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एम.पी.यू.ए.टी. में कृषि अवशेषों से बायोचार निर्माण की उच्च तकनीकी का ईजाद

 

प्रतिवर्ष भारत में 700 हजार टन कृषि अवशेषों का उत्पादन हो रहा है जिसमें से अधिकतर किसान इसको अपने ही खेतों में जला देते है, जिससे पर्यावरण प्रदूषण के साथ-साथ खेतों की उर्वकता भी कम होती है। इसी दिशा में कृषि अवशेषों से बायोचार का उत्पादन कर उसका खेतों की उर्वकता बढाने में प्रयोग करना, जैविक खेती के लिए एक अच्छा प्रयोग हो सकता है।

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्यौगिकी विश्वविद्यालय के नवीकरणीय ऊर्जा अभियांत्रिकी विभाग ने कृषि अवशेषों से जैविक कार्बन (बायोचार) उत्पादन करने की दक्ष तकनीक विकसित की है।

नवीकरणीय ऊर्जा अभियांत्रिकी विभाग के विभागाध्यक्ष और इस परियोजना के प्रभारी डॉ. नारायण लाल पंवार ने बताया कि किसानों के लिए कृषि अवशेषों को बायोचार में बदलने की यह एक अच्छी तकनीक है। खेतों में फसल की कर्टाइ के बाद शेष बचे अवशेष भूसे से तैयार जैविक कार्बन ना केवल भूमि की उर्वकता को बढाता है, बल्कि फसल उत्पादन को भी बढाता है,  जिससे किसानों की आय बर्ढाइ  जा सकती है।

इस तकनीक का डिजाइन और विकास नवीकरणीय ऊर्जा अभियांत्रिकी विभाग द्वारा किया गया है। इस तकनीक को किसानों के अनुकूल विकसित किया गया है, जिससे किसान आसानी से अपने खेतों पर उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग करके बायोचार का उत्पादन कर सकते हैं। इस तकनीकी में किसी भी पारम्परिक ऊर्जा स्त्रोत जैसे कि बिजली, डीज़ल आदि का प्रयोग नहीं किया जाता है। विभाग के शोद्यार्थी मगा राम पटेल इस विकसित तकनीकी का मूल्यांकन व इससे प्राप्त बायोचार का फसल उत्पादन और खेत की उर्वकता पर अनुसंधान कर रहे हैं।

विकसित तकनीक में 200 किग्रा कृषि अवशेषों से 60 किग्रा बायोचार बनाया जा सकता है। प्राप्त बायोचार में 80 से 85 प्रतिशत कार्बन होता है, जो खेतों की उर्वकता बढाने में काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। यह बायोचार तकनीक पूर्ण रूप से प्रदूषण मुक्त तथा ऊर्जा दक्ष है। विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया की इसमें किसी भी प्रकार का पारम्परिक ऊर्जा स्त्रोतों का इस्तेमाल नहीं किया गया है तथा यह तकनीकी किसान उपयोगी और किसान र्भाइ  इसे आसानी से उपयोग में लाकर अपनी फसलों के अवशेषों से बायोचार बनाकर अपनी आमदनी बढा सकते हैं। अनुसंधान निदेशक डॉ. शान्ति कुमार शर्मा ने बताया कि इसमें खेतों में उपलब्ध लकडी को जलाकर 400 से 500 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान प्राप्त कर कृषि अवशेषों से कम लागत व उच्च गुणवत्ता का बायोचार बनाया जाता है। जो वर्त मान परिपेक्ष में रासायनिक खाद के स्थान पर उपयोग में लाकर वातावरण, खेत व स्वास्थ्य को सुधारने में उपयोगी साबित होगा।