वाले नुकसान को देखते हुए राजस्थान सरकार ने राजस्थान में 21 जुलाई 2010 को सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध लगाते हुए गजट नाॅटिफिकेशन पारीत किया ताकि राज्य में प्लास्टिक से होने वाले हर प्रकार के नुकसान को रोका जा सकें,लेकिन हुआ इसका उलटा।

उदयपुर। जिन पार्षदों व नगर निगमों के अधिकारियों पर शहर को पाॅलीथिन मुक्त बनानें की जिम्मेदारी थी वे ही अब लाॅक डाउन समय में जरूरतमंदों तक विभिन्न प्रकार की सामग्री पंहुचानें के लिये प्रतिबन्धित थैैली का धड्डले से उपयोग कर सरकार के आदेश की खुलकर अव्हेलना कर रहे है। जब जिम्मेदार ही उन नियमों की अन्हेलना करें तो आमजन से उन नियमों की पालना की उम्मीद किस प्रकार की जा सकती है। 

सोशल मीडिया पर चल रहे एक वीडियों में नगर निगम के अधिकारी,कर्मचारी जरूरमंदो के लिये प्रतिबन्धित पाॅलीथिन में सामग्री भरते हुए दिखाई दे रहे है। जब शहर सहित पूरे राज्य में पाॅलीथिन प्रतिबन्धित है तो यह प्रतिबन्धित पाॅलीथिन नगर निगम कहंा से लाया। लगता है नगर निगम राज्य सरकार के नियमों को ही भूल गयी।  

दस वर्ष पूर्व राजस्थान सरकार ने प्लास्टिक से होने वाले नुकसान को देखते हुए राजस्थान सरकार ने राजस्थान में 21 जुलाई 2010 को सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध लगाते हुए गजट नाॅटिफिकेशन पारीत किया ताकि राज्य में प्लास्टिक से होने वाले हर प्रकार के नुकसान को रोका जा सकें,लेकिन हुआ इसका उलटा। शहर की नगर निगमों, नगर परिषदों व नगर पालिकाओं को उस प्रतिबन्ध की अनुपालना कर शहर को पाॅलीथिन मुक्त बनानें की जिम्मेदारी सौंप दी।

नगर निगम द्वारा इस कार्य में प्रतिबन्धित पाॅलीथिन का उपयोग यह दर्शाता है कि शहर में बेरोक टोक पड़ौसी राज्यों से आवक जारी है और नगर निगम को इसकी पूरी जानकारी है इसीलिये इस प्रकार की पाॅलीथिन की बिक्री शहर में निर्बाध गति से जारी है,तभी नगर निगम इस प्रकार की पाॅलीथिन का उपयोग कर रही है।

राज्य में प्रतिबन्ध लगे 10 साल हो जाने के बावजूद राज्य में न तो प्लास्टिक का पड़ोसी राज्यों से आना बंद हुआ और न हीं उससे होने वाले नुकसान में कोई कमी आयी। यह जानकर हैरानी होगी कि प्लास्टिक कैरी बैग पर प्रतिबंध होने के बावजूद प्रदेश में प्रतिवर्ष 1 लाख 4 हजार टन प्लास्टिक कचरा निकल रहा है। इसमें चिंताजनक बात यह है कि इस कचरे में सिंगल यूज प्लास्टिक सर्वाधिक है, जो पर्यावरण के साथ इंसानों के लिए भी सबसे अधिक नुकसानदायक है। इतनी भारी मात्रा में निकल रहे प्लास्टिक कचरे ने राज्य के आदेश की धज्जियां उड़ा दी है। 

बायो डिग्री डेबल प्रोडक्ट निर्माता अशोक बोहरा ने प्रतिबंध की उड़ रही खुली धज्जियां पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि यदि सरकार प्रतिबंध को सख्ती से लागू नहीं करवा सकती तो कम से कम राजस्थान में में सिंगल यूज प्लास्टिक को बनाने की इजाजत दे ताकि सरकार को जीएसटी मिलें और बेरोजगारों को रोजगार मिल सकें। 

उन्होंने बताया कि प्रतिवर्ष सरकार को करोड़ो रूपयें के राजस्व का नुकसान हो रहा है। यदि पड़ोसी राज्य गुजरात से राज्य के मार्केट में सिंगल यूज प्लास्टिक बिना किसी रोक टोक के आसानी से बिक रहा है तो सरकार को चाहिये कि प्रतिबंध को हटाकर इसे राजस्थान में ही निर्मित कराना प्रारम्भ कर देना चाहिये ताकि लगभग 20 हजार लोगों को रोजगार मिल सकें। 

आश्चर्य की बात है कि न तो स्थानीय नगर निगम, न जीएसटी विभाग और न हीं प्रदुषण विभाग कोई कार्यवाही कर पा रहा है। ये तीनों की कुंभकर्ण की नींद सोये हुए है। राज्य में धड़ल्ले से पिछले 10 वर्षो से प्लास्टिक कैरी बैग बिना बिल के बिना इजाजत के आसानी से बिक रहे है। अपनी जिम्मेदारी से मुंह फेरते हुए जिम्मेदार सिर्फ कागजो में आंकड़े फेर बदल कर राजी हो रहे है। यहां पर न ही सरकार सुध लेती ओर न ही कोई डिपार्टमेंट।

इसके अलावा जिन राज्यों में प्रतिबंध नहीं है वहां भी मिनिमम थिकनेस 50 माइक्रोन का प्रावधान है जबकि मार्केट में 20 माइक्रोन की थैलियंा बिना बिल के आसानी से उपलब्ध हो रही है।