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उदयपुर में सिनेमाघरो का इतिहास 

सिनेमा समाज का एक दर्पण स्वरुप हैं, जो कलात्मक ही सही लेकिन समाज में घटित हो रही हर एक छोटे से छोटे प्रतिबिंब को दर्शाता है

 

फिल्मे कई सालों से प्रत्येक वर्ग के लिए मनोरंजन का एक मुख्य ज़रिया रही है। जहां आज भले ही आधुनिक दौर में मल्टीप्लेक्स स्क्रीन पर फिल्मांकन किया जा रहा हैं। अब हर दिन नये मल्टीप्लेक्स, मॉल्स खुल रहे हैं जिसमें हर हफ्ते नई-नई फिल्मे दिखाई जाती हैं। कभी किसी ज़माने में सिनेमा का प्रदर्शन सिनेमाघरो यानि सिंगल स्क्रीन पर प्रदर्शित हुआ करती थी। जहाँ सिनेमा का टिकट खरीदने के लिए लम्बी लाइन लगा करती थी।  टिकटों की लम्बी लाइन और ब्लैक में बिकते टिकट किसी फिल्म के हिट सुपरहिट या ब्लॉकबस्टर की गवाही देते थे।

सिनेमा समाज का एक दर्पण स्वरुप हैं, जो कलात्मक ही सही लेकिन समाज में घटित हो रही हर एक छोटे से छोटे प्रतिबिंब को दर्शाता है। आज ही नहीं बल्कि गुज़रे दौर में भी सिनेमा हर इंसान के जीवन पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से प्रभाव डालता रहा हैं। आज 23 सितंबर को नेशनल सिनेमा डे मनाया जा रहा हैं। इस अवसर पर उदयपुर टाइम्स की टीम आपके लिए उदयपुर में सिनेमाघरो का क्या इतिहास रहा हैं, क्यों सिंगल स्क्रीन का कारोबर खत्म हो गया हैं। हम आपको बताएंगे, लेकिन इस दौर तक गुज़रने की कहानी काफी लंबी हैं। उदयपुर में किस तरह से सिनेमाघरो की शुरुआत हुई जानिए उदयपुर टाइम्स के साथ.......

यह वह दौर था, जब शहर की बसावट सिटी वॉल के भीतर थी। ऐसे में प्रजा खुद को सिटी वॉल के बाहर जाने के लिए सुरक्षित महसूस नहीं करती थी। 1936 की बात है एक चर्चित शख्स एम. जी. सांघी उदयपुर में ऑटो मोबाइल का काम करते थे। जब वह दिल्ली किसी बिजनेस के सिलसिले में गए हुए थे। तो उन्होंने वहां सिनेमाघर देखा। 

जब वह उदयपुर पहुंचे तो उन्होंने सोचा क्यों नही उदयपुर में भी सिनेमाघर की शुरुआत की जाए। ताकि यहां की जनता को फिल्म देखने दूर न जाना न पड़े। इस सिलसिले में एम. जी. सांघी ने उदयपुर के तत्कालीन महाराणा से मुलाकात की। उस दौर में उदयपुर के तत्कालीन महाराणा भूपाल सिंह जी थे। जब उन्होंने महाराणा भूपाल सिंह को अपने विचार से अवगत करवाया तो महाराणा भूपाल सिंह ने एम. जी. सांघी से कहा की हमे क्या फायदा होगा और किन शर्तों पर यहां सिनेमाघर की शुरुआत की जाए। तो उन्होने कहा कि आप किसी भी वक्त मुफ्त में कोई भी फिल्म देख सकेंगे। आप के लिए अलग से जगह बनाई जाएगी जहां से आप फिल्म देख सकेंगे। इस बात पर महाराणा भूपाल सिंह ने इस बात कि इजाज़त दे दी और जहां उन्हें सिनेमा की शुरुआत करनी थी वहां के लिए ज़मीन दी गई। उदयपुर में सिनेमा के लिए चर्चा शुरू हुई तो साल 1940 में जमीन खरीदी गई। इसके बाद तत्कालीन महाराणा भूपाल सिंह से 1941 में सिनेमाघर के लिए आग्रह किया गया। 

द आर्टिस्ट हाउस (कभी पिक्चर पैलेस सिनेमाघर) के मालिक मुकुन्द सांगी बताते हैं कि उदयपुर में सबसे पहला सिनेमाघर  "पिक्चर पैलेस" की स्थापना के लिए मेरे परदादा एम. जी. सांघी और महाराणा भूपाल सिंह ने बात की। शर्त अनुसार महाराणा के लिए अलग से चेंबर, जनता के लिए टिकट का मूल्य निर्धारण और यहां तक कि सिनेमा हॉल तक सड़क भी बनाई गई। 

                                                                                      

 आम जनता को मनोरंजन के लिए बिजनेस पर टैक्स में रियायत लिया गया। आजाद भारत के पहले तक महाराणा की तरफ से जनहित को ध्यान रखते हुए परफॉर्मेंस टैक्स लगाया। इस दौरान रियायत के चलते जनता को टिकट का कम दर देना पड़ा और मेवाड़ राज्य को भी राजस्व प्राप्ति हुई। 1942 से 1950 तक सिनेमा में  BAR की सुविधा भी उपलब्ध कराई गई।  

जब पिक्चर पैलेस की में मुनाफा हुआ तो 1947 में दूसरे सिनेमा के लिए चेतक सर्किल में जमीन आवंटित हुई। फिर धीरे-धीरे मीरा सिनेमा जो कि अशोका  सिनेमा के नाम से जाना जाता था, उसकी स्थापना 1959 में की गई थी। फिर उसके बाद स्वप्न लोक शुरू हुआ, जिसे किराए पर एनके सांघी ने लिया। 

                                                                               

मुकुन्द सांगी बताते है कि उदयपुर मे अब सिंगल स्क्रीन थिएटरों पर ताला लग गया हैं। चाहे सिंगल स्क्रीन के हिस्से की कमाई मल्टीप्लेक्स के आने से कम हुई हैं, लेकिन आज भी कहीं ना कहीं सिंगल स्क्रीन की चमक जारी हैं। सिंगल स्क्रीन का पुराना चार्म था, जो एक प्रतिष्ठित इमारत हुआ करती थी। सिनेमाघरो में जाना एक एक उत्सव के सामान होता था। जो अब मल्टीप्लेक्स में नहीं देखने को मिलती हैं। यदि हम सिंगल स्क्रीन की बंद इमारतों को देखे तो इसको देख कर एक अलग ही याद ताज़ा हो जाती हैं। 

उदयपुर टाइम्स की टीम ने उदयपुर के सिनेमा के इतिहास पर उदयपुर वासी लियाकत हुसैन से बात की। लियाकत हुसैन का कहना है कि पहले सिनेमा में अभी के सिनेमा में ज़मीन आसामान की तुलना कर लिजिए इतना फर्क हैं। पहले जो फिल्म हुआ करती थी उनके टिकट के लिए लंबी-लंबी कतारों में शामिल होना पड़ता था टिकट की खिड़की पर जिसका हाथ पहले पहुंचा ऐसा मानो वह व्यक्ति फिल्म देखने में सफल हुआ। पहले के दर्शक फिल्म का पोस्टर देखकर ही उत्साहित हो जाते थे और फिल्मों में दर्शाय हुए गाने अभी तक लोगों की जुबान पर है। वह बताते है कि अब नए दौर में सब कुछ खत्म हो गया हैं। अब गाने 4 दिन से ज्यादा नहीं चलते। पहले जो फिल्म बना करती थी उनका कुछ उद्देश्य हुआ करता था जो किसी न किसी जीवन पर आधारित हुआ करती थी। लेकिन अब पहले से फिल्म का ट्रेलर दिखा दिया जाता है फिर आज कल मोबाइल, टीवी, कम्पयूटर नई प्रद्धति आ गई हैं। जिसने सब कुछ खत्म कर दिया हैं।

मल्टीप्लेक्स कल्चर 

आजकल सिंगल स्क्रीन यानि सिनेमाघरो का स्थान मल्टीप्लेक्स कल्चर ने ले लिया है।  उदयपुर में सर्वप्रथम इसकी शुरुआत 2011 में हुई थी। पीवीआर ने पहली बार 5 सिनेमा अलग अलग स्क्रीन पर प्रदर्शित की थी।  जिनमे ट्रांसफॉर्मेशन 3, डार्क ऑफ़ द मून, देहली बेली, बूढा होगा तेरा बाप और डबल धमाल नामक फिल्मे प्रदर्शित हुई थी।  वहीँ 2013 में आइनॉक्स की शुरुआत हुई जिनमे मर्डर 3, जयंता बाई की लव स्टोरी, स्पेशल 26, ABCD और जीरो डार्क 30 नामक फिल्मे एक साथ प्रदर्शित हुई थी। 

                                                                                     

वर्तमान में पीवीआर और आइनॉक्स में ही फिल्मे प्रदर्शित हो रही है। शहर के सभी सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर बंद हो चुके है। पिक्चर पैलेस 'आर्टिस्ट हाउस' में तब्दील हो चूका है, अशोका सिनेमा और पारस सिनेमा अब शॉपिंग मॉल बन चूका है। चेतक सिनमा भी अब शॉपिंग काम्प्लेक्स बन चूका है।  बस स्वप्नलोक सिनेमा की इमारत बाकि है हालाँकि अब यहाँ कोई सिनेमा प्रदर्शित नहीं होता है।