×

प्लास्टिक प्रतिबन्ध के बावजूद जारी कैरी बैग के उपयोग से सरकार को प्रतिवर्ष हो रहा है करेाड़ों रूपयें के राजस्व का नुकसान

राज्य में प्लास्टिक का निर्माण तो बंद हो गया लेकिन उसका समीप राज्य गुजरात से चोरी-छिपे आ रहे प्लास्टिक के कारण राज्य में इसका उपयोग बंद नहीं हो पाया

 

उदयपुर। गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन ऑफ़ कम्पोस्टेबल प्रोडक्ट इन इंडिया ने सीएमओ के पंमुख शासन सचिव को पत्र लिखकर मांग की कि लगभग 12 वर्ष राज्य में प्लास्टिक के निर्माण एवं उपयोग को प्रतिबन्ध किया गया था लेकिन अफसोस की बात है कि राज्य में प्लास्टिक का निर्माण तो बंद हो गया लेकिन उसका समीप राज्य गुजरात से चोरी-छिपे आ रहे प्लास्टिक के कारण राज्य में इसका उपयोग बंद नहीं हो पाया, इस कारण प्रतिवर्ष सरकार को 71 करोड़ का अनुमानित राजस्व का नुकसान हो रहा है।  

एसोसिएशन के अशोक बोहरा ने बताया कि राज्य सरकार ने 21 जुलाई 2010 को एक अधिसूचाना जारी की थी। उसके बाद राज्य में उद्यमियों ने प्लास्टिक के बजाय कम्पोस्टेबल खाद से बनें प्रोडक्ट का उत्पादन प्रारम्भ किया, जो प्लास्टिक की तुलना में सौ प्रतिशत पर्यावरण संरक्षण था लेकिन सरकार एवं अधिकारियों की मंशा हीं नहीं थी कि राज्य से प्लास्टिक का उपयोग बंद हो और यहीं आज भी धड्डल्ले से चल रहा हैं और इसी कारण राज्य के पर्यावरण संरक्षण में सहयोगी बने कम्पोस्टेबल प्रोडक्ट का निर्माण कर रहे उद्योग बंद हो गये है।

उन्होंने बताया कि प्लास्टिक के दुष्प्रभावों के कारण विभिन्न सरकारों ने इनके उपयोग पर रोकथाम के लिए कड़े कदम उठाये है। भारतीय संविधान में भी अनुच्छेद 48 ए में पर्यावरण संरक्षण को संवैधानिक दर्जा दिया गया है एवं राज्य को इसके संरक्षण के लिए सभी जरुरी कदम उठाने के लिए निर्दिष्ट किया गया है लेकिन उस कानून कोे भी अमल में नहीं लाया जा रहा है।

राजस्थान सरकार ने उपनिर्दिष्ट अधिसूचना के द्वारा सम्पूर्ण राज्य को प्लास्टिक केरी बैग मुक्त क्षेत्र घोषित किया था एवं निर्देश दिए थे की राज्य में कोई व्यक्ति जिसमें कोई दुकानदार, विक्रेता थोक विक्रेता या फुटकर विक्रेता, व्यापारी, फेरी लगाने वाला या रेहड़ी वाला भी सम्मिलित है, माल के प्रदाय के लिए प्लास्टिक केरी बैग का उपयोग नहीं करेगा और यह निर्देश देती है की कोई व्यक्ति दिनांक 1 अगस्त 2010 से राज्य में प्लास्टिक केरी बैग का विनिर्माण, भंडारण, आयात, विक्रय अथवा परिवहन नहीं करेगा लेकिन इसमे से एक भी निमय का पालन नहीं किया जा रहा है।

राज्य में प्लास्टिक केरी बैग्स पर पूर्ण प्रतिबन्ध लग जाना चाहिए था परन्तु किसी भी सरकार ने यह प्रयत्न नहीं किया की इस प्रतिबन्ध को कड़ाई से लागू किया जाय और आज भी प्लास्टिक कैरी बैग्स का धडल्ले से उपयोग होते देख रहे हैं। उपरोक्त अधिसूचना जारी होने के बाद से राज्य में हजारों इकाईयां जो की प्लास्टिक केरी बैग्स के विनिर्माण,व्यापार के साथ परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूप से जुड़ी थीं बंद हो चुकी हैं, जिसने न केवल बेरोजगारी और अन्य सामाजिक समस्याओं में वृद्धि की है वरन राज्य ने अपने संवैधानिक कर्तव्य का निर्वहन भी नहीं किया है। 

पर्यावरण संरक्षण के जिस उद्देश्य से यह अधिसूचना लायी गयी थी वह उद्देश्य भी पूरा नहीं हो सका क्यों की विनिर्माण बंद होने के बाद भी पड़ोसी राज्यों जैसे गुजरात से प्लास्टिक केरी बैग्स की तस्करी आज भी जारी है और जिसे रोकने की इच्छाशक्ति किसी भी सरकार ने या विभाग ने नहीं दिखाई है जबकि इसके चलते सरकारी खजाने को करोड़ों रुपए के राजस्व का नुकसान हो रहा है से हाथ धोना पड़ रहा है।

बोहरा ने बताया कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने अप्रेल 2022 में कहा था की भारत में प्रति वर्ष करीब 3.5 मिलियन टन प्लास्टिक वेस्ट (कचरा) निकलता है, यहाँ यह उल्लेखनीय है की प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 ( प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016) के अधीन राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने अपने 2019-20 के वार्षिक प्रतिवदेन में करीब 52000 टन प्लास्टिक वेस्ट विनिर्माण का आकलन किया था, यह आकंड़ा 2020-21 में करीब 66000 टन पहुँच गया था। स्थापित मानदंडों के अनुसार इसका करीब 60 प्रतिशत यानी 39600 टन माल प्लास्टिक कैरी बैग्स के कारण होता है।  

यदि बाजार भाव ( करीब 1,00,000 रुपए प्रति टन) के अनुसार गणना की जाय और इस पर 18 प्रतिशत जीएसटी माना जाय तो सरकार को करीब 71 करोड़ के राजस्व का नुकसान प्रति वर्ष होता है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है की ये आंकड़े सरकारी विभागों के हैं जबकि वास्तव में तो यह और भयावह स्थिति हो सकती है।

अतएव यह कहना अनुचित न होगा की सरकार को इस विषय में अविलम्ब कड़े दंडात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है, वर्तमान में जो स्थिति है उसमें तो उपरोक्त आदेश की और राज्य को प्लास्टिक मुक्त बनाने की अवधारणा की खुल्ले आम धज्जियां उड़ाई जा रहीं हैं, प्रतिबंधित प्लास्टिक कैरी बैग्स न सिर्फ खुले आम पडोसी राज्यों से तस्करी द्वारा राज्य में लाये जा रहे हैं वरन गावं से लेकर शहरों तक हर दुकान पर इस्तेमाल हो रहे हैं और इस चक्र में न सिर्फ पर्यावरण बल्कि आम जनता और राजकोष को भी नुकसान पहुंचाया जा रहा है।