×

रोंगटे खड़े कर देने वाले मानगढ़ हत्याकांड को कलाकार ने कैनवास पर उतारा

उदयपुर के चित्रकार डॉ. निर्मल यादव की पेंटिंग का हुआ चयन

 

उदयपुर 30 अप्रेल 2022 । राष्ट्रीय ललित कला अकादमी दिल्ली ने कोरोना काल में कलाकारों की सहायता को लेकर कदम बढ़ाया। अकादमी की ओर से 19 से 24 अप्रैल तक ऑनलाइन राष्ट्रीय चित्रकला शिविर का आयोजन किया गया। 

शिविर का विषय आजादी के अमृत महोत्सव के तहत स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर था, जिसके अंतर्गत चित्रकारों को चित्रकारी के माध्यम से अपने स्थानीय गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों या घटनाओं को प्रदर्शित करना था। जिसकी इतिहास में न के बराबर जानकारी मिलती है। उपाध्यक्ष नंदलाल ठाकुर की पहल पर शिविर में देशभर के 100 प्रख्यात चित्रकारों को चयनित किया गया।

इसमें उदयपुर से चित्रकार डॉ निर्मल यादव एवं डॉ धर्मवीर वशिष्ठ का चयन हुआ। निर्मल यादव ने बांसवाड़ा जिले के मानगढ़ हत्याकांड और वशिष्ठ ने सत्य अर्थ प्रकाश शीर्षक पर पेंटिंग बनाई। कलाकारों के चित्रों को ललित कला अकादमी की ओर से प्रदर्शित किया जाएगा।

डॉ निर्मल यादव ने बताया संसदीय कार्य और संस्कृति राज्यमंत्री अर्जुन लाल मेघवाल ने शिविर का ऑनलाइन शुभारंभ किया, जिसमे मौके पर समस्त 100 कलाकारों सहित अखिल भारतीय संगठन मंत्री मुकुल कानिटकर, ललित कला अकादमी की अध्यक्ष उमा नंदूरी, सचिव रामकृष्ण वेदाला, सुमन मजूमदार उपस्थित थे।

यह है मानगढ़ हत्याकांड

मानगढ़ हत्याकांड-1913 की घटना है। इसे राजस्थान का ‘जालियाँवाला बाग़’ हत्याकांड,भी कहा जाता है। इसमें 1500 बेक़सूर गुरुभक्त मारे गए।
13 अप्रैल 1919 में घटित जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड की घटना को शायद ही कोई भारतीय होगा जो नहीं जानता होगा। यह घटना भारत के स्वतंत्रता संघर्ष की किताब का बहुत बड़ा अध्याय रही है। कई आम लोग इस घटना से प्रभावित हुए और स्वतंत्रता संग्राम में उतरने का फैसला किया। ब्रिटिश सरकार की माने तो इस हत्याकांड में 379 लोग मारे गए और 1200 से अधिक घायल हुए। लेकिन तत्कालीन अख़बारों में तब फेक न्यूज़ नहीं हुआ करती थी, के अनुसार मृत्यु का आंकड़ा 1000 के आसपास तक था। ऐसा ही कुछ दर्दनाक और वीभत्स हत्याकांड दक्षिणी राजस्थान में भी हुआ था। जो इतिहास के पन्नों में दूसरी घटनाओं के तले छुप गया। यह हत्याकांड जालियाँवाला बाग़ में हुए हादसे से भी बड़ा था।

हम बात कर रहे है ‘मानगढ़ धाम हत्याकांड’ जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड से 6 साल पहले हुआ। तारीख़ थी 17 नवम्बर, 1913, मानगढ़ एक पहाड़ी का नाम है जहाँ यह घटना घटी थी।

गोविंद गुरु थे नायक

गोविन्द गुरु, एक सामाजिक कार्यकर्ता थे तथा आदिवासियों में अलख जगाने का काम करते थे। उन्होंने एक 1890 में एक आन्दोलन शुरू किया। जिसका उद्देश्य था आदिवासी-भील कम्युनिटी को शाकाहार के प्रति जागरूक करना और इस आदिवासियों में फैले नशे की लत को दूर करना था। इस आन्दोलन को भगत आंदोलन का नाम दिया।

17 नवम्बर, 1913 को मेजर हैमिलटन ने अपने तीन अधिकारी और रजवाड़ों व उनकी सेनाओं के साथ मिलकर मानगढ़ पहाड़ी को चारो ओर से घेर लिया।  उसके बाद जो हुआ वह दिखाता है कि शक्ति का होना, संवेदना के लिए कितना हानिकारक है। खच्चरों के ऊपर बंदूक लगा उन्हें पहाड़ी के चक्कर लगवाए गए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग मरे। इस घटना में 1500 से भी ज्यादा लोग मारे गए और न जाने कितने ही घायल हुए। गोविन्द गुरु को फिर से जेल में डाल दिया गया हालांकि उनकी लोकप्रियता और जेल में अच्छे बर्ताव के कारण हैदराबाद जेल से रिहा कर दिया। उनके सहयोगी पूंजा धीरजी को काले-पानी की सजा मिली। इनके अलावा 900 अन्य लोगों की भी गिरफ़्तारी हुई।

बकौल चित्रकार इस कृति में उसने उस भीषण नरसंहार को दर्शाया है, कि किस प्रकार ब्रिटिश आर्मी ने बिना रुके गोलियों की बौछारें की और उन बेकसूर आदिवासियों की लाशों के ढ़ेर लगे। जिनकी संख्या 1500 से भी अधिक थी। आदिवासियों की लाशों के ढेर को मानगढ़ की पहाड़ी का प्रभाव दिया है और उसी मैं भावपूर्ण आंखों से निहारते हुए गोविंद गुरु का व्यक्ति चित्र बनाया है, साथ ही इन आदिवासियों की श्रद्धांजलि में वहाँ निर्मित मोन्यूमेंट को भी बनाया है। इस कृति के द्वारा मैं दर्शक को उस समय के भयावह स्थिति का अहसास करा रहा हूँ कि किस बेरहमी से अंग्रेजी सत्ता इंसानियत पर हावी हुई।